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ड्रोन पायलट बना रही हैं किसानों को टेक सैवी

मैं किसानों को टेक फ्रेंडली बनाना चाहती हूं। पिताजी के कहने पर मेरा इस सब्जेक्ट को चुनने का एक ही मकसद था कि किसानों को नई नई तकनीकों से जोड़ सकूं। इसी सोच के साथ मैंने ड्रोन चलाना सीखा। भविष्य में अभी पीएचडी करना चाहती हूं और ड्रोन को लेकर रिसर्च करना चाहती हूं।

दीप्ति अंगरीश

अगर कुछ करने का जुनून हो, तो मंजिल तक पहुंचा जा सकता है। फिर भले ही राह में कितनी ही मुश्किलें आएं। कुछ पाने के लिए जज्बा होना चाहिए। कुछ ऐसी है हरियाणा की बेटी निशा सोलंकी की कहानी। कुछ अलग करने और समाज को समर्पित काम को लेकर निशा हमेशा उत्साहित रहती थीं। यही वजह है कि आज उन्हें निशा नहीं ‘ड्रोन पायलट’ वाली निशा के नाम से जाना जाता है। अब निशा के नाम के आगे पायलट शब्द जुड़ चुका है और वो हरियाणा की पहली महिला ड्रोन पायलट बन चुकी हैं। बात 2019 की है उन्होंने पहली बार खेतों में ड्रोन उड़ते हुए देखा था। इसके बाद से ही ड्रोन उड़ाने और खेती के लिए उपयोगी ड्रोन को लेकर निशा उत्सुक रहीं। यहीं से ही मेरे अंदर जुनून जाग गया कि मुझे किसानों को इस नई तकनीक से जोड़ना है, ताकि उन्हें इसका फायदा मिल सके। पता चला कि फिलहाल ड्रोन की सबसे ज्यादा मदद खेतों में पेस्टिसाइड स्प्रे करने में ली जा रही है।

ऐसा करके किसान पेस्टिसाइड के डायरेक्ट कॉन्टेक्ट में नहीं आएंगे और उन्हें हेल्थ से जुड़ी समस्याओं का भी सामना नहीं करना पड़ेगा। ड्रोन की मदद से पैसे और समय की बचत होती है, यहां तक कि कम पानी और कीटनाशक में खेतों का ज्यादा एरिया कवर किया जा सकता है। निशा ने इसे और जाना और मालूम चला कि यह तकनीक किसानों के लिए हितकारी है, लेकिन महिला ड्रोन पायलट को लेकर किसानों के बीच में भरोसा नहीं है। वहीं कई किसान इतने टेक फ्रेंडली नहीं होते हैं। ये ड्रोन के जरिए स्प्रे करने और खेती में इस्तेमाल होने वाले तकनीकी चीजों को एक खर्चीला प्रॉसेस मानते हैं। अपने तीन से चार साल के एक्पीरियंस की मदद से मैं हर बार उन्हे समझाने में कामयाब हो पाई।

’ड्रोन फेस्टिवल’ के दौरान निशा को प्रधानमंत्री मोदी से मिलने का मौका मिला। इतना ही नहीं, प्रधानमंत्री ने निशा को किसानों के टेक्नॉलॉजी के साथ जोड़ने के इस प्रयास के लिए सराहा है। बकौल निशा कहती हैं कि मैं किसानों को टेक फ्रेंडली बनाना चाहती हूं। पिताजी के कहने पर मेरा इस सब्जेक्ट को चुनने का एक ही मकसद था कि किसानों को नई नई तकनीकों से जोड़ सकूं। इसी सोच के साथ मैंने ड्रोन चलाना सीखा। भविष्य में अभी पीएचडी करना चाहती हूं और ड्रोन को लेकर रिसर्च करना चाहती हूं।

इसके अलावा मैं चाहती हूं कि फ्यूचर में किसानों को टेक फ्रेंडली बनाने में अपना योगदान दे सकूं। तीन साल जॉब करने के बाद मैंने मास्टर्स करने का फैसला लिया। चौधरी चरण सिंह यूनिवर्सिटी के एचएयू में ही मैंने एमटेक में एडमिशन लिया। इस दौरान ’आयोटेक वर्ल्ड एविगेशन’ के डायरेक्टर दीपक भारद्वाज से मिली और उनसे मुझे पता चला कि ड्रोन पायलट बनने के लिए चाहे तो सर्टिफाइड ड्रोन पायलट कोर्स भी कर सकती हैं। मैंने फिर लीक से हटकर इस कोर्स को किया। इस कोर्स को करने के लिए रिटेन टेस्ट और सिम टेस्ट क्वालीफाई करना पड़ता है। सिम टेस्ट के लिए उनकी तरफ 15 दिन बाद एक और मौका दिया जाता है। सिम टेस्ट करने के बाद ही वो फ्लाइंग और ड्रोन इंस्ट्रक्टर के तौर पर ट्रेनिंग देते हैं। फिलहाल, मेरा कोर्स पूरा हो गया है और मैं एक सर्टिफाइड और हरियाणा की पहली महिला ड्रोन पायलट हूं। इसके अलावा अभी फार्म मशीनरी और पावर इंजीनियरिंग में एमटेक भी कर रही हूं।

(लेखिका पत्रकार हैं।)

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