बचपन मनाओ, बढ़ते जाओः बचपन का जश्न मनाने और आजीवन विकास को बढ़ावा देने की अनूठी पहल

75 से अधिक संगठन बच्चों के कल्याण एवं शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए एक मंच पर हुए एकजुट। बचपन के शुरूआती वर्षों की खुशियों पर रोशनी डालने के लिए लॉन्च की गयी एक शॉर्ट फिल्म

नई दिल्ली। ‘‘बचपन मनाओ, बढ़ते जाओ’ एक सामाजिक मिशन है जो हर बच्चे के समग्र विकास को बढ़ावा देते हुए बचपन का जश्न मनाता है। यह सिर्फ एक अभियान नहीं है बल्कि राष्ट्र-निर्माण का अवसर है। एक ऐसा सामाजिक मिशन है जिसकी मान्यता है कि शुरुआती बचपन के अनुभव (0-8 साल) भारत में हर बच्चे को सशक्त बनाते हैं ताकि वे अपनी पूर्ण क्षमता का उपयोग कर अपने भविष्य में सफल हो सकें।

इस पहल का लॉन्च भारत में शुरुआती बचपन और आधारभूत चरण के विकास कि दिशा में एक उल्लेखनीय उपलब्धि है । एकस्टेप फाउन्डेशन 75 से अधिक संगठनों के एक नेटवर्क का निर्माण कर रहा है, जो भारत के छोटे बच्चों के विकास, शिक्षा और कल्याण से सम्बन्धित समस्याओं को हल करने के लिए एकमत है। एकस्टेप की स्थापना नंदन नीलेकनी, रोहिणी नीलेकनी और शंकर मरुवड़ा के द्वारा की गई है।

यह पहल हर बच्चे के समग्र विकास के बुनियादी अधिकार को पूरा करने में‘सहकार’ (साझेदारी और कार्य ) की महत्वपूर्ण भूमिका की आवश्यकता पर ज़ोर देती है । ‘‘बचपन मनाओ, बढ़ते जाओ’का ‘सहकार’ ऐसी साझेदारियाँ निर्मित करने को तत्पर है जो पीढ़ियों तक असर के लिए कार्यक्रमों का लगातार संचालन एवं उनका समुचित विस्तार करेगा ।

रोहिणी नीलेकनी, सह-संस्थापक, एकस्टेप फाउन्डेशन ने इस पहल पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा- ‘‘बचपन मनाओ, बढ़ते जाओ; एक सामाजिक मिशन है जो बचपन का जश्न मनाते हुए भारत के बच्चों के सीखने की यात्रा को प्रोत्साहित करता है और बचपन अपने आप में एक महान अध्यापक होता है। हमारे देश के ये सबसे छोटे नागरिक ही हमारा भविष्य हैं। हर साल भारत में तकरीबन 25 मिलियन बच्चे पैदा होते हैं और हर साल हमें यह सुनिश्चित करने का अवसर मिलता है कि बच्चों की हर पीढ़ी को बेहतर सीखने एवं पढ़ने का मौका मिले। हमारे पास यह सर्वश्रेष्ठ अवसर है, जिसके द्वारा हम देश के हर बच्चे के लिए सीखने की ठोस नींव का निर्माण कर सकते हैं। तेजी से बदलती दुनिया में हर छोटे बच्चे को आजीवन शिक्षार्थी बनने के लिए आवश्यक मजबूत नींव देने के इस अधूरे कार्य को पूरा करने के लिए संगठनों का एक बढ़ता नेटवर्क एक साथ आया है। तो आइए, हम एक साथ मिलकर सीखने के इन अवसरों को सभी बच्चों तक पहुंचाएँ ।“

इस पहल के तहत मिशन एक शॉर्ट फिल्म लॉन्च कर रहा है, जो बचपन की छोटी-छोटी किन्तु प्रभावकारी खुशियों और ऐसे पलों का जश्न मनाती हे, जहां बच्चे बेहतर तरीके से सीखते हुए आगे बढ़ते हैं। दिल को छू जाने वाली यह फिल्म दर्शकों को ‘बचपन का जश्न’मनाने के लिए प्रेरित करती है और उनके दिलो-दिमाग पर ऐसा असर डालती है कि वे बच्चों के बुनियादी वर्षों को बेहतर बनाने के प्रति समर्पित हो जाएँ । इस एकीकृत प्रयास का उद्देश्य देखभाल करने वाले वयस्कों, विशेष रूप से माता-पिता और शिक्षकों को प्रत्येक बच्चे के समग्र विकास को समझने और प्रत्येक बच्चे के लिए बुनियादी शिक्षा को मजबूत करने के साधन के रूप में ‘अन्वेषण और खेल’ की शक्ति के महत्व को पहचानते हुए इन शुरुआती वर्षों में मौजूद अवसरों को समझने के लिए प्रोत्साहित करना है।

वैज्ञानिक रूप से यह ज्ञात है कि पहले 8 वर्षों के दौरान मस्तिष्क की प्लास्टिसिटी (ढलनशीलता) सबसे मजबूत होती है और किसी व्यक्ति के मस्तिष्क का 85 प्रतिशत से अधिक विकास 6 साल की उम्र तक हो जाता है। ये प्रारंभिक वर्ष एक बच्चे के भविष्य की नींव रखते हैं, जो उनके शारीरिक, संज्ञानात्मक और भावनात्मक विकास को आकार देता है । बच्चों के समग्र विकास पर इन वर्षों के प्रभाव को ध्यान में रखते हुए ‘बचपन मनाओ, बढ़ते जाओ’ सुनिश्चित करता है कि देश के हर बच्चे को सशक्त वातावरण मिले।

शंकर मरुवड़ा ने कहा, ‘यह मिशन आज की दुनिया में प्रारम्भिक बचपन के बारे में हमारी सोच एवं हमारे दृष्टिकोण पर पुनःविचार करने के लिए प्रेरित करता है। यह हमें प्रत्येक बच्चे के भीतर और उसके आसपास की प्रचुरता को समझने, महत्व देने और जश्न मनाने के लिए आमंत्रित करता है। हमारी भूमिका इस मिशन के लिए एक उत्प्रेरक बनने की है ताकि यह भविष्य में अपने सभी साझेदारों की मदद एवं ‘सहकार’ से शानदार ढंग से आगे बढ़ सके ।

सरकारी नीतियों, वैज्ञानिक अनुसंधान के कार्यान्वयन के दशकों के अनुभव और विकास के आधार पर यह पहल पाठ्यक्रम ढांचे के वादे और बचपन में निहित प्रचुरता को फिर से समझने और देखने की आवश्यकता पर बल देती है और साथ ही भारत के हर कोने के सबसे कम उम्र के बच्चों की भलाई की दिशा में काम करने वाले परितंत्र में प्रचुरता भी लाती है। यह एक प्रभावशाली कहानी बनेगी अगर प्रत्येक देखभाल करने वाला वयस्क बचपन के पहले आठ वर्षों को विकास के उत्सव के रूप में पहचानता है और मनाता है।