Home लाइफस्टाइल खबरों में हौसले को प्राथमिकता मिले

खबरों में हौसले को प्राथमिकता मिले

धीरज से काम लीजिये हम जरुर बचेंगे औऱ सही तरीके से इतिहास में दर्ज करवाएंगे। उन सबका हिसाब करेंगे जिन्होंने जिंदगी बचाने में खुद को खपाया है औऱ उनका भी जिन्होंने अपनी जिम्मेदारी से मुंह चुराई है।

यह सदियों से आजमाया सच है। आपदाएं जाने के लिए ही आती है। महामारी का समय सीमित है। उस पार फिर वही मस्ती है। उड़ान भरी जिंदगी है। जैसा महामारी से पहले थी। इस यकीन को पक्का रखिए। महामारी के वक्त धैर्यपूर्ण आचरण ही मानवता के विस्तार की पूंजी है।

दादी- नानी से सुनी कहानियां हैं। महामारी आया तब देश गुलाम था। डोलते हेल्थ इंफ्रास्ट्रचर को कटघरे में खड़ा कर हम सवाल दर सवाल दागे जा रहे हैं। एक्सक्लूसिव बताकर महामारी की भयावह तस्वीरें पेश किए जा रहे हैं, उसकी बात तब बेमानी थी। संक्रमण से बचाने वाली अंग्रेजी दवाएं न के बराबर थी। लोग वैकल्पिक चिकित्सा के सहारे थे। बीते सदी में आजमाए बचाव के उन तरीकों को आज की कसौटी पर कसना संभव क्यों नहीं, यह बाद में जान लेंगे। उन महामारियों में जो बचे हम उनकी संतति हैं।

बीते सदी में बारी बारी से पांच सालों तक आए चेचक, इंफ्लूएंजा और हैजा के संक्रमण से इंसानियत हिल गई थी। संक्रमण से बचने के लिए आज जैसा दो गज क्या दो सौ गज की दूरी वाला एसओएस जारी था। गांव के गांव सुड्डाह होने लगे। तब इंसानियत का जज्बा काम करने लगा। हिम्मत जाग उठी। खत्म होती जिंदगी को आसरा देने लोग खडे हो गए। लावारिसों को गोद मिला। महामारी से निपटने के लिए हरावल दस्ता बना। जिन गांवों में बीमारों के तामीरदार नहीं बचे, वहां से मरीजों को उठाकर प्राकृतिक चिकित्सा के सुरक्षित कैंपों तक पहुंचाया गया। अपना पराया भूलकर तामीरदारी के लिए काम करने वाली निष्ठापूर्ण टोलियां बनी।

काढा, होम्योपैथिक दवाईयां, जड़ी-बूटी,बारलिस पानी, नीम, हल्दी, अदरख आदि के इस्तेमाल और घरेलू नुस्खों से लाखों जिंदगियां बचाई गई। लावारिस मृतकों को अंतिम संस्कार के लिए सम्मानपूर्ण कंघा दिया गया। महामारी खत्म हुआ, तो मानवता की मिसालों को गाया गया। बेहतर करने वाले गांवों का नाम तक सम्मान के शीर्ष पर रखा गया। जिंदगी बचाने वालों को अपेक्षित सम्मान मिला। इलाके के कई सम्मानित गांवों का मूल नाम छोड़ “बड़का गांव” कहा जाने लगा। आज भी बिहार झारखंड में कई गांव का नाम बड़का गांव है और वहां के निवासियों के लिए इलाके में खास सम्मान है। मौत के खौफ से उबरकर संक्रमण के प्रोटोकॉल के बजाय जिंदगी बचाने में लगने वाले ज्यादातर लोग बचे रहे। हम उसके गवाह हैं ।

No News is Good News वाली कहावत पर टिके रहना ठीक है। लेकिन यथार्थ हो तो तारीफ की खबर परोसने से आज हिचकने की जरुरत नहीं है। क्योंकि इससे झूठा ही सही डोलती व्यवस्था पर यकीन बनाए रखने का हौसला मिलता है। ऐसी खबरें मुश्किल घड़ी में जिंदगी को बचाने का काम करती हैं। हालत बदल डालने के मकसद से बुरी खबरों को दमदार बनाकर उजागर करना, ठीक तो है लेकिन अगर इनसे मरीजों की परेशानी बढती है, तो फिलहाल टाल देना ज़्यादा ठीक है। जिंदगी के जंग को मजबूती देने में दिक्कत पैदा करने वाली खबरों को फिलहाल मुंह मोड़ लेने की जरुरत है।

धीरज से काम लीजिये हम जरुर बचेंगे औऱ सही तरीके से इतिहास में दर्ज करवाएंगे। उन सबका हिसाब करेंगे जिन्होंने जिंदगी बचाने में खुद को खपाया है औऱ उनका भी जिन्होंने अपनी जिम्मेदारी से मुंह चुराई है।

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