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विदेश से वैक्सीन खरीदना ऑफ द शेल्फ सामान खरीदने जैसा नहीं : डॉ. वीके पॉल

अनिवार्य लाइसेंसिंग बहुत ही आकर्षक विकल्प नहीं है। यह प्रक्रिया अधिक मायने नहीं रखती है। लेकिन सक्रिय भागीदारी, मानव संसाधनों का प्रशिक्षण, कच्चे माल की सोर्सिंग और जैव सुरक्षा प्रयोगशालाओं के उच्चतम स्तर की आवश्यकता है।

देश में 16 जनवरी शुरू हुए कोरोना टीकाकरण अभियान में 28 मई तक 20 करोड़ से अधिक लोगों को कोरोना का वैक्सीन दिया गया। पांच महीने के कम समय में टीकाकरण का यह लक्ष्य हासिल करना अपने आप में उपलब्धि है, बावजूद इसके सरकार की टीकाकरण नीति और वैक्सीन की उपलब्धता की लगातार आलोचना होती रहती है। नीति आयोग के सदस्य (स्वास्थ्य) और नेशनल एक्सपर्ट ग्रुप ऑन वैक्सीन एडमिनिस्ट्रेशन फॉर कोविड19 (नेगवैग) के प्रमुख डॉ. वीके पॉल ने टीकाकरण से जुड़ी विभिन्न बातों पर स्पष्ट जानकारी दी-

केन्द्र सरकार ने राज्यों के प्रति अपनी जिम्मेदारी छोड़ दी है?

केन्द्र सरकार वैक्सीन निर्माताओं को फंडिंग से लेकर, उन्हें भारत में विदेशी टीके लाने के लिए उत्पादन मे तेजी के लिए त्वरित मंजूरी लेने से लेकर अन्य कई महत्वपूर्ण काम कर रही है। केन्द्र सरकार मुफ्त खरीदे गए टीके को प्रशासन द्वारा लोगों तक पहुंचाने के लिए राज्यों को इसकी आपूर्ति की जा रही है। इन सभी बातों की जानकारी राज्यों को भी है। राज्यों के अनुरोध पर ही सरकार ने ऐसी व्यवस्था की जिससे राज्य अब खुद वैक्सीन खरीद सकते हैं। राज्यों को पता है कि देश में वैक्सीन उत्पादन क्षमता कितनी है और विदेशों से वैक्सीन खरीदने में क्या दिक्कतें हैं। वास्तव में जनवरी से अप्रैल महीने के बीच सरकार ने सफलतापूर्वक टीकाकरण अभियान का संचालन किया। मई महीने में भी काफी दबाव के बीच भी नियंत्रित टीकाकरण अभियान संचालित किया गया। लेकिन कुछ ऐसे राज्य हैं जिन्होंने तीन महीने के टीकाकरण कार्यक्रम में फ्रंटलाइन वर्कर्स और स्वास्थ्य कर्मियों के टीकाकरण में संतोषजनक स्थिति हासिल नहीं की, वह वैक्सीन का विकेन्द्रीकरण चाहते थे। स्वास्थ्य राज्यों का विषय है, और केन्द्र सरकार की टीकाकरण नीति राज्यों के लिए उदार बनाई गईं। टीकाकरण संबंधी वैश्विक निविदाओं के परिणाम अधिक संतोषजनक नहीं रहे, लगातार हम एक ही बात कह रहे हैं कि विश्व भर में टीकों की आपूर्ति कम है और समय में टीके खरीदना आसान नहीं है।

राज्यों को केंद्र द्वारा पर्याप्त वैक्सीन नहीं दी जा रही है?

स्वीकृत गाइडलाइन के अनुसार केन्द्र राज्यों को पर्याप्त मात्रा में वैक्सीन उपलब्ध करा रही है। यही नहीं वैक्सीन उपलब्धता के बारे में राज्यों को पहले से ही सूचना दी जा रही है। निकट भविष्य में वैक्सीन की आपूर्ति अधिक बढ़ जाएगी, जिससे राज्यों की मांग के अनुसार वैक्सीन दी जा सकेगी। सरकार के हस्तक्षेप बिना राज्य सरकारें 25 प्रतिशत वैक्सीन खुद के प्रयोग के लिए और 25 प्रतिशत वैक्सीन निजी अस्पतालों के प्रयोग के लिए प्राप्त कर रही हैं। राज्यों में कुछ स्थानीय नेता वैक्सीन उपलब्धता के बारे में अधूरी जानकारी के साथ टीवी स्क्रीन पर आते हैं और वैक्सीनन कम होने की बात कहकर पैनिक या भय वाली स्थिति पैदा करते हैं। यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है, यह समय राजनीति करने का नहीं, बल्कि महामारी के खिलाफ एकजुट होकर लड़ने का है।

सरकार बच्चों के टीकाकरण के लिए कोई कदम नहीं उठा रही है?

आज की तारीख में विश्व के किसी भी देश में बच्चों को वैक्सीन नहीं दिया जा रहा है। भारत में भी विश्व स्वास्थ्य संगठन ने बच्चों में टीकाकरण संबंधी किसी तरह का प्रस्ताव नहीं दिया है। बच्चों पर वैक्सीन की सुरक्षा और प्रभावकारिता को लेकर परीक्षण किया जा रहा है भारत में भी यह परीक्षण जारी है। बच्चों में कोविड टीकाकरण होना चाहिए या नहीं इसका निर्णय व्हाट्सएप पर इसकी जरूरत के लिए बनाए जा रहे दवाब के आधार पर नहीं किया जाएगा। इसका निर्णय हमारे वैज्ञानिकों द्वारा टीकाकरण की जांच पड़ताल के बाद ही लिया जाएगा।

विदेश से वैक्सीन खरीदने के लिए सरकार अधिक प्रयास नहीं कर रही है?

मार्च 2020 से ही केन्द्र सरकार वैक्सीन बनाने वाली सभी राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय कंपनियों के संपर्क में है। इसी संदर्भ में फाइजर, मोडर्ना और जे एंड जे के साथ कई चरण की वार्ता भी की गई। सरकार ने भारत में वैक्सीन का निर्माण करने के लिए कंपनियों को हर संभव सहायता का आश्वासन भी दिया। हमें इस बात को समझना होगा कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वैक्सीन खरीदना ऑफ द शेल्फ सामान खरीदने जैसा नहीं है। वैश्विक स्तर पर वैक्सीन की उपलब्धता सीमित है और कंपनियों की इसको लेकर अपनी अलग अलग प्राथमिकताएं हैं। वैक्सीन आवंटन के मामले में कंपनियां अपने मूल देशों को इसे पहुंचाने को तरजीह देते हैं जैसे कि हमारे देश के वैक्सीन निर्माताओं ने हमारे लिए किया। फाइजर कंपनी ने जैसे ही वैक्सीन की उपलब्धता का संकेत दिया केन्द्र सरकार और वैक्सीन निर्माता कंपनी जल्द से जल्द इसके आयात के लिए मिलकर काम कर रहे हैं। भारत सरकार के प्रयास के फलस्वरूप ही रूस की स्पूतनिक का सही समय पर परीक्षण शुरू किया जा सका, रूस ने वैक्सीन निर्माण की तकनीक भी हस्तांतरित कर दी है, जिससे जल्द ही देश में स्पूतनिक वी का उत्पादन शुरू हो सकेगा।

विदेशी वैक्सीन को भारत में प्रयोग की अनुमति देने की प्रक्रिया सरल नहीं है?

विदेशी वैक्सीन को भारत प्रयोग देने संबंधी सभी औपचारिकताओं को इसी साल अप्रैल महीने में आसान कर दिया गया है, जिसमें यूएसएफडीए, ईएमए, यूके की एमआरएचए, जापान की पीएमडीए और विश्व स्वास्थ्य संगठन के आपातकालीन प्रयोग मानक शामिल है। इन मानकों से प्रमाणित वैक्सीन को भारत में प्रयोग के लिए अब ब्रिजिंग ट्रायल की जरूरत नहीं होगी। अन्य देशों में अच्छी तरह प्रमाणित और स्थापित वैक्सीन को अब दोबारा परीक्षण की आवश्यकता को समाप्त करने के प्रावधान में संशोधन किया गया है। दवा औषधि नियंत्रक के पास किसी भी विदेशी वैक्सीन का प्रमाणिकता के लिए आवेदन लंबित नहीं है।

केन्द्र सरकार टीकों के घरेलू उत्पादन में तेजी लाने के लिए पर्याप्त प्रयास नहीं कर रही है?

वर्ष 2020 से ही केन्द्र सरकार अधिक से अधिक कंपनियों को वैक्सीन का उत्पादन करने में सक्षम बनाने में एक सूत्रधार की भूमिका निभा रही है। भारत में अभी केवल एक कंपनी (भारत बायोटेक) के पास वैक्सीन उत्पादन के लिए आईपी या इंटलेक्चुअल प्रोपर्टी राइट्स हैं। भारत सरकार ने इस बात के लिए सुनिश्चित किया है कि भारत बायोटेक के अपने संयंत्रों को बढ़ाने के अलावा तीन अन्य कंपनियों या उत्पादन संयंत्रों पर कोवैक्सिन का उत्पादन शुरू करेगें, जो एक से बढ़कर चार हो गए हैं। भारत बायोटेक द्वारा कोवैक्सिन की उत्पादन की प्रति माह क्षमता एक करोड़ से अक्टूबर से दस करोड़ तक हो जाएगी। तीन अन्य पीएयू को भी इस काम में लगाया गया है जो दिसंबर तक चार करोड़ वैक्सीन का उत्पादन करने में सहायता करेंगे। भारत सरकार के निरंतर सहयोग से सीरम इंस्टीट्यूट भी कोविशील्ड का हर महीने 6.5 करोड़ डोज से 11 करोड़ डोज प्रति माह का उत्पादन कर रहा है। भारत सरकार ने रूस की स्पूतनिक वैक्सीन के साथ हुए करार में डॉ. रेड्डी के साथ मिलकर अन्य छह कंपनियों को स्पूतनिक वी वैक्सीन उत्पादन की सहमति दी है। इसके साथ ही जायडस कैडिला, बायो-ई और जेनोवा की स्वदेशी वैक्सीन के लिए कोविड सुरक्षा योजना के तहत आर्थिक सहयोग और राष्ट्रीय प्रयोगशालाओं में तकनीकी सहायता के प्रयासों का समर्थन किया जा रहा है। भारत बायोटेक की सिंगल डोज नेजल वैक्सीन का भी सफलता पूर्वक परीक्षण किया जा रहा है, जिसे केन्द्र सरकार द्वारा वित्तीय सहायता दी गई है। यह वैक्सीन दुनिया भर के लिए गेम चेंजर साबित होगी। इन सभी साक्षेदारी के साथ वर्ष 2021 के अंत तक हम वैक्सीन की 200 करोड़ डोज का उत्पादन करने में सक्षम होगें, कितने ऐसे देश हैं जो इनती बड़ी संख्या में वैक्सीन उत्पादन की क्षमता रखते हैं? वैक्सीन निर्माण की पारंपरिक तकनीक के साथ ही आधुनिक आरएनए और डीएनए आधारित वैक्सीन निर्माण के प्लेटफार्म पर काम कर रहे हैं।

क्या केन्द्र सरकार को अनिवार्य लाइसेंसिंग लागू कर देनी चाहिए?

अनिवार्य लाइसेंसिंग बहुत ही आकर्षक विकल्प नहीं है। यह प्रक्रिया अधिक मायने नहीं रखती है। लेकिन सक्रिय भागीदारी, मानव संसाधनों का प्रशिक्षण, कच्चे माल की सोर्सिंग और जैव सुरक्षा प्रयोगशालाओं के उच्चतम स्तर की आवश्यकता है। तकनीकि हस्तांतरण पूरी प्रक्रिया की कुंजी है और यह उस कंपनी के हाथ में होता है जिसने वैक्सीन पर आर एंड डी किया है। वास्तव में हम अनिवार्य लाइसेंसिंग से एक कदम आगे बढ़ गए हैं और कोवैक्सिन के उत्पादन को बढ़ाने के लिए भारत बायोटेक और अन्य तीन संस्थाओं के बीच भागीदारी सुनिश्चित कर रहे हैं। स्पूतनिक के लिए भी इसी तरह की व्यवस्था का पालन किया जा रहा है। इस संदर्भ में अक्टूबर वर्ष 2020 में मॉडर्ना ने कहा था कि वह अपनी वैक्सीन बनाने वाली किसी भी कंपनी पर मुकदमा नहीं करेगी। लेकिन अभी भी किसी भी कंपनी ने ऐसा नहीं किया है। इससे पता चलता है कि लाइसेंसिंग सबसे कम समस्या है। अगर वैक्सीन बनाना इतना आसान होता तो विकसित देशों में भी वैक्सीन की खुराक इतनी कम क्यों होती?

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