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Guest Column : शराबबंदी पर ‘नीति’ और ‘नियति’ में फर्क करे बिहार सरकार

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार राज्य में शराबबंदी के लाभ और कानून व्यवस्था की बखान करते अघाते नहीं है। आज 15 जनवरी को उनके गृह जिला में शराब पीने से 5 लोगों के मौत की खबर सामने आई है। इससे पहले विधानसभा परिसर में भी शराब की बोतलें मिली थीं। ऐसे में सवाल लाजिमी है कि नीतीश के राज की हकीकत क्या है और शराबबंदी क्या केवल कागजों में ही अब सिमटकर रह गई है ?

निशिकांत ठाकुर

पिछले दिनों बिहार के सासाराम में आयोजित एक कार्यक्रम में शराब पीने वाले को लेकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कड़ी टिप्पणी की। उन्होंने कहा, कोई कितना भी पढ़ा-लिखा और ज्ञानी हो, लेकिन अगर वह शराब पीता है तो वह बिल्कुल भी ‘काबिल शख्स’ नहीं है। नीतीश कुमार ने यह भी कहा कि वे भी कतई काबिल नहीं हैं, जो महात्मा गांधी के खिलाफ हैं। ऐसे लोग तो समाज के भी खिलाफ माने जाएंगे। अपनी बातों से मुख्यमंत्री ने गांधीजी के नाम का तड़का लगाकर शराब पीने वालों पर मानसिक दबाव बनाने का प्रयास किया है। राज्य की जनता का हित हो, वह स्वस्थ रहे, इससे अच्छी बात हो ही नहीं सकती। इसके लिए मुख्यमंत्री को बधाई और उनकी प्रशंसा की जानी चाहिए। नीतीश कुमार ने यह भी ऐलान कर दिया है कि 16 जनवरी को बिहार में लागू शराबबंदी की नीति की भी वह विस्तृत समीक्षा करेंगे। मुख्यमंत्री ने कहा, हमने डीजीपी को साफ कह दिया है कि शराब दो-तीन जिलों से पार कैसे कर रहा? इसका अर्थ है कि जांच ठीक से नहीं हो रही है। ऐसे गैरजिम्मेदार अफसरों पर कार्रवाई होगी। किसी भी गैर जिम्मेदार को छोड़ेंगे नहीं। एक-एक चीज की समीक्षा कर रहे हैं। आगे से ऐसी घटना न हो, इसको लेकर हम हर संभव कदम उठाएंगे।

सच तो यह है कि बिहार से बाहर रहने वाला अपवाद स्वरूप ही कोई व्यक्ति सोचता है कि वह बिहार वापस जाकर अपनी जीविका और समाजसेवा के लिए कुछ कार्य करे। यह भी सच है कि राज्य के बाहर का भी कोई उद्यमी वहां जाकर मुख्यमंत्री की इसी ठसक के कारण उद्योग लगाने नहीं आते और न ही आएंगे, क्योंकि उन्हें पता है कि सुरक्षा के नाम पर बिहार पूरे देश में बदनाम है। सच यह भी है कि बिहार के पढ़े—लिखे लोग भी रोजगार की तलाश में बाहर के राज्यों पर ही आश्रित हैं। ऐसा इसलिए, क्योंकि आजादी के बाद से अब तक अन्य राज्यों की तुलना में रोजगार देने के मामले में बिहार फिसड्डी ही रहा है। लेकिन हां, देश का कोई राज्य ऐसा नहीं है जहां बिहार के उच्च से उच्च अधिकारी और कामगार न हों। अधिकारियों की बात तो छोड़िए, लेकिन कामगार वर्ग के जो लोग हैं, वह अन्य राज्यों में किस तरह का अपमानित जीवन जी रहे होते हैं, इसे देश ही नहीं, विश्व ने कोरोना काल के पहले लॉकडाउन में देखा है। जब सैकड़ों किलोमीटर की दूरी पैदल चलकर कामगार अपनी जीवनलीला समाप्त करने पर तुले थे। देश का कोई दूसरा राज्य नहीं था जो मानवता को इस तरह शर्मशार करने वाली घटना का गवाह बना हो।

बहुत दिन नहीं हुए हैं, जब बिहार में जहरीली शराब के चलते कई परिवारों की दिवाली काली हो गई थी। उसके बाद से अब तक जहरीली शराब ने कई जिंदगी लील ली है। बीते कुछ दिनों का ही उदाहरण लें, तो गोपालगंज में 17 और बेतिया में नौ लोगों की जान इसी जहरीली शराब पीने से गई है। यही नहीं, शराब पर पाबंदी लगाने वाले राज्य में पिछले साल 70 से भी ज्यादा लोग इसके कारण जान गंवा चुके हैं। बीते दिनों में जहरीली शराब से 21 लोगों के मरने की पुष्टि नीतीश सरकार के मंत्री सुनील कुमार ने भी की थी। बताया गया कि बेतिया में 10 और गोपालगंज में 11 लोगों की अवैध शराब पीने से मौत हुई है। इसके अलावा दो अन्य लोगों की बेतिया में जहरीली शराब से मौत होने का संदेह है। मंत्री सुनील कुमार ने कई लोगों को अस्पताल में भी एडमिट कराने की जानकारी दी है। पिछले दिनों समस्तीपुर में भी कई परिवार के दिए बुझ गए। पिछले साल जनवरी से लेकर 31 अक्टूबर तक शराब पीने से नवादा, पश्चिमी चंपारण, मुजफ्फरपुर, सीवान और रोहतास जिलों के करीब 70 लोगों की मौत हो गई है। कई लोगों की आंखों की रोशनी चली गई है। यह तब हुआ, जब राज्य में शराबबंदी लागू है। नीतीश सरकार ने 5 अप्रैल, 2016 को बिहार में शराब बनाने, व्यापार करने, रखने, लाने-ले जाने, बेचने और पीने पर प्रतिबंध लगा दिया था। इसके बावजूद यहां आए दिन शराब की खेप पकड़ी जाती है और इसके कारण लोगों की मौत होती है। इससे शराब तस्करों पर लगाम कसने की सरकार और प्रशासन की कोशिशों पर भी सवाल उठ रहे हैं।

बिहार में शराबबंदी कानून को लेकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार फिर विपक्ष के निशाने पर हैं। देश के प्रधान न्यायाधीश एनवी रमणा के शराबबंदी कानून पर दिए एक बयान के बाद विपक्ष हमलावर हो गई है। सर्वोच्च न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश ने बिहार में लागू शराबबंदी कानून को ‘अदूरदर्शी’ फैसला बताते हुए कहा है कि इससे अदालतों में केस का अंबार लग गया है। जस्टिस रमणा की इस टिप्पणी के बाद बिहार में विपक्षी पार्टियां, खासकर राष्ट्रीय जनता दल ने इसे भुनाना शुरू कर दिया है। राजद नेता सीएम नीतीश कुमार पर सीजेआई के इस बयान के बाद निशाना साधते हुए कहा है कि सीजेआई ने नीतीश कुमार को आईना दिखाया है। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया ने ये बातें विजयवाड़ा में सिद्धार्थ लॉ कॉलेज में ‘भारतीय न्यायपालिका और भविष्य की चुनौतियां’ विषय पर आयोजित एक सेमिनार में कहीं। सीजेआई ने कहा, नीतीश सरकार के इस फैसले के बाद बिहार के अदालतों में केस का अंबार लग गया है। उन्होंने कहा, देश की अदालतों में केसों का ढेर लगने के पीछे बिहार के शराबबंदी कानून जैसे फैसले ही जिम्मेदार हैं। ऐसे कानून का मसौदा तैयार करने में दूरदर्शिता की कमी होती है। बिहार मद्यनिषेध कानून-2016 लागू होने के कारण पटना हाईकोर्ट में जमानत के आवेदनों से भरा हुआ है। इस वजह से एक सामान्य जमानत की अर्जी के निपटारे में एक साल का वक्त लग रहा है।

गुजरात, बिहार, मणिपुर, नागालैंड, लक्षद्वीप आदि राज्यों में शराबबंदी है। सभी राज्यो का स्तर अलग—अलग है। गुजरात में शराब पीने, बनाने, खरीदने आदि पर मौत की सज़ा है। बिहार में शराब गैरकानूनी रूप से छुपकर बेची जा रही है। बाकी राज्यों में वहां के रहवासियों पर निर्भर करता है कि शराब का सेवन किया जाए या नहीं। खैर, जो भी हो, शराबबंदी से बदलाव तो ज़रूर आया है जिसमें वे लोग, जो को कभी- कभार शराब पीते थे, उनकी शराब तो छूट चुकी है, बाकी पक्के शराबी कहीं—न—कहीं से पीने का जुगाड़ कर ही लेते हैं। हरियाणा में क्या हुआ था? जुलाई, 1996 में शराबबंदी लागू हुई थी। शराब के शौकीन दफ्तर से सीधे राज्य की सीमा पार जाते थे और शराब पीकर वहीं सो जाते थे। परिणाम स्वरूप तत्कालीन मुख्यमंत्री बंसीलाल की सरकार गिर गई और शराबबंदी खत्म हो गई। पंजाब की समस्या क्या है? अभी तक किसी सरकार ने यह कोशिश नहीं की कि शराबबंदी लागू करे। शराब से ज्यादा दूसरे और अधिक घातक नशों का चलन वहां ज्यादा है। केरल के सीएम ने क्या कहा? विजयन ने कहा, अध्ययनों से पता चला है कि शराब पर पूर्ण पाबंदी संभव नहीं है। अत: सरकार शराब सेवन नियंत्रित करने की कोशिश करेगी… जिंदगी पहले या रोजगार। लक्षद्वीप अकेला केंद्रशासित राज्य है, जहां शराबबंदी है। समुद्र से घिरे इन टापू पर हो सकता है कि शराबबंदी सफल हो, लेकिन इस बारे में निश्चित रूप से कोई जानकारी नहीं है। नागालैंड में वर्ष 1989 से शराबबंदी लागू है, लेकिन वहां आसानी से शराब उपलब्ध है। आंध्र प्रदेश में शराबबंदी करके कई बार खोली जा चुकी है। इनके अलावा भी कई राज्य हैं जहां शराबबंदी की गई, लेकिन फिर बाद में खोल दिया गया। इससे साफ हो जाता है कि शराबबंदी व्यावहारिक के बजाय भावनात्मक मुद्दा ज्यादा है।

अप्रैल 2016 में जब बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बिहार में पूर्ण शराबबंदी लागू करने की घोषणा की थी, तब सवाल उठा था कि शराब से आने वाले राजस्व का जो नुकसान होगा, उसकी भरपाई सरकार कहां से करेगी? नीतीश कुमार ने उस वक्त आश्वस्त किया था कि सरकार राजस्व के नुकसान की भरपाई अन्य स्रोतों से कर लेगी। शराबबंदी क़ानून के कड़े प्रावधानों को लेकर भी सवाल उठते रहे हैं। इन सवालों-शिकायतों के मद्देनज़र नीतीश सरकार ने पिछले साल शराबबंदी क़ानून में कई संशोधन किए थे। अब देखना यह है कि शराबबंदी से होने वाले राजस्व के नुकसान की भरपाई के लिए सरकार आनेवाले दिनों में क्या क़दम उठाती है। फिलहाल मुख्यमंत्री ने शराबियों को प्रदेश में न आने की कड़ी चेतावनी दी है। सबसे लंबे कार्यकाल तक बिहार पर ‘राज’ करने वाले मुख्यमंत्री के रूप में नीतीश कुमार ने हाईवे और बिजली का प्रबंध तो कर लिया है, लेकिन रोजगार के लिए आज भी बिहार के युवा देश के लगभग सभी राज्यों में अपने जीवन यापन के प्रयास में अपमानित हो रहे हैं। मुख्यमंत्री शराबबंदी लागू करने पर जितना प्रचार और कड़ाई करने के लिए कृतसंकल्पित हैं, काश उसी प्रकार अपने राज्य के युवाओं को रोजगार के लिए पलायन रोकने के लिए प्रतिबद्ध हो जाते हैं तो निश्चित रूप से राज्य का कायाकल्प हो जाएगा। यह जांच का भी विषय है कि शराबबंदी कानून के लागू होने के बाद से लोगों के स्वास्थ्य पर और उसकी शिक्षा पर कितना असर पड़ा राजस्व के घाटे पर कितना असर पड़ा है , लेकिन राजनीतिज्ञों की इस सोच की जांच कौन करेगा । जो भी हो, बिहार की आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए जब तक केंद्रीय सरकार का हस्तक्षेप नहीं होगा वहां की आर्थिक स्थिति में सुधार नहीं होगा और रोजगार के लिए पलायन भी पूर्ववत होता रहेगा ।


(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं)

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