Home क्राइम बीबीए के हस्‍तक्षेप से पॉक्‍सो मामले में एक लड़के को मुआवजे के...

बीबीए के हस्‍तक्षेप से पॉक्‍सो मामले में एक लड़के को मुआवजे के तौर पर 6 लाख

बीबीए चार दशकों से बच्चों को शोषण से मुक्‍त करने और उनकी सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए अथक प्रयास कर रहा है। बीबीए का मानना है कि कानूनी प्रणाली बाल संरक्षण कानूनों और कल्याणकारी उपायों के प्रभावी कार्यान्वयन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।

नई दिल्ली। बचपन बचाओ आंदोलन (बीबीए) के हस्‍तक्षेप से दिल्‍ली उच्‍च न्‍यायालय (Delhi High Court) ने बाल यौन शोषण के मामसे में एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया। उसने यौन अपराधों से संरक्षण (पॉक्‍सो) अधिनियम के तहत दर्ज एक मामले की सुनवाई में अपना फैसला देते हुए पीडि़त बालक और उसके परिवार को अंतरिम मुआवजे के तौर पर 6 लाख रुपये देने का निर्देश जारी किया।

गौरतलब है कि 13 मई को सत्र न्यायालय ने याचिकाकर्ता को अंतरिम मुआवजे के तौर पर 50,000 रुपये दिलवाए। याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील सुश्री प्रभसहाय कौर ने सीआईएस एससी नंबर 66/2020 में विद्वान एएसजे द्वारा 19 अगस्‍त, 2020 को दिए गए आदेश का विरोध करते हुए कहा कि जो राशि दी गई, वह अपर्याप्त थी। क्‍योंकि दिल्ली उच्‍च न्‍यायालय ने बीबीए के हस्तक्षेप से अंतरिम मुआवजे के तौर पर 6 लाख रुपये देने का निर्देश दिया। न्‍यायालय ने एक लाख रुपये पीड़ित को तुरंत सौंपने और अगले दो दिनों में 5 लाख रुपये देने का निर्देश दिया। न्‍यायालय ने पीड़ित और उसके परिवार की वित्तीय सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए दिल्ली राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरण (डीएलएसए) को पीडि़त लड़के और उसकी मां के नाम पर फिक्‍स डिपॉजिट में 5 लाख रुपये जमा करने का निर्देश दिया। न्‍यायालय ने डीएलएसए को यह भी सुनिश्चित करने का आदेश दिया कि मां को हर महीने ब्याज मिले।

बीबीए (BBA) की निदेशक (लीगल) सम्‍पूर्णा बेहुरा ने न्‍यायालय (Delhi High Court) के इस निर्णय को ‘‘ऐतिहासिक निर्णय’’ बताते हुए सराहना की और कहा ‘‘लिंग की परवाह किए बिना पॉक्‍सो पीड़ितों को मुआवजा देने के लिए विशिष्ट दिशा-निर्देशों/योजनाओं की तत्काल आवश्यकता है। इस फैसले ने पॉक्‍सो पीड़ितों को मुआवजा देने के लिए एक मिसाल और मानदंड निर्धारित किया है। राज्य को तुरंत एक योजना या गाइडलाइन के साथ मुआवजा देने के लिए आगे आना चाहिए, जो पॉक्‍सो (PAKSO) पीडि़तों का समय पर पुनर्वास करने में मदद करेंगे।’’

बीबीए चार दशकों से बच्चों को शोषण से मुक्‍त करने और उनकी सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए अथक प्रयास कर रहा है। बीबीए (BBA) का मानना है कि कानूनी प्रणाली बाल संरक्षण कानूनों और कल्याणकारी उपायों के प्रभावी कार्यान्वयन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। कई बच्चे ऐसे होते हैं जो अपने स्वस्थ और सुरक्षित बचपन से वंचित रह जाते हैं क्योंकि उनको तबाह करने के लिए उनके चारों ओर असामाजिक और हिंसक लोगों की कोई कमी नहीं होती। उसमें अधिकांश तो उनके परिवार के लोग या करीबी ही होते हैं। जिस पीडि़त लड़के का यहां उल्‍लेख हो रहा है उसकी घटना कोई छह साल पहले की है। उसकी मां घरेलू सहायिका का काम करती है। पिता गंभीर रूप से तपेदिक के शिकार हैं और पिछले 2 सालों से बिस्तर पर हैं। वे निम्न आय वर्ग के हैं। पीडि़त लड़के का उसके चाचा ने ही उसके घर में यौन उत्पीड़न, दुर्व्यवहार और कुकर्म किया था। बीबीए को जब इस गंभीर मामले का पता चला तो उसने इसको अपने हाथ में लिया।

गौरतलब है कि यह मामला ऐसे समय आया है जब बीबीए की सहयोगी संस्‍था कैलाश सत्यार्थी (Kailash Satyarthi) चिल्‍ड्रेंस फाउंडेशन (केएससीएफ) यौन शोषण और बलात्कार के शिकार बच्‍चों को अदालत से न्‍याय सुनिश्चित करने के लिए ‘जस्टिस फॉर एवरी चाइल्‍ड’ अभियान चला रहा है। इस अभियान का उद्देश्‍य देश के 100 जिलों में पॉक्‍सो अधिनियम के तहत चल रहे कम से कम 5000 मामलों में बच्‍चों को न्‍याय दिलाना है। इस अवधि के दौरान केएससीएफ यौन शोषण और बलात्कार के पीडि़त बच्‍चों को कानूनी और स्‍वास्‍थ्‍य सुविधाएं, पुनर्वास, शिक्षा और कौशल विकास के अवसरों की सुविधाएं प्रदान करेगा। बाल यौन शोषण के पीडि़तों और उनके परिवारों को विशेष रूप से मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य सहायता भी संगठन मुहैया कराएगा।

Exit mobile version