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ऑस्टियोऑर्थराइटिस रोगियों के लिए है गुड न्यूज, रिहृयुमेटॉलॉजी विभाग ने आयुष समिट में किया एमओयू पर हस्ताक्षर

नई दिल्ली। गुजरात के गांधी नगर में आयोजित तीन दिवसीय ग्लोबल आयुष इनोवेशन एंड इवेस्टमेंट समिट में एम्स और आयुष मंत्रालय के बीच भी साझेदारी पर हस्ताक्षर किए गए हैं। एम्स के रिहृयुमेटोलॉजी विभाग की प्रमुख डॉ. उमा कुमार ने इस साझेदारी पर हस्ताक्षर किए। इस साझेदारी के बाद एम्स ऑटो इम्यून बीमारी ऑस्टियोआर्थराइटिस के इलाज में आयुष में भी संभावनाएं तलाशेगा। इस बावत शोध के लिए 150 मरीजों को परीक्षण के लिए पंजीकृत किया जाएगा। जिसमें 75 मरीजों पर आयुष की पद्धतियों को अपनाया जाएगा तथा 75 मरीजों को सामान्य अब तक दिया जाने वाला इलाज ही दिया जाएगा।

एम्स के रिहृयुमेटोलॉजी विभाग की प्रमुख डॉ. उमा कुमार ने बताया तीन दिवसीय समिट में विभिन्न कंपनियों, देशों और मंत्रालयों के साथ आयुष के काम करने की सहमति के साथ ही एम्स ने भी इस संदर्भ में एक एमओयू पर हस्ताक्षर किए हैं। आयुष मंत्रालय के सेंट्रल आयुर्वेदिक रिसर्च इंस्टीट्यूट और एम्स के साथ हुई साझेदारी में मरीजों को मॉडर्न और पारंपरिक इलाज दिया जाएगा। ऑटोइम्यून बीमारी ऑस्टियोऑर्थराइटिस एक डिजेनेरेटिव बीमारी है, जिसमें सेल्स के ऑटो इम्यून होने से हड्डियों की चिकनाहट या कार्टिलेज कम होने लगता है। इस बीमारी में मुख्यत: जोड़ों जैसे कोहनी, घुटना, हाथ की अंगुलियों या फिर टखने को प्रभावित होते हैं। एक समय के बाद इलाज न कराने पर इस डिस्ऑर्डर से हाथ व पैरों में विकलांगता भी हो जाती है।

डॉ. उमा ने बताया कि चालीस के बाद किसी भी उम्र में यह डिस्ऑर्डर किसी को भी प्रभावित कर सकता है। अब तक इस बीमारी में महिलाएं अधिक पीड़ित देखी गई है। एलोपैथी में इलाज के दौरान दवाओं से डिस्ऑर्डर को नियंत्रित किया जाता है, जबकि इस श्रेणी की आर्थराइटिस का अभी तक पूरा इलाज संभव नहीं है। 90 प्रतिशत कम उम्र के लोगों में ऑस्टियोआर्थराइटिस की वजह अनियमित दिनचर्या भी देखी गई है। आयुष के साथ साझेदारी के बाद इस बीमारी के मरीजों के लिए इलाज की एक नई किरण पैदा होगी। आयुष पद्धतियों में मौजूद थेरेपी से डिस्ऑर्डर को नियंत्रित करने की कोशिश की जाएगी, इसके लिए शरीर के विभिन्न बायोमार्कर, प्रोटीन व हार्मोन्स का आकलन किया जाएगा। पंचकर्म और आदि क्रियाओं को आयुष में शरीर को डिटॉक्स करने की सर्वोत्तम विधि बताया गया है। साझेदारी के बाद दवाओं के साथ ही इस बीमारी से पीड़ित मरीजों को वैकल्पिक पद्धतियां भी इलाज के लिए दी जाएगी।

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