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कोरोना के संक्रमण के बीच आम आदमी के टूटते सपने और बिखरति जिंदगी ….

मुख्यमंत्री ने निर्देश दिया कि आईजीआईएमएस को डेडिकेटेड कोविड अस्पताल के रूप में परिणत करें। मुख्यमंत्री ने कहा कि जिलों में इलाज की पूरी व्यवस्था रखें, अनुमण्डल स्तर पर भी इलाज की पूरी तैयारी रखें। स्वास्थ्य विभाग, सभी जिलों के जिलाधिकारियों से कोरोना संक्रमण की अद्यतन स्थिति की जानकारी अलटरनेट डे यानी एक दिन बीच ले और उसके आधार पर जरूरी कदम उठाए।

एक आदमी की जिदंगी की उम्‍मीद अधर में लटक गयी है। उसे समझ में नहीं आ रहा है कि वह अवसाद की बढ़ रहा है अवसान की ओर। घर से निकलो तो जीवन खतरे में और घर में बैठो तो जीविका खतरे में। यह संकट एक स्‍वस्‍थ व्‍यक्ति के सामने है। त्रासदी झेल रहे व्‍यक्ति की अलग पीड़ा है।देश में जीवन का संकट और चुनौती हर व्‍यक्ति के लिए एक समान है, लेकिन जीविका का स्‍वरूप अलग-अलग है।

जीविका के मूलत: दो स्‍वरूप हैं। एक सरकारी नौकरी और दूसरा प्राइवेट नौकरी या व्‍यवसाय। सरकारी नौकरी वाले का जीवन भले संकट में हो, जीविका पर कोई संकट नहीं है। इसके विपरीत प्राइवेट नौकरी या व्‍यवसाय वाले का जीवन भी संकट में है और जीविका भी। आर्थिक सुरक्षा के बीच जीवन यापन करने वाले का मनोविज्ञान अलग तरह का है। उसे जीवन का भय सता रहा है, जीविका का नहीं।
पिछले एक साल में करोड़ों लोगों को एक जगह से दूसरी जगह पर पलायन करना पड़ा। लाखों लोगों को नौकरियों से हाथ धोना पड़ा। ये सभी प्राइवेट नौकरी और व्‍यवसाय वाले लोग ही थे। अचानक सड़क पर आये ऐसे लोगों के सामने जीवन और जीविका का संकट एक साथ सामने आ गया। आप हर दिन काम करते हैं और उसका परिणाम सामने आता है तो ऊर्जा मिलती है। लेकिन वर्तमान परिवेश में जनसंख्‍या के एक बड़े हिस्‍से के सामने न काम है, न परिणाम। जीवन की सुरक्षा के लिए जीविका को खतरे में डाल दिया। इसके अलावा उसके समक्ष कोई विकल्‍प भी नहीं है।

अवसान और अवसाद का अंतर्द्वंद्व यहीं से शुरू होता है। आगे नाथ न पीछे पगहा। जिंदा दोनों को रखना है- जीवन को भी और जीविका को भी। दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं, एक-दूसरे पर आश्रित हैं। दोनों को ऊर्जा उम्‍मीदों से मिलती है, भरोसे से मिलती है, आत्‍मविश्‍वास से मिलती है। लेकिन वर्तमान माहौल में आदमी की उम्‍मीद भी टूटती जा रहा है, भरोसा भी उठता जा रहा है और आत्‍मविश्‍वास भी कमजोर पड़ता रहा है। यही कारण है कि अवसान का भय अवसाद बढ़ा रहा है। लेकिन यह कोई अंत नहीं है, अंतिम पड़ाव नहीं है।

जिंदगी में संकट आते रहते हैं, अलग-अलग समय पर अलग-अलग रूपों में। आदमी उन्‍हीं संकटों के बीच उम्‍मीदों की यात्रा भी करता है। मीडिया ने अपनी खबरों में उम्‍मीदों पर हमला किया है, भरोसे पर हमला किया। जीवन की त्रासदी को बड़ा करके दिखा रहा है और उम्‍मीदों को गौण कर दिया है। अवसान का भय और अवसाद इसी कारण बढ़ रहा है। लेकिन जिदंगी खबर नहीं है, जो कुछ घंटे बाद विलुप्‍त हो जाती है। जिंदगी संकटों का विस्‍तार है, उम्‍मीदों का फैलाव है और आत्‍मविश्‍वास की यात्रा है। अवसान या अवसाद का भय कुछ दिन या महीने का हो सकता है, लेकिन जिजीविषा का अंत नहीं है। यही जिजीविषा उम्‍मीदों की यात्रा को राह दिखायेगी और हौसले को उड़ान देगी।

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