Home बिजनेस नहीं रहें भारतीय मसालों के बेताह बादशाह

नहीं रहें भारतीय मसालों के बेताह बादशाह

जब कोई अपने बूते अपना नाम बनाता है, तो उसका नाम दशकों तक नहीं, सदियांे तक रहता है। ऐसा ही नाम है महाशय धर्मपाल जी गुलाटी का। वही महाशय जी, जिन्हें भारत ही नहीं, पूरी दुनिया एमडीएच वाले महाशय जी के नाम से जानती है।

3 दिसंबर की तड़के सुबह पांच बजे के करीब दिल का दौरा पड़ने से उनकी मौत हो गई। भले ही आज उन्होंने 97 वर्ष की आयु में अपना नश्वर देह त्यागा हो, लेकिन उनकी कीर्ति, उनकी जीवटता और संघर्ष सदियों तक भारतीय जनमानस के लिए प्रेरणास्रोत रहेंगी।

कारोबार और फूड प्रोसेसिंग में योगदान के लिए राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने पिछले साल महाशय धर्मपाल को पद्मविभूषण से सम्मानित किया था। महाशय धर्मपाल गुलाटी के निधन पर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसौदिया ने भी ट्ववीट किया।

बता दें कि गुलाटी का जन्म 1919 में पाकिस्तान के सियालकोट में हुआ था। उनका पालन-पोषण पाकिस्तान में ही हुआ था। सियालकोट में उनके पिता ने साल 1919 में श्महाशिया दी हट्टी नाम से एक मसाले की दुकान खोली। उनके पिता यहां पर मसाले बेचा करते थे।

1953 में, गुलाटी ने चांदनी चैक में एक दुकान किराए पर ली, जिसका नाम महाशिया दी हट्टी (एमडीएच) रखा, और उन्होंने यहां भी मसालें बेचना शुरू किया। वहीं, गुलाटी ने आगे चलकर एमडीएच कंपनी की आधिकारिक शुरुआत की। धर्मपाल गुलाटी ने 1959 में एमडीएच कंपनी की स्थापना की। इसके लिए उन्होंने कीर्ति नगर में जमीन खरीदी और एक विनिर्माण इकाई स्थापित की।

उसके बाद तो जैसे इनकी मेहनत के आगे किस्मत भी बौनी पड़ गई। वर्तमान में एमडीएच मसाले लगभग 50 विभिन्न प्रकार के मसालों का निर्माण करते हैं। कंपनी की देशभर में 15 फैक्ट्रियां हैं और वह दुनियाभर में अपने उत्पाद बेचती हैं।

इस दिन तक, एमडीएच मसाले दुनिया के विभिन्न हिस्सों में निर्यात किए जाते हैं, जिसमें यूके, यूरोप, यूएई, कनाडा जैसे देश शामिल हैं। गुलाटी 2017 में भारत में सबसे अधिक वेतन पाने वाले एफएमसीजी (फास्ट मूविंग कंज्यूमर गुड्स) सीईओ बने।

 

 

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