Guest Column : परमाणु हमले की आशंका के बीच ‘दोस्ती’ निभाने की चुनौती

यह ठीक है कि अमेरिका अब हमारा मित्र हो गया है, लेकिन भारत का पुराना मित्र तो रूस ही है। अमेरिका कैसा भारत का मित्र है वह इस बात से भी पता चलता है कि रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान भारत के तटस्थ रुख अपनाने पर वह कई बार धमकी दे चुका है। रूस ने अब तक अपने मित्र धर्म का निर्वाह किया है, क्योंकि इस युद्ध में जिस प्रकार वह भारतीय छात्रों को यूक्रेन से निकलने में मदद कर रहा है, वह दोस्ती का ही तो निर्वाह कर रहा है। कुछ भी हो भारत को सतर्क रहने की जरूरत है, क्योंकि हमारा देश शांति का पुजारी है। हम भगवान बुद्ध और महात्मा गांधी के शांति के मार्ग पर चलने वाले लोग हैं।

निशिकांत ठाकुर

जापान यात्रा के दौरान हिरोशिमा में जिनके यहां हम ठहरे थे उन्होंने अपने 6 अगस्त, 1945 दिन का दुखद और हृदय विदारक संस्मरण सुनाते हुए कहा था कि उस दिन वह शहर से बाहर थे। परमाणु विस्फोट के बाद जब वह वापस आए तो उनके परिवार का कोई सदस्य जिंदा नहीं बचा था। जो लोग जिंदा बच गए थे, उन्होंने विस्फोट की भयावहता के आलम के बारे में बताया कि विस्फोट से पहले शहर में रोज की तरह आवाजाही थी। लोग अपने कार्यालय या तो निकल गए थे अथवा तैयार हो रहे थे। अचानक विस्फोट से धरती हिलने लगी और ऐसा लगने लगा कि आसमान से आग के गोले गिरने लगे हों। तापमान 4500 डिग्री सेल्सियस हो गया। जिन्हें जिधर का रास्ता मिला, बे–हताश भागने लगे। भागने वालों का प्रयास होता था कि वह समुद्र में कूद जाएं। हजारों लोगों ने समुद्र के तट से छलांग लगाकर जान बचाने का प्रयास किया, लेकिन समुद्र का पानी भी खौल रहा था इसलिए जिन्होंने छलांग लगाने का प्रयास किया, समुद्र में उनके शरीर का मांस, हड्डियों से अलग हो गई। शहर पूरी तरह जलने लगा था और तत्काल लाखों लोग हलाक हो गए। इसके ठीक तीन दिन बाद 9 अगस्त को नागासाकी में भी अमेरिका ने दूसरा परमाणु बम गिराया था। वहां भी हजारों लोग तुरंत काल में समा गए थे। यह होता है परमाणु युद्ध का परिणाम। यह दुखद उद्गार इसलिए, क्योंकि रूस और यूक्रेन के बीच जो घमासान मचा हुआ है, यदि युद्ध—विराम नहीं हुआ तो विश्व के कई देशों का यही हाल होने वाला है। जापान के दोनों शहर आज भी परमाणु बम के उस दर्द से उबर नहीं पाए हैं, क्योंकि अभी तक वहां जन्म लेने वाले शिशुओं में कुछ—न—कुछ परमाणु बम की विकिरण से उत्पन्न होने वाली कई तरह की विकृतियां पैदा होती रहती हैं।

ऐसा नहीं है कि रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन और यूक्रेन के राष्ट्रपति जलेंस्की को अमेरिका द्वारा किए गए परमाणु विस्फोटों और उसके दुष्परिणामों की जानकारी न हो, लेकिन युद्धोनुमाद ने इन दोनों राष्ट्रध्यक्षों की आंखों पर मोटा पर्दा टांग दिया है। समझ में नहीं आता कि फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुअल माइक्रो से बातचीत में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने ऐसा क्यों कहा है कि यूक्रेन को सबक सिखाए बगैर वह हमले नहीं रोकेंगे। इसी जिद और ठसक के परिणामस्वरूप यूरोप के जपोरीजिया स्थित सबसे बड़े परमाणु संयंत्र पर रूस ने कब्जा कर लिया। यही नहीं, बमबारी करके परमाणु संयंत्र में आग लगाकर पूरी दुनिया में सनसनी फैला दी। छह रिएक्टरों वाला यूरोप का यह सबसे बड़ा परमाणु संयंत्र है जहां छह हजार मेगावाट बिजली का उत्पादन होता है। सौभाग्य से आग मुख्य रिएक्टरों तक पहुंचने से पहले ही यूक्रेन के अग्निशामक दलों ने बुझा दिया। अगर मुख्य रिएक्टरों तक आग पहुंच जाती तो यूक्रेन ही नहीं, वल्कि नजदीकी देशों में महाविनाश निश्चित रूप से तय था।

धीरे—धीरे अब ऐसा लगने लगा है कि विश्व महाविनाश के कगार पर पहुंचता जा रहा है। देखना यह होगा कि भारत इस परीक्षा में अपने को कैसे उत्तीर्ण कर पाता है। क्योंकि, अमेरिका ने भारत के तटस्थ नीति को देखते हुए चेताया है कि यदि भारत का यही हाल रहा तो शीघ्र ही वह उससे निपट लेगा। जबकि, भारत अपने रूसी-भारत अनुबंध का ईमानदारी से पालन कर रहा है जो उसने रूसी विदेशमंत्री आंद्रेय ग्रोमिको और भारतीय विदेशमंत्री सरदार स्वर्ण सिंह के बीच वर्ष 1971 में पाकिस्तान युद्ध के समय किया था। उस अनुबंध में सोवियत रूस ने कहा था कि भारत पर हमला करने का मतलब होगा सोवियत रूस से युद्ध करना। फिर परिणाम स्वरूप अमरीकी नौसैनिक बेड़ा, जो पाकिस्तान की तरफ से भारत के विरुद्ध मदद के लिए आया था, उसकी हिम्मत नहीं हुई कि वह भारत पर हमला करने में पाकिस्तान का साथ दे। उस अमरिकी नौसैनिक बेड़े को पीठ दिखाकर वापस अमेरिका ही लौटना पड़ा था। इस मित्रता धर्म का सोवियत रूस ने निर्वाह किया था। कहा जा रहा है कि रूस के आक्रामक रुख को देखते हुए यूक्रेन के राष्ट्रपति बोलोदिमीर जेलेंस्की देश छोड़कर पोलैंड के अमरीकी दूतावास में शरण ले चुके हैं, जबकि यूक्रेन सरकार ने इसको असत्य बताते हुए इसका खंडन किया है। विदेश मंत्रालय पूरी तरह सतर्क है कि यूक्रेन के विभिन्न शहरों में और पोलैंड तथा रोमानियन सीमा पर फंसे भारतीय छात्रों और नागिरकों को, जो वहां मेडिकल की पढ़ाई और उच्च शिक्षा के लिए गए थे, को उन्हें वापस लाया जाए। भारत सरकार का दावा है कि उन्होंने अपने चार मंत्रियों को यूक्रेन भेजकर उन्हें वापस करने के लिए कृतसंकल्प है। यूक्रेन के पेसोचिन, खारकीव और सुमी शहरों में लगभग तीन हजार छात्र फंसे हुए हैं। पिछले सप्ताह यह स्पष्ट हो गया कि रूस-यूक्रेन के आपसी युद्ध में भारतीय छात्रों को मोहरा बनाया जा रहा है। भारत ने इस पर क्षोभ भी जताया है। दो शहरों में फंसे नागरिकों के लिए रूस ने संघर्ष विराम कर दिया। मास्को में रूस के रक्षा मंत्रालय ने कहा है कि मारीपोल और वोल्नोवास में फंसे लोगों को निकलने के लिए फायरिंग रोक दी है, लेकिन यूक्रेन ने खंडन करते हुए कहा है कि फायरिंग नहीं रोकी गई है। इसलिए लोगों को निकलने में परेशानी हो रही है। सूमी शहर से भारतीय छात्र काफी जद–ओ– ज़हद के बाद अब निकाल लिए गए हैं।

मास्को और कीव से प्राप्त आज तक की एक ताजा रिपोर्ट के अनुसार रूस ने यूक्रेन के 2203 सैन्य ठिकाने नष्ट कर दिए हैं । हमलों में यूक्रेन के 93 विमान , हेलीकाप्टर , 778 टैंक, बख्तरबंद वाहन 289 टॉप अभी तक नष्ट हुई है ।सेना ने पिछले दिनों स्तरोकोस्तिनीव वायुसेना अड्डे पर मिसाइलों से हमला किया । सेना ने दावा किया है कि जपोर्जिया परमाणु संयंत्र को रूसी सेना के कब्जे में जाता देख वहां तैनात यूक्रेनी अधिकारियों ने परमाणु हथियार निर्माण से संबंधित दस्तावेज आंशिक रूप से नष्ट कर दिए और कंप्यूटर डाटा डिलीट कर दिया । जबकि यूक्रेन ने 11 हजार से अधिक रूसी सैनिक मारने , 300 रूसी टैंक, 40 से ज्यादा लड़ाकू विमान और 48 हेलीकाप्टर नष्ट करने का दावा किया है ।

दरअसल, यह युद्ध दो महाशक्तियों रूस-अमरीका के बीच है, यूक्रेन तो दोनों देशों का बहाना है। यूक्रेन के साथ नाटो के तीस देश सहित अमरीका की शक्ति है, जबकि रूस अपने दम पर ही सभी नाटो देशों सहित अमेरिका से दो—दो हाथ कर रहा है। परिणाम अब तक का यह रहा है कि यूक्रेन की राजधानी कीव सहित वहां के कई शहरों को रूसी सेनाओं ने तहस—नहस कर दिया है। यदि रूस और अमेरिकी सामरिक शक्ति की तुलना करें तो रूसी रक्षा मंत्रालय की एक रिपोर्ट के अनुसार रूस की सेना में आधुनिक हथियारों की हिस्सेदारी 71.2% है। रूस के पास 12,950 टैंक हैं जो यूएस की टैंकों की संख्या का दो गुना है। रूस में 9,00,000 एक्टिव मिलिट्री है, जबकि 4,100 से अधिक एयरक्राफ्ट हैं। यदि सैन्य बल और शक्ति की बात की जाए तो यूक्रेन 140 देशों की सूची में 22वें नंबर पर आता है। अमेरिका की वायुसेना के जंगी बेड़े में 13,27 एयरक्राफ्ट हैं, तो रूस के पास एयरक्राफ्ट की संख्या करीब 4,173 है। स्पष्ट है कि एयरपावर में अमेरिका, रूस से कई गुना ज्यादा ताकतवर है, जबकि रूस के खिलाफ हवाई चक्रव्यूह बनाने में नाटो देश भी पूरी ताकत से जुटे हैं।

बताया जा रहा है कि यूक्रेन के युद्धग्रस्त क्षेत्र से पलायन शुरू है और लगभग पंद्रह लाख लोगों ने देश छोड़ दिया है। रेलवे स्टेशनों पर भारी भीड़ इकट्ठा हो गई है। सुरक्षित मार्गों पर ट्रेनों का परिचालन अब तक जारी है। इसी के कारण रेलवे स्टेशनों पर डरे हुए नागरिक एकत्रित हो कर जिन्हें जहां की गाड़ियां मिलती जा रही हैं, वे हताश और दिशाहीन होकर प्राण बचाने के लिए भाग रहे हैं। यूक्रेन के अधिकांश सैन्य ठिकाने नष्ट कर दिए गए हैं। रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन ने कहा है कि यूक्रेन को हथियार मुक्त किए बगैर रूसी हमले नहीं रोके जाएंगे। अब शहरों में छिटपुट लड़ाई जारी है। रूसी सेना नागरिक आबादी को बचाते हुए युद्ध कर रही है, जबकि यूक्रेन की सेना और उसके साथ लड़ रहे हथियारबंद लोग उन्हें ढाल बना रहे हैं। रूस के राष्ट्रपति पुतिन ने कहा है कि यूक्रेन पर हमले की कार्यवाही का फैसला कर लेना मुश्किल था। हम यूक्रेन को तटस्थ भाव में देखना चाहते हैं। भारत के नागरिक इस बात से परेशान हैं कि उसके जो छात्र और नागरिक यूक्रेन में फसे हुए हैं, उन्हें किसी तरह से सुरक्षित निकाला जाए। विश्व इसलिए परेशान है कि इन दोनों महाशक्तियों के टकराव में उनके देश पर कहीं परमाणु बम न गिरा दिए जाए। भारत इसलिए भी परेशान हैं कि उसकी सरकार द्वारा तटस्थ भाव में रहने के कारण कहीं अमरीका अपनी खुन्नस में उसका न नुकसान कर दे।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं)