दिव्यांगों के लिए नया अवसर दे गया जी20 शिखर सम्मेलन

जब आप एक रैंप बनाते हैं, तो यह बुजुर्ग व्यक्तियों, गर्भवती महिलाओं, बच्चों और उन लोगों की मदद करता है, जो अस्थायी रूप से बीमारियों / दुर्घटनाओं से पीड़ित हैं या फिर इसी तरह की किसी समान परिस्थिति से ग्रसित हैं। विकलांगता बजट सभी के लाभ के लिए कुशल स्थान और सिस्टम बना सकता है और भारत को ’सबका साथ-सबका विकास’ के आधार पर काम करने वाले देश के रूप में स्थापित कर सकता है।

दीप्ति अंगरीश

पूरी दुनिया ने भारत में हुए जी20 के शिखर सम्मेलन की सफलता को देखा और समझा है। विदेशी मीडिया ने भी इसकी प्रशंसा की है। आम जन से लेकर खास तक इसकी अमिट छाप पड़ी है। खास बात यह भी रही कि विकलांगों, जिन्हें प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी दिव्यांग कहते हैं, के लिए भी जी 20 शिखर यादगार रहा।
सी 20 स्टीयरिंग कमेटी की सदस्य निधि अशोक गोयल से बात हुई थी, तो उनका कहना था कि भारत की जी20 अध्यक्षता ने हम विकलांग व्यक्तियों को एक अनूठा अवसर प्रदान किया है, जो हमारे अधिकारों को बढ़ावा देने और हमारे अस्तित्व को प्रकाश में लाने का काम बखूबी कर रहा है। हमारे प्रधानमंत्री जी के देखरेख में भारत, सिविल 20 के भीतर एक बड़ा, साहसिक और महत्वाकांक्षी कदम उठाने में सक्षम रहा है और इसने डिसेबिलिटी, इक्विटी और जस्टिस पर एक वर्किंग ग्रुप की स्थापना करके इतिहास रचा है। यह एक ऐतिहासिक कदम है और मैं भारत के नेतृत्व के लिए तहे-दिल से आभारी हूँ।
असल में, जी 20 के आधिकारिक इंगेजमेंट ग्रुप- सिविल 20 में विकलांग व्यक्तियों के लिए पहले कभी-भी अलग से या कोई एक्सक्लूसिव वर्किंग ग्रुप नहीं रहा है। इससे हमें एक नई पहचान मिली है, अब लोग पहचानते हैं कि विकलांग व्यक्ति भी मौजूद हैं और नीति में उन पर विचार किया जाना महत्वपूर्ण है, और वे भी सामने से नेतृत्व कर सकते हैं। सिविल 20 नागरिक समाज की आवाज को बुलंद करने वाला स्थान है, और डिसेबिलिटी, इक्विटी, जस्टिस वर्किंग ग्रुप के द्वारा हम वास्तव में यही कर रहे हैं। यहां हमारे लिए वैश्विक स्तर पर सार्थक उदाहरण स्थापित करने का अवसर है कि समावेश का मतलब विकलांग व्यक्तियों को सिर्फ चर्चा में शामिल करने से नहीं होता, बल्कि उनको नेतृत्व का स्थान देने, उन्हें निर्णय लेने में शामिल किए जाने से होता है। बतौर उदाहरण, निधि अशोक गोयल ने कहा था कि एक विकलांग महिला के रूप में, मैं न सिर्फ डिसेबिलिटी, इक्विटी, जस्टिस वर्किंग ग्रुप का नेतृत्व कर रही हूँ, बल्कि मैं सिविल 20 इंडिया की संचालन समिति में भी कार्यरत हूँ।
दरअसल, विकलांग लोगों के साथ कुछ और नहीं बल्कि सामान्य लोगों की तरह एकसमान अधिकार, सम्मान व अवसरों तक बराबर पहुंच जैसा व्यवहार करने की आवश्यकता है। हम जब एक बार उनकी स्किलिंग, रीस्किलिंग और एजुकेशन, खासकर हायर एजुकेशन में निवेश करना शुरू करते हैं, और उन्हें समाज के साथ मिलाने या एकीकृत करने की दिशा में बराबर मात्रा में काम करते हैं, तो यह निश्चित ही हमें समय के साथ अपनी सोच को दान या चैरिटी से अलग हटाकर सम्मान व समावेशिता की तरफ परिवर्तित करेगा। इसका क्या मतलब हुआ? इसका मतलब साफ है कि समाज के कई हिस्सों में विकलांग लोगों को अभी भी समाज पर बोझ के रूप में देखा जाता है।
उनमें निवेश करने, उन्हें समर्थन देने, समान अवसर और पहुँच प्रदान करने का अर्थ होगा कि वे भी देश में समान रूप से धनार्जन करने वाले नागरिक बन सकेंगे और अर्थव्यवस्था में अपना अहम् योगदान दे सकेंगे। बेशक, यह विकास को बढ़ावा देने में मदद करेगा, इस दिशा में हुए अध्ययन बताते हैं कि अगर हम क्षमता का निर्माण नहीं करते हैं या विकलांग व्यक्तियों को अवसर प्रदान नहीं करते हैं, तो उन्हें इस पूरी प्रक्रिया से बाहर रखने का हर्जाना, जीडीपी का 7 प्रतिशत तक हो सकता है।
भारत की एजुकेशन पॉलिसी में विकलांगता भी शामिल है, यहां तक कि क्रिमिनल लॉ अमेंडमेंट एक्ट में, विकलांग महिलाओं और उनकी विशेष जरूरतों का उल्लेख भी किया गया है। विकलांगता अधिकार 2016, दुनिया के सबसे प्रगतिशील अधिकारों में एक है। हालांकि, अभी भी एक बड़ा क्षेत्र खाली नजर आता है, जहां दिव्यांगजनों के समावेशन के लिए, बहुत सारे काम किए जा सकते हैं, जैसे डिसेबिलिटी से अलग डाटा कलेक्शन से लेकर अनुकूल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर और ट्रांसपोर्ट, हायर एजुकेशन में इंटीग्रेशन, और जॉब मार्केट्स में शामिल किए जाने तक, बहुत से काम किए जाने की जरुरत है।
हमें इंसेंटिव और पेनल्टी सिस्टम की भी आवश्यकता है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि प्राइवेट प्लेयर्स या निजी कंपनियां, विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों का पालन कर रहे हैं और उन्हें अवसरों तक एक समान अवसर प्रदान कर रहे हैं। मुझे यह भी लगता है कि शुरूआती बाधा, केवल मानसिकता की बाधा ही है। एक बार जब हम ऐसी किसी गलत धारणा को चुनौती देने, मानसिकता बदलने और लोगों में प्रचलित अवधारणाओं को बदलने में कामयाब हो जाते हैं, तो निश्चित ही एक बड़ी जीत प्राप्त कर ली जाएगी।
शुरुआत से ही बच्चों को स्कूलों में अन्य विकलांग बच्चों को अपने बराबर ही देखना चाहिए; इसके अलावा हमें विकलांग सहकर्मियों के साथ काम करने को, एक रोजमर्रा के अनुभव के रूप में देखना चाहिए, क्योंकि हमें जरूरत है किस हम विकलांग व्यक्तियों को एक सहयात्री, तकनीशियन, डिलीवरी पर्सन, ऐसे आम और रोजमर्रा की भूमिकाओं में देखें। मूल रूप से, भारत को मानसिकता बदलने और फिर विकलांग व्यक्तियों के लिए पूरी तरह से स्वतंत्र जीवन जीने के लिए, एक बेहतर इंफ्रास्ट्रक्चर का निर्माण करने की दिशा में काम करने की आवश्यकता है। हमने इस दिशा में कई कदम बढ़ाए हैं और कई कदम बढ़ाने की आवश्यकता है।
किसी भी क्षेत्र में विकास और इसमें विस्तार के लिए बजट का आवंटन काफी महत्वपूर्ण है। भारत ने विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन की पुष्टि की है। हम सतत विकास लक्ष्यों के लिए प्रतिबद्ध हैं और इस अमृत काल में हमने निकट भविष्य में एक विकसित देश बनने का संकल्प लिया है। यह सब हासिल करने के लिए, विकलांगता समावेशन के लिए बजट का आवंटन अनिवार्य होगा।

(लेखिका पत्रकार हैं।)