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Expert Interview : बीते सालों में भारत में काफी कुछ बदला है : मार्क टुली

नहीं, मेरी हिंदी अच्छी नहीं है। कोशिश जारी है। दरअसल होता यह है कि जब भी हम हिंदी में कुछ समाने वाले से प्रश्न करते हैं, सामने से अंग्रेजी में जवाब आता है। जिसके कारण से हिंदी सुधर नहीं सकी।

बीबीसी के पूर्व व्यूरो प्रमुख हैं सर मार्क टुली। पत्रकारिता को नया आयाम दिया है। दशकों तक भारत में इन्होंने रिपोर्टिग की है। इनका कहना है कि आज भारत में काफी बदलाव आया है। जहां तेजी से बदलाव आया है। भारत विविधता से भरा है किसी भी पार्टी को पूर्ण समर्थन मिलना काफी अहम है। लेकिन भारत को अपनी संस्कृति को आगे ले जाने का चैलेंज भी है। सर मार्क टुली से द नेशनल बुलेटिन के लिए दीप्ति अंगरीश ने खास बातचीत की।
पेश है उस बातचीत के प्रमुख अंश :

-2014 के बाद कितना भारत बदला है। कितना बदलाव आया है भारत में।

निश्चिततौर पर देश बदला है। देश में तनाव बढ़ा है। यह नहीं होना चाहिए। देश में पहले इतना तनाव नहीं था। अब हिंदू और मुसलमानों के बीच तनाव बढ़ गया है।

-आपने कई प्रधानमंत्री देखे हैं पीएमओ कब सबसे ज्यादा स्ट्रोंग रहा है। क्या आज का पीएमओ ज्यादा स्ट्रोंग है।

पीएमओ का स्ट्रोंग होना देश के लिए खतरनाक है। इंदिरा गांधी के समय पीएमओ स्ट्रोंग था वैसे ही आज भी स्ट्रोंग है। जो खतरनाक है। आप देखिए। जब भी एलांयस की सरकार रही है ज्यादा विकास हुआ है। नरसिम्हा, अटल ओर मनमोहन की सरकार में आर्थिक विकास तेजी से हुआ है। अटल बिहारी वाजपेयी तो 17 पार्टियों को एक साथ लेकर सरकार चलाएं वह मिसाल है। भारत विविधता वाला देश है।

-बदलते भारत को आप किस रूप में देखते हैं। क्या भारत तेजी से विकास किया है।

भारत काफी कुछ बदल गया है। जब हमने शुरू किया था उस समय काफी मुसीबत थी। हालात गंभीर था। देश में भोजन की कमी थी। दुध का उत्पादन कम था, गरीबी काफी थी। भारत में तेजी से बदलाव आया। लोगों में बदलाव आया। भारत की अर्थव्यवस्था विश्व की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ गया। हालांकि भारत को यह ध्यान रखना होगा कि वह पश्चिमी संस्कृति के पीछे न जाए बल्कि अपनी संस्कृति को आगे बढ़ाएं। भारत की ऐतिहासिक संस्कृति है जिसे आगे लाने की जरूरत है जिसपर कार्य भी हो रहा है।

-भारत में आजकल अमृत महोत्सव मनाया जा रहा है। इसको आप कैसे देखते हैं।

भारत 75 वें वर्ष पर अमृत महोत्सव मना रहा है यह अतिमहत्वपूर्ण है। भारत का राष्ट्रवाद अच्छा है। भारत में उपलब्धियों बहुत है जिसे दर्शाया जा रहा है। देश गरीबी से ऊपर उठा है। लोग शिक्षित हुए हैं। जब भारत को आजादी मिली थी उस समय चीन ओर भारत दोनों गरीब देश थे। आज एशिया में दोनों देशों ने काफी प्रगति की है। लेकिन अभी भी भारत में शिक्छा ओर स्वास्थ्य क्षेत्र पर ध्यान देने की जरूरत है जिसकी कमी दिख रही है। इस ओर सरकार को विशेष ध्यान देने की जरूरत है।

भारत की खूबसूरती यहां की विभिन्नता है। भारत की असली संस्कृति गांव में दिखती है। यह ऐसा देश है जहां सिक्ख, जैन, इस्लाम, बौद्ध एक साथ पनप सकते हैं। यही खूबसूरती इस देश की विशेषता है।

-आप बीबीसी जैसे सशक्त मीडिया में अनवरत रूप से कार्य किया है। अभी भारत के मीडिया में कितना बदलाव आ गया है।

पहले से काफी मीडिया में बदलाव आ गया है। पहले मीडिया ज्यादा सशक्त था। आजकल मीडिया व्यापार बन गया है। पहले ऐसा नहीं था। आपातकाल में बीबीसी को बंद करने की कोशिश भी की गई थी। आजकल मीडिया अपने आप से सरकार से सिफारिश करता है। सरकार के खिलाफ नहीं लिखता है। लेकिन अभी भी कई ऐसी मीडिया संस्थान है जो सरकार के हां में हां मिलाने में नहीं है उसे जरूरत के अनुसार सरकार को आगाह करती रही है। जिसमें द वायर, इंडियन एक्सप्रेस जैसी संस्थान हैं।

-आजकल टिवटर की खबर को ही ट्रेंड बनाकर रिपोर्टिंग की जा जाती है इसको आप कैसे देखते हैं। न्यूज रूम में तब्दीलियां को लेकर।

न्यूज रूम में काफी बदलाव आ गया है। पहले कोई हम रिपोर्ट देते थे तो इसकी चेकिंग होती थी आजकल यह ट्रेंड खत्म हो गया। जबकि यह होना चाहिए क्योंकि खबर का असर जनता पर सीधे तौर पर पड़ता है। आजकल की रिपोर्टिंग में भी काफी बदलाव आया है। लोगों के दुख में दखलंदाजी नहीं करनी चाहिए। रिपोर्टिंग ठीक नहीं है। आजकल संस्था से रिपोर्टर अपने आपको ऊपर भी मान लेते हैं। जबकि संस्था को मजबूत होना ही चाहिए।

-आपने अन्ना के आंदोलन के समय एक बयान दिया था जो काफी चर्चित रहा। आपने मीडिया को चीयर्स लीडर्स कहा।

जी हां पूरी तरह से इसी तरह की भूमिका में मीडिया था। इसलिए कहा गया था। जो कि नहीं होना चाहिए।

-आपने भारत में कई चुनाव को कवर किया। क्या कुछ अब बदलाव आ गया है।

आजकल हर चुनाव में बहुत पैसा खर्च होता है। पहले इतना पैसा खर्च नहीं होता था। आजकल चुनाव में पानी की तरह पैसा बहाया जाता है। गांव गांव में पोस्टर लगे होते हैं। मनी गेम हो गया है आज का चुनाव।

-चुनाव के मुद्दे को आप कैसे देखते हैं। गरीबी मुद्दे बनता है लेकिन खत्म नहीं होता है।

कई मुद्दे हैं। गरीबी जस के तस है। देखिए शिक्षा के लिए बजट बनता है। लेकिन होता क्या है। गांव के नब्बे फीसदी स्कूलों में शिक्छक नहीं है। ऐसे में शिक्षा बजट बन जाने से क्या लाभ होने वाला है। समस्या के जड़ में जाने की जरूरत है।

आज भी भारत में अंग्रेजी हुकूमत की बनाए नियम पर कार्य हो रहा है चाहे पुलिस हो या एजुकेशन दोनों जगह यही बात है।

-ऐसा कहा जाता है यह कह सकते हैं कि आप पर आरोप है कि अंग्रेजी मीडिया भारत की गरीबी को बेचती है। गरीबी का बाजार बनाया है। आप इसको कैसे देखते हैं।

गरीबी की रिपोर्टिंग करना अच्छा है। हम पर भी आरोप लगे। बीबीसी के डीजी ने बुलाकर हमें नसीहत दिए की आप भारत में जो विकास हुआ है उसे दिखाएं। हमने विकसित राज्य गुजरात पर फिल्म बनाई जिसकी भी आलोचना की गई। मीडिया अपने हिसाब से ही कार्य करता रहा है।

-भारत में जनजातियों की अलग समस्या है। मोदी सरकार ने उनके सम्मान के लिए जनजातिय सम्मान दिवस भी मना रहे हैं। आपने काफी जनजातियों की स्टोरी की है। आप इसको कैसे देखते हैं।

आदिवासियों के सामने कई समस्याएं हैं। वे सैंडबिच की तरह बंधे हैं। एक तरफ पुलिस उन्हें सताती है तो दूसरी तरफ नक्सल के गिरफ्त में हैं। उनके लिए निकलने का कोई रास्ता नहीं है इस कारण से उनकी समस्याएं बढ़ी है इस पर कार्य करने की जरूरत है।

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