पटना। बीते कई दिनों से राज्य में सत्तारूढ जदयू और भाजपा में तानातनी की खबरें सरेआम हो रही थी। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की इस बार की पारी को लेकर भाजपा नेता सहज नहीं हैं। इस बात को जदयू के रणनीतिकार भी मानते हैं। समय-समय पर टकराहट की खबरें आती हैं, लेकिन कुछ देर बाद सबकुछ ठीक होने की बात की जाती है। इस बार भी ऐसा ही हुआ है।
असल में, भाजपा नेताओं की विभिन्न मुद्दों पर अलग राय के कारण मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने नाराजगी जताई थी। राज्य की उप मुख्यमंत्री रेणु देवी के उस बयान के बाद राजग गठबंधन में मतभेद की अटकले लगायी जाने लगी थी, जिसमें उन्होंने कहा था कि बिहार को विशेष श्रेणी के दर्जे की जरूरत नहीं है।
नीतीश ने रेणु देवी के उस बयान पर हैरानी व्यक्त की थी जब राज्य सरकार ने अपने योजना और कार्यान्वयन मंत्री बिजेंद्र यादव के माध्यम से नीति आयोग को एक पत्र भेजा था जिसमें रेखांकित किया गया था कि बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने से राज्य के आर्थिक विकास को गति मिलेगी। उन्होंने बिहार में भाजपा नेताओं द्वारा सड़क किनारे नमाज पर प्रतिबंध लगाने की वकालत करने पर भी नाराजगी व्यक्त की थी।
हालांकि बिहार भाजपा के प्रवक्ता निखिल आनंद ने एक बयान जारी कर कहा कि बिहार में राजग एकजुट है और कुछ नेताओं की व्यक्त ‘‘व्यक्तिगत राय’’ ‘‘गठबंधन’’ में मतभेद पैदा नहीं कर सकती।
नीतीश और उनके कट्टर प्रतिद्वंद्वी प्रमुख विपक्षी दल राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद शक्तिशाली ओबीसी नेता हैं जो 1990 के दशक के मंडल मंथन से उभरे हैं। दोनों ने 2015 के विधानसभा चुनावों से पहले एक संक्षिप्त अवधि के लिए हाथ मिलाया था, जिसमें उन्होंने भाजपा को करारी शिकस्त दी थी।