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प्रत्येक नागरिक को अपने धर्म का स्वतंत्र रूप से पालन करने का अधिकार : मौलाना महमूद मदनी

प्रस्ताव में कहा गया है कि, जमीअत उलेमा-ए-हिंद सभी मुसलमानों को ये स्पष्ट करना जरूरी समझती है कि शरीअत में दखलंदाजी उसी वक्त होती है जब मुसलमान स्वयं शरीअत पर अमल नहीं करते। अगर मुसलमान शरीअत के प्रावधानों को अपनी ज़िंदगी में लाने की कोशिश करेंगे, इस पर अमल करेंगे तो कोई कानून उन्हें शरीअत पर अमल करने से नहीं रोक पायेगा। इसलिए तमाम मुसलमान इस्लामी शरीअत पर जमे रहें, और किसी भी तरह से मायूस या हतोत्साहित न हों।

नई दिल्ली। जमीअत उलेमा-ए-हिंद के केंद्रीय प्रंबंधन कमेटी की दो दिवसीय बैठक आज देवबंद के उस्मान नगर (ईद गाह मैदान) में दारुल उलूम देवबंद के कुलपति मुफ्ती अबुल कासिम नोमानी की दुआ के साथ संपन्न हुई। बैठक की अध्यक्षता जमीअत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद असद मदनी ने की, जबकि जमीयत उलेमा-ए-हिंद के महासचिव मौलाना हकीमुद्दीन कासमी ने इसका संचालन किया। अंतिम दिन, कई महत्वपूर्ण प्रस्ताव पारित किए गए जिनमें संवैधानिक अधिकारों से वंचित करने और समान नागरिक संहिता के कार्यान्वयन, ज्ञान वापी मस्जिद और मथुरा ईदगाह, पैगंबर हज़रत मुहम्द ( सल्ल) का के बारे में अपमानजनक शब्द और हिंदी भाषा को अपनाने के संबंध में प्रस्ताव प्रमुख हैं।इसेक अलावा एक घोषणापत्र भी जारी किया गया था जिसमें सभी मुसलमानों को डर, निराशा और भावुकता से दूर रहने और अपने भविष्य की बेहतरी के लिए काम करने की सलाह दी गई । इस बैठक में इस बात को भी दोहरा गया कि मुसलमान हमेशा कुर्बानी देने के लिए तैयार रहते हैं और वे इस मामले में किसी से कम नहीं हैं।

जमीअत उलेमा ए हिन्द के अध्यक्ष, मौलाना महमूद मदनी ने अधिवेशन के दूसरे व अंतिम दिन देश के मुसलमानों से अपील कि वे देश में फासीवादी शक्तियों के मंसूबों का मुकाबला सकारात्मक ऊर्जा के साथ करें। मुसलमानों को बार बार देश से बाहर भेजने की बातें करने वालों को आड़े हाथों लेते हुए मौलाना महमूद मदनी ने कहा कि हम नहीं जायेंगे, जिसे हमें भेजने का शौक है वो यहां से चला जाए। मौलाना ने कहा जो लोग जहर उगलते हैं वो दिखाई नहीं देते लेकिन जो जहर ख़त्म करना चाहता है उसे ही दोषी करार दिया जा रहा है। मुसलमान देश का दूसरा सबसे बड़ा बहुसंख्यक हैं और नफरत के सौदागर आज भी अल्पसंखयक हैं। दो दिवसीय अधिवेशन के समापन समारोह के अवसर पर मौलाना महमूद मदनी ने कहा राष्ट निर्माण के लिए जो लोग हमख्याल हैं उनको साथ लेना है। समझदारी, हिम्मत और दीर्घकालिक रणनीति के तहत नफरत के सौदागरों को हराना है। जमीअत अध्यक्ष ने समान आचार संहिता लागू करने के कुछ राज्य सरकारों के मंसूबों पर भी कड़ी आपत्ति जताई। आपने कहा कि इन घोषणाओं से डरने की ज़रूरत नहीं है। आप ने मुस्लामानों से कहा कि वो धर्म के प्रति आस्थावान बनें और दृढ़ता का परिचय दें।

इससे पहले शाम में हुये दूसरे सत्र में अमीर-उल-हिंद मौलाना सैयद अरशद मदनी ने भी सभा को संबोधित किया और कहा कि उत्तजित हो कर मुद्दों को सड़कों पर लाने से कभी किसी को फायदा नहीं हो सकता। पिछले सत्र में दारुल उलूम देवबंद के कुलपति मुफ्ती अबुल कासिम नोमानी ने कहा कि जिन प्रस्तावों को मंजूरी मिली है, उन्हें लागू कर दिया गया है. देश के भाइयों के साथ तालमेल बिठाने और उनकी गलतफहमियों को दूर करने का भी प्रयास किया जाना चाहिए. जमीअत को अपने-अपने क्षेत्र में दीर्घकालिक नीति के अनुसार काम करना चाहिए।मौलाना सुफियान कासमी, दारुल उलूम वक्फ देवबंद के कुलपति ने कहा कि भारतीय उलेमा ही एक कुशल नेतृत्व प्रदान करते है। उन्होंने कहा कि यहाँ जो प्रस्ताव रखे गये हैं, उनके बहुत अच्छे परिणाम होंगे। ज्ञान वापी के हवाले से दारुल उलूम देवबंद के उप कुलपति मौलाना राशिद आज़मी ने कहा कि अगर सरकार को लगता है कि इससे इस्लाम के सिद्धांत खत्म हो जाएंगे तो यह उनकी बहुत बड़ी भूल है। मस्जिद को नष्ट करने वाली शक्ति को अल्लाह ने हटा दिया है।

जमीअत उलेमा असम के अध्यक्ष मौलाना बदरुद्दीन अजमल ने सरकार के रवैये की आलोचना करते हुए कहा कि मुसलमानों की चुप्पी को कमजोरी नहीं समझा जाना चाहिए। जमीअत उलेमा-ए-हिंद के नव निर्वाचित उपाध्यक्ष सलमान बिजनौरी और अमीरुल हिंद मौलाना सलमान मंसूरपूरी, मौलाना रहमतुल्लाह मीर कश्मीरी, मौलाना अजहर मदनी , कारी शौकत अली, मुफ्ती जावेद इकबाल किशन गंज, मौलाना अब्दुल कादिर असम, मौलाना इब्राहिम केरल, मौलाना इसरारुल हक झारखंड, मौलाना मुहम्मद नाजिम पटना, मौलाना मंसूर काशफी, मुफ्ती अब्दुल मोमिन अगरतला, मौलाना सईद अहमद मणिपुर, मौलाना अमीन-उल- हक अब्दुल्ला कानपुर, मौलाना शब्बीर मजाहेरी, मौलाना अब्दुल वाहिद खत्री, मौलाना अब्दुल कादिर असम, प्रोफेसर नोमान शाहजहाँ पुरी, मुफ्ती जमील-उर-रहमान प्रताप गढ़ी, और अन्य ने अपने सुझाव और समर्थन प्रस्तुत किए।

इससे पहले इस अधिवेशन में बहुप्रतीक्षित ज्ञान वापी मस्जिद, मथुरा ईदगाह और अन्य मस्जिदों के मामले में पैदा किए जा रहे विवाद पर भी सरकार और साम्प्रदायिक शक्तियों को कटघरे में खड़ा किया गया। अधिवेशन में पारित प्रस्तावमें कहा गया है कि, जमीअत उलेमा-ए-हिंद की यह बैठक प्राचीन इबादतगाहों पर बार-बार विवाद खड़ा कर के देश में अमन व शांति को ख़राब करने वाली शक्तियों और उनको समर्थन देने वाले राजनीतिक दलों के रवैये से अपनी गहरी नाराज़गी व नापसंदीदगी ज़ाहिर करती है। बनारस की ज्ञानवापी मस्जिद,मथुरा की एतिहासिक ईदगाह और दीगरमस्जिदों के खिलाफ़ इस समय ऐसे अभियान जारी हैं, जिससे देश में अमन शांति और उसकी गरिमा और अखंडता को नुकसान पहुंचा है। अब इन विवादों को उठा कर साम्प्रदायिक टकराव और बहुसंख्यक समुदाय के वर्चस्व की नकारात्मक राजनीति के लिए अवसर निकाले जा रहे हैं।

प्रस्ताव में कहा गया है कि, निचली अदालतों के आदेशों से विभाजनकारी राजनीति को मदद मिली है और ‘पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) एक्ट 1991’ की स्पष्ट अवहेलना हुई है जिस के तहत संसद से यह तय हो चुका है कि 15 अगस्त 1947 को जिस इबादतगाह की जो हैसियत थी वह उसी तरह बरक़रार रहेगी।
समान आचार संहिता पर प्रस्ताव पर अपने संबोधन में मौलाना अबू सूफियान कासमी, मोहतमिम, दारुल उलूम देवबंद, वक्फ, ने कहा कि, मुसलमानों के हौसले पस्त करने के लिए ये तरीके अपनाए जा रहे हैं। मुसलमानों को हर चैलेंज का मुकाबला करना चाहिए। आपने कहा कि मुस्लिम पर्सनल लॉ में सरकार हस्तक्षेप कर रही है। इसे कुबूल नहीं किया जाएगा। मुसलमान इस्लाम पर मजबूती से अमल करें अपने ईमान में और दृढ़ता लाएं।

इस अधिवेशन में इस्लाम धर्म और उसके अंतिम पैगंबर हजरत मोहम्मद सल्लo के लिए की जाने वाली टिप्पणियों पर गहरा रोष प्रकट किया गया। इस संबंध में पारित प्रस्ताव में कहा गया कि जमीअत उलेमा-ए-हिंद की यह बैठक बड़ी चिंता व्यक्त करती है कि धर्म के महापुरुषों , विशेष रूप से पैगंबर मुहम्मद (सल्ल्o) के नाम पर घृणित और निन्दात्मक बयानों, लेखों और नारों की एक श्रृंखला फैलाई जा रही है। जो देश के जागरूक व्यक्तियों और समूहों के लिए एक बहुत दुःख की बात है। जमीअत उलेमा-ए-हिंद की यह बैठक मांग करती है कि सरकार जल्द से जल्द ऐसा कानून बनाए जिससे मौजूदा कानून-व्यवस्था की अराजकता खत्म हो, इस तरह के शर्मनाक अनैतिक कृत्यों पर अंकुश लगे और सभी धर्मों के महापुरुषों का सम्मान हो।

इस अधिवेशन में हिंदी भाषा अपनाने पर भी बल दिया गया। प्रस्ताव में कहा गया कि उर्दू से हमारा सामुदायिक और राष्ट्रीय संबंध है, यह हमारी बौद्धिक, ऐतिहासिक और धार्मिक विरासत की संरक्षक है, और यह मुसलमानों और देश के नागरिकों की मातृभाषा भी है। लेकिन इसका यह अर्थ नहीं है कि हम बंगाली, तमिल, मलयालम, पंजाबी, गुजराती, असमिया आदि से परहेज़ करें। बल्की यह भी हमारी ही अपनी भाषाएं हैं और हमारे देश के अन्य भाइयों और बहनों के साथ संचार, आपसी समझ और संबंधों को मजबूत करने में बहुत ही सहायक हैं।

अधिवेशन के समापन पर घोषणा पत्र जारी किया गया। घोषणा पत्र जारी करते हुए मौलाना मो सलमान बिजनौरी ने कहा कि वर्तमान समय में हमारा देश एक संवेदनशील दौर से गुजर रहा है। एक तरफ कुछ ताकतें देश के दूसरे सबसे बड़े वर्ग मुसलमानों को डराने या निराश करने का प्रयास कर रही हैं। इसके परिणामस्वरूप कुछ लोगों की भावनाएं आहत हो रही है तो कुछ लोगों में भय की स्थिति जन्म ले रही है। दूसरी ओर वही ताकतें झूठे प्रोपेगंडे द्वारा देश के अन्य वर्गों से मुसलमानों को भयभीत करके घृणा पैदा कर रही हैं। इन परिस्थितियों में मुसलमानों को कुरान, हदीस और सीरत तैय्यबा (पैगंबर मोहम्मद के जीवन) के आलोक में अपने लिए वह मार्ग निर्धारित करना आवश्यक है जो भविष्य में मुसलमानों और सभी समुदायों के लिए अमन-शांति और आपसी सौहार्द्र का माध्यम बने।

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