Guest Column : छुपकर आक्रमण करना अनैतिक सत्ता लोभ

माना जाता है कि एक पार्टी दूसरी पार्टी के विधायकों को लालच देकर अपनी ओर आकर्षित करने की कोशिश करती है। अगर ऐसा संभव हो पाता है तो विधानसभा में सत्ताधारी पार्टी का संख्याबल कम हो जाता है और सत्ता के समीकरण बदल जाते हैं। ऐसे में विपक्ष में बैठी पार्टी के पास सत्ता में वापसी का रास्ता खुल जाता है।

निशिकांत ठाकुर

देश के कई राज्यों में भारतीय जनता पार्टी की सरकार है, कई राज्यों में उसकी गठबंधन की सरकार है। देश के शीर्ष और संपन्न माने जाने वाले महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, दिल्ली, पंजाब, राजस्थान, छत्तीसगढ़, झारखंड और तमिलनाडु में भाजपा की सरकार नहीं है। यही बात समय समय पर भाजपा नेतृत्व को सालती— कचोटती रहती है और इसी का परिणाम है महाराष्ट्र साहित देश के कई गैर भाजपा शासित प्रदेशों की सरकार को बार—बार अस्थिर कर उसे गिराने का भरपूर प्रयास किया जाता रहा है। सभी राज्यों पर तो आगे-पीछे बात होती रहेगी, लेकिन इस बार उस महत्वपूर्ण राज्य की बात, जहां की सरकार को केंद्र सरकार द्वारा अस्थिर करने का भरपूर प्रयास किया जा रहा है, या फिर वहां के नेताओं पर केंद्रीय जांच ब्यूरो, प्रवर्तन निदेशालय के नाम पर अंकुश लगाकर और दबाव बनाकर रखा जाता है, ताकि भय से वे उनके खेमे में आ जाएं। यह ठीक है कि राजनीति में कुछ भी हो सकता है, लेकिन जिस तरह मार्केटिंग की ताकत से झूठ का सहारा लेकर बेहतरीन जुमलों से भोली—भाली जनता को बरगलाकर सत्ता हथियाने की प्रवृति हाल के वर्षों में बढ़ी है, ऐसा पहले नहीं होता था। हां, यह ठीक है कि साम-दाम-दंड-भेद राजनीति के मूल—मंत्र हैं, लेकिन कुछ वर्षों में इस मंत्र का जिस प्रकार दुरुपयोग किया गया है, उसे जनता और भारतीय लोकतंत्र के हित में तो कतई नहीं माना जा सकता है।

महाराष्ट्र में पिछली बार यही तो हुआ था कि रातोंरात राष्ट्रपति शासन वापस लेकर सुबह— सबेरे बिना नाश्ता—पानी के ही देवेंद्र फडणवीस राज्यपाल के समक्ष उपस्थित होकर मुख्यमंत्री पद का शपथ भी ग्रहण कर लिया। लेकिन, मजे हुए धुरंधर राजनीतिज्ञ शरद पवार के सामने भाजपा की यह कुटिल चाल सफल नहीं हुई और तत्काल कुछ ही घंटों में मुख्यमंत्री को भूतपूर्व मुखमंत्री होने का गौरव प्राप्त हो गया। पता नहीं देवेंद्र फडणवीस को इतनी जल्दी क्यों थी! साथ ही भाजपा के वरिष्ठ नेताओं में इतना धैर्य क्यों नहीं था कि वह नियमानुसार संवैधानिक तरीके से अपना कार्य करते और यदि सब कुछ साफ हो गया था तो फिर अपनी गरिमा के अनुकूल समारोहपूर्वक शपथ ग्रहण करके देवेंद्र फडणवीस को मुखमंत्री बनाते। यदि ऐसा किया गया होता तो फिर तब किस कानून के तहत उस शपथग्रहण को अवैध ठहराया जा सकता था? भाजपा को सत्ता पर काबिज होने की ऐसी हड़बड़ाहट क्यों रहती है? इसलिए तो इस पर कई बुद्धिजीवी तंज कसते हैं कि ‘देर होने से उनका कितना नुकसान हो जाएगा, इसे केवल वही समझ सकते हैं।’ आज महाराष्ट्र में जो हो रहा है, सच में वह है क्या? अब समझना यह होगा कि महाराष्ट्र में चल रहे इस खेल का पटाक्षेप कब और कैसे होता है। अब तक तो इसे भाजपा का ही ‘खेल’, यानी ‘आपरेशन लोटस’ माना जा रहा हैं। देखना यह होगा कि भाजपा को सत्ता में आने से रोकने के लिए महाराष्ट्र की सत्तारूढ़ पार्टी क्या दांव चलती है।

महाराष्ट्र के इस सियासी दांव को खेलने वाले सरकार के कैबिनेट मंत्री तथा शिवसेना के सम्मानित नेता एकनाथ शिंदे शायद उतने सक्षम नहीं थे कि वे कुछ विधायकों को साथ लेकर महाराष्ट्र की चलती सरकार को बीच रास्ते में पटखनी दे दे। लेकिन, ऐसा हुआ है। स्वयं एकनाथ शिंदे ने कहा है कि उनकी ताकत को आंकना आसान नहीं है। यहां इस प्रकरण को रामायण काल से पुष्ट किया जा सकता है कि बाली ने दोबारा सुग्रीव की ललकार सुनी तो उसके क्रोध का ठिकाना न रहा। तारा को शायद इस बात का बोध हो गया था कि सुग्रीव को राम का संरक्षण हासिल है; क्योंकि अकेले तो सुग्रीव, बाली को दोबारा ललकारने की हिम्मत कदापि नहीं करता। अतः किसी अनहोनी के भय से तारा ने बाली को सावधान करने का प्रयास किया। उसने यहां तक कहा कि सुग्रीव को किष्किन्धा का युवराज घोषित कर बाली उसके साथ संधि कर ले। लेकिन, बाली ने इस शक से कि तारा, सुग्रीव का अनुचित पक्ष ले रही है, उसे दुत्कार दिया। हां, उसने तारा को आश्वासन दिया कि वह सुग्रीव का वध नहीं करेगा और सिर्फ़ उसे सबक सिखाएगा। दोनों भाइयों में फिर से द्वंद्व शुरू हुआ, लेकिन इस बार राम को दोनों भाइयों को पहचानने में कोई ग़लती नहीं हुई और उन्होंने बाली पर पेड़ की ओट से बाण चला दिया, जिसने बाली के हृदय को वेध डाला और वह धाराशायी होकर गिर गया। कभी राजनीति में बगावत छुपकर कराना और कभी आमने-निशाना साधना भाजपा की पुरानी रीति-नीति रही है। कहा तो यह भी जाता है कि इसमें इसके निर्णायक मंडल को महारत भी हासिल है। दरअसल, भाजपा पर अक्सर ऐसा आरोप लगता रहा है कि उसने ‘ऑपरेशन लोटस’ के तहत कई राज्यों में सरकार बनाई है। इस आरोप में दम भी है, क्योंकि इतिहास इस आरोप के पक्ष में हामी भरता है।

भाजपा ने साल 2004 के बाद से कई बार यह खेल खेला है, क्योंकि ‘ऑपरेशन लोटस’ सबसे पहले उसी साल चर्चा में आया था जब भाजपा ने कर्नाटक में धरम सिंह की सरकार गिराने की कोशिश की थी। तब विपक्ष ने ही इसे ‘ऑपरेशन लोटस’ का नाम दिया था। वर्ष 2004 के बाद 2008 में भी ‘ऑपरेशन लोटस’ के तहत भाजपा ने कर्नाटक में सरकार बनाई, लेकिन वर्ष 2014 में की केंद्र में भाजपा सरकार बनने के बाद ‘ऑपरेशन लोटस’ का जमकर इस्तेमाल किया गया और एक के बाद कई राज्यों की सरकार हिलाई गईं। कर्नाटक, मध्य प्रदेश, गोवा, राजस्थान, महाराष्ट्र, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर और उत्तराखंड में भाजपा ने या तो अपना कमल खिलाया या फिर पूरी कोशिश की और सफल नहीं हो पाई।

अभी महाराष्ट्र में चल रहे सियासी घमासान पर एनसीपी चीफ शरद पवार ने कहा, ‘महाराष्ट्र में हमारी सरकार अच्छी तरह चल रही है। जो कुछ अभी हुआ है, वह ढाई साल में तीसरी बार हुआ है। इससे पहले भी हमारे विधायकों को बुलाकर हरियाणा में रखा गया था, लेकिन बाद में हमने सरकार बनाई और सरकार सही से चल रही है।’ क्या महाराष्ट्र सरकार में होगा बदलाव? एकनाथ शिंदे को लेकर किए गए सवाल पर शरद पवार ने कहा, ‘तीनों पार्टियों में मुख्य जिम्मेदारी शिवसेना की है। वहां किसी को मौका देना, यह उनका आंतरिक मामला है।’ साथ ही उन्होंने कहा कि उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में बदलाव की कोई जरूरत नहीं दिख रही है। शरद पवार ने सियासी घमासान पर कहा कि उनकी अभी किसी भी विधायक से बात नहीं हुई है। हालांकि, शिवसेना, कांग्रेस और हम साथ हैं। शिवसेना जब तक नहीं बताएगी कि क्या समस्या है, तब तक हम किसी तरह का कदम नहीं उठाएंगे।

महाराष्ट्र विधानसभा सचिवालय ने बागी विधायकों को अयोग्य ठहराये जाने की मांग पर एकनाथ शिंदे गुट के 16 विधायकों से 27 जून की शाम तक लिखित जवाब मांगा था। अब सुप्रीम कोर्ट ने डिप्टी स्पीकर के नोटिस पर रोक लगा दी है। शिवसेना के बागी नेता एकनाथ शिंदे की ओर से महाराष्ट्र विधानसभा के डिप्टी स्पीकर नरहरि सीताराम जिरवाल द्वारा उन्हें और 15 अन्य विधायकों को अयोग्य ठहराए जाने के नोटिस के खिलाफ दायर दो याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई की गई। वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे शीर्ष अदालत में शिंदे गुट की ओर से पेश हुए। अभिषेक मनु सिंघवी ने सुप्रीम कोर्ट में उद्धव कैंप का पक्ष रखा। सुप्रीम कोर्ट ने एकनाथ शिंदे को जवाब देने के लिए 11 जुलाई की शाम साढ़े पांच बजे तक का वक्त दिया है। इस समय में डिप्टी स्पीकर बागी विधायकों को अयोग्य नहीं ठहरा सकते। उल्लेखनीय है कि डिप्टी स्पीकर ने बागी विधायकों को जवाब देने का आज तक वक्त दिया था जिसे सुप्रीम कोर्ट ने 11 जुलाई तक बढ़ा दिया है। इस बीच महाराष्ट्र राजनीतिक संकट को लेकर बॉम्बे हाईकोर्ट में दायर जनहित याचिका में एकनाथ शिंदे, शिवसेना के बागी विधायकों, मंत्रियों को तुरंत राज्य में लौटने और कर्तव्यों का निर्वहन करने का निर्देश देने की मांग की गई है। याचिका में कर्तव्यों पालन में चूक के लिए बागी विधायकों के खिलाफ कार्रवाई की भी मांग की गई है।

इससे पहले एकनाथ शिंदे ने बाद में ट्वीट किया कि वह इसे अपनी नियति मानेंगे, भले ही उन्हें ‘हिंदुत्व का पालन करने’ के लिए मरना पड़े। शिंदे गुट, जो 22 जून से गुवाहाटी के एक होटल में डेरा डाले हुए है, ने मांग की है कि शिवसेना को महाविकास अघाड़ी गठबंधन से हटना चाहिए, जिसमें एनसीपी और कांग्रेस भी शामिल हैं। लेकिन, शिवसेना ने भी हार मानने से इन्कार करते हुए असंतुष्टों को फिर से चुनाव लड़ने के लिए कहकर उनके खिलाफ कड़ा रुख अपनाया है। गठबंधन सहयोगी राकांपा और उसके प्रमुख शरद पवार ने सीएम उद्धव ठाकरे पर भरोसा जताते हुए कहा है कि जब तक जरूरत होगी, पार्टी उनका और शिवसेना का समर्थन करती रहेगी। इस बीच शिवसेना प्रवक्ता संजय राउत के बयान पर पलटवार करते हुए शिंदे ने ट्वीट किया, ‘बालासाहेब ठाकरे की शिवसेना उन लोगों का समर्थन कैसे कर सकती है जिनका मुंबई बम विस्फोट के दोषियों, दाऊद इब्राहिम और मुंबई के निर्दोष लोगों की जान लेने के लिए जिम्मेदार लोगों से सीधा संबंध था। इसलिए हमने ऐसा कदम उठाया, मरना ही बेहतर है।’ इससे पहले संजय राउत ने शिंदे गुट पर जुबानी हमला करते हुए कहा था कि ये जो 40 लोग गुवाहाटी गए हैं न, उनकी बॉडी ही यहां आएगी, आत्मा नहीं आएगी। राउत ने कहा कि वे वहां तड़प रहे हैं। जब ये (बागी विधायक) यहां (मुंबई) उतरेंगे तो ये मन से जीवित नहीं रहेंगे, उनकी बॉडी पोस्टमार्टम के लिए सीधे महाराष्ट्र विधानसभा जाएगी। उनको पता है ये जो आग लगाई है, उसमें क्या हो सकता है। मुंबई आकर दिखाओ, मेरा चैलेंज है।

लेकिन, अब इस हाई वोल्टेज ड्रामा का पाटाक्षेप हो चुका है और पूरा माहौल ही बदल गया है क्योंकि; मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने फ्लोर टेस्ट में जाने से मना कर दिया है और उन्होंने मुख्यमंत्री पद से ही नहीं विधान परिषद से भी त्यागपत्र दे दिया । अब शिवसेना के एकनाथ शिंदे को महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री का राजतिलक कर दिया गया हैं सत्ता की कमान अब वही संभालेंगे । अब तक विधान सभा में भाजपा की ओर से नेता प्रतिपक्ष और भूतपूर्व मुख्य मंत्री देवेंद्र फडणवीस उप मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालेंगे । जिस सत्ता के लिए इतना बड़ा षड्यंत्र इतनी बार रचा गया वह बाजी अब फिर भाजपा के पाले में आ ही गई हैं । इसलिए जब तक आप इस लेख को पढ़ रहे होंगे तक तक महाराष्ट्र की राजनीति का ढेरों पानी सर के ऊपर से गुजर चुका होगा । अतः इसलिए देखना हैं अब महाराष्ट्र में राजनीतिक का क्या रंग होता हैं । मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और देवेंद्र फडणवीस के दोनों गुटों में मिठाइयां बांटी जा रही है अब नव गठित इस सरकार का अगला कदम क्या होगा इसके लिए प्रतीक्षा तो हम सब को करनी ही पड़ेगी ।


(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं)