Home ओपिनियन Guest Column : तानाशाह ने सोने की ‘लंका’ को कर दिया राख

Guest Column : तानाशाह ने सोने की ‘लंका’ को कर दिया राख

अब नए राष्ट्रपति के लिए नामंकन 18 जुलाई और चुनाव 20 जुलाई को होना तय हुआ है फिलहाल रनिल बिक्रमसिंघे को कार्यवाहक राष्ट्रपति बना दिया गया है । देखना यह भी होगा नए राष्ट्रपति के सत्ता संभालने तक श्रीलंका किस हाल में रहता है और नए राष्ट्रपति का किस प्रकार स्वागत के लिए जनता पलक फावड़े बिछाती है ।

निशिकांत ठाकुर

तत्कालीन सोने की लंका, कुबेर की लंका, रावण की लंका तबाह हो गया। रावण ने अपने भाई कुबेर से सोने की लंका को छीना, फिर रावण के दुष्कर्मों के कारण लंका को हनुमान ने जलाया और स्वयं विष्णु के अवतार मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने रावण का वध कर विभीषण को वहां की सत्ता पर आसीन कर दिया। अब स्वयं वहां की मजबूर, लाचार और आक्रोशित जनता ने रावण रूपी सरकार को जलाकर ध्वस्त और लगभग निष्क्रिय कर दिया है। आज का श्रीलंका विश्व के छोटे देशों में से एक होने के बावजूद समृद्ध राष्ट्रों की कतार में खड़ा था, लेकिन सरकारी सत्ताधीशों के व्यक्तिगत लाभ, स्वार्थ और जानबूझकर की गई नादानियों के कारण श्रीलंका अपना सब कुछ बर्बाद कर चुका है। पिछले दिनों जिस तरह प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति के भवनों पर आक्रोशित असंख्य भूखे और बेरोजगार नागरिकों ने हमला किया, आगजनी की, तोड़-फोड़ की है, वह विश्व के उन नेताओं की आंखें खोलने के लिए काफी है, जो सत्ता के नशे में आम नागरिकों को कीड़े-मकोड़े से अधिक नहीं समझते और उनका भला करने के बजाय अपनी उल्टी-सीधी हरकतों से उन्हें त्रस्त करते रहते हैं।

श्रीलंका के लिए स्थिति यह हो गई है कि कुछ दिन बाद जब इतिहासकार इस पर अनुसंधान करेंगे तो उन्हें लिखना पड़ेगा ‘साधन—संपन्न एक राष्ट्र श्रीलंका हुआ करता था, जिसे तानाशाह शासकों ने अपनी मूर्खतापूर्ण कारगुजारियों से बरबाद कर दिया।’ ऐसा क्यों हुआ, किसकी मूर्खता से हुआ, इस बर्बादी का प्रमुख अपराधी कौन है, वह अपने नागरिकों से क्या चाहता था, यह तो गहन शोध का विषय है, लेकिन सतह पर जो कुछ आज दिखाई दे रहा है, वह बहुत ही दुखद, डरावना और मन को आर्त करने वाला है। आइए, अब इसे समझने की कोशिश करते हैं कि जो अब तक इस देश की दुर्दशा का कारण दिख रहा है, वह है क्या? भारत सरकार ने अपने पड़ोसी धर्म का खूब निर्वाह अपनी क्षमता के अनुसार उसकी आर्थिक स्थिति को रास्ते पर लाने के लिए किया, लेकिन एक राष्ट्र की सवा दो करोड़ से अधिक की आबादी वाले अपने पड़ोसी का कोई कितना ख्याल रख सकता है, समुद्र पार करके उसकी कितनी मदद कर सकता है! जबकि, श्रीलंका का झुकाव पहले से ही चीन की तरफ था और अपनी अंतरिम आर्थिक स्थिति का भागीदार उसे पहले ही बना चुका था, जिसने अपना एक बंदरगाह भी उसके हवाले करके बेच दिया था।

दरअसल, श्रीलंका समुद्र से उभरा हुआ पहाड़ है, जहां फसलें कम होती हैं। चाय, मसाले, रबड़ और हार्टिकल्चर की तमाम फसलें उसकी इकानमी थी। शिक्षा, स्वास्थ्य, प्रतिव्यक्ति आय, प्रति व्यक्ति जीडीपी में लंका के आंकड़े वैश्विक स्तर के थे। कुल मिलाकर श्रीलंका दक्षिण एशिया का सबसे समृद्ध देश था। प्रभाकरण को मारकर राजपक्षे और उनका परिवार जनता का हृदय सम्राट बन गया। बहुमत पर बहुमत मिला, ताकतवर सरकार बनी। ताकतवर सरकार, यानी बाजार, व्यापार, बैंक, अर्थव्यवस्था, कानून, कोर्ट और मीडिया सब पर पूरा नियंत्रण। तभी आज तक श्रीलंका में राजपक्षे परिवार की तानाशाही थी। तानाशाह को साइंस, टेक्नोलॉजी, हिस्ट्री, सिविक्स, एग्रीकल्चर, बैंकिंग, बिजनेस, खेल, स्पेस, राडार; यानी दुनिया की हर चीज के बारे में व्यापक जानकारी होती है। डिक्टेटर भला आदमी होता है, उसकी नीयत में खोट नहीं होती, तो राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे ने निर्णय लिया कि ‘हमारा देश विश्वगुरु बनेगा।’ और, वह वहीं मात खा गए। एकदम आर्गेनिक! एक दिन घोषणा कर दी कि आज से देश मे फर्टिलाइजर बैन, कीटनाशक बैन! किसी तरह के केमिकल का देश में उपयोग नहीं होगा। जो ऐसा करेगा, सजा पाएगा। देश रातों-रात आर्गेनिक हो गया। राष्ट्रपति का दुनिया में डंका बजने लगा। यूएन ने तारीफ की, लेकिन वैज्ञानिकों ने कहा, ‘नहीं, इससे श्रीलंका का कृषि क्षेत्र तबाह हो जाएगा।’ और, ऐसा ही हुआ। श्रीलंका के डिक्टेटर ने अनसुना कर दिया। मजबूत इरादे और साफ नीयत से किया गया काम तो हमेशा सफल होता है, लेकिन यह क्या! जीवनरक्षक दवा खत्म, पेट्रोल-डीजल खत्म, राशन-पानी खत्म, घर की औरतें एक किलो चावल के लिए नीलाम होने लगीं। अब फिर और क्या बचा? इससे निकृष्ट हालात और क्या होते हैं! फिर सहनशक्ति की भी एक सीमा होती है। उनका धैर्य, उनकी सारी उम्मीदें टूट गईं। जब उम्मीद की कोई किरण न दिखे, तो फिर तो कहीं भी यही हो सकता है। किसी भी देश में ऐसा हो सकता है जैसा श्रीलंका के नागरिकों ने किया है।

महीनों से गंभीर आर्थिक संकट और आवश्यक वस्तुओं की कमी से जूझते श्रीलंका के प्रदर्शनकारी नागरिकों के धैर्य का बांध बुरी तरह टूट गया। राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे से इस्तीफे की मांग कर रहे प्रदर्शनकारियों व सुरक्षाबलों के बीच झड़पें हुईं। प्रदर्शनकारियों ने सारे बेरिकेड तोड़ते हुए बीच कोलंबो स्थित राष्ट्रपति भवन में घुस गए और उस पर कब्जा कर लिया। प्रदर्शनकारियों के आक्रोश को देखते हुए राष्ट्रपति गोटबाया भवन छोड़कर भाग गए। उग्र प्रदर्शनकरियों ने प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे के निजी आवास को आग के हवाले कर दिया। श्रीलंका अपनी स्वतंत्रता के बाद से सबसे अधिक आर्थिक और राजनैतिक संकट से गुजर रहे दो करोड़ से अधिक आबादी वाले श्रीलंका के प्रधानमंत्री विक्रमसिंघे ने हंगामे के बीच सर्वदलीय बैठक बुलाई थी। इसमें विपक्षी दलों ने सर्वदलीय सरकार के लिए प्रधानमंत्री के साथ राष्ट्रपति के इस्तीफे की मांग की । विक्रमसिंघे ने विपक्ष की मांग को मानते हुए इस्तीफे की पेशकश की। उनकी ओर से कहा गया कि सर्वदलीय सरकार के गठन तथा सांसद में उसके बहुमत साबित करने के बाद वह पद छोड़ देंगे।

इतनी तोड़फोड़, आगजनी के बाद श्रीलंका के पांच कैबिनेट मंत्रियों ने त्यागपत्र की घोषणा की है। राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे के इस्तीफे की मांग करते हुए पिछले सप्ताह प्रदर्शनकारियों ने मध्य कोलंबो के कड़ी सुरक्षा वाले फोर्ट क्षेत्र में राष्ट्रपति के आधिकारिक आवास पर धावा बोल दिया था। इसके बाद राजपक्षे ने घोषणा की थी कि वे इस्तीफा दे देंगे । गोटबाया अभी भी फरार हैं और वे कहां हैं, इसकी किसी को कोई जानकारी नहीं है। प्रदर्शनकारी प्रधानमंत्री के आवास में भी आग लगा चुके हैं। इतनी मुश्किल हालातों के बावजूद भारत ने अमूल्य मानवीय सदाशयता दिखाते हुए पिछले सप्ताह कहा है कि वह श्रीलंका के लोगों के साथ खड़ा है, क्योंकि वे लोकतांत्रिक तरीकों, मूल्यों और संवैधानिक मार्ग के जरिये समृद्ध और प्रगति के लिए अपनी आकांक्षाओं को साकार करना चाहते हैं। भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा है कि भारत श्रीलंका के घटनाक्रम पर बहुत ही नजदीक से अपनी नजर रखे हुए है और वह उन कई चुनौतियों से अवगत है, जिनका देश और उसके लोग सामना कर रहे हैं। राष्ट्रपति भवन पर कब्जा किए प्रदर्शनकारियों का कहना है कि उन्होंने अपने जीवन में ऐसा आवास नहीं देखा था। राष्ट्रपति लान में अपने परिवार के साथ भोजन कर रहे एक व्यक्ति ने कहा हमें अच्छा मौका मिला है, इसलिए मुझे लगता है कि अब पूरा देश शांतिपूर्ण है। अब भ्रष्टाचार समाप्त हो जाएगा। मुझे अपने बच्चों के साथ लंच करने का अवसर मिला है। राष्ट्रपति भवन का भोजन वाकई शानदार है। कई परिवार के साथ सेल्फी पोज देते हुए नजर आए जिम-बेडरूम, ड्राइंग रूम, किचन हर जगह प्रदर्शनकारी जमे हैं। कोई आराम कर रहा है, तो कोई खाना खा रहा है, कोई स्विमिंग पुल का आनंद ले रहा है।

पानी सिर के ऊपर से इस कदर गुजर चुका है कि उसके उतरने और जमीन तक आने में पता नहीं कितने वर्ष लग जाएंगे, इसे कोई नहीं जानता; क्योंकि कोई भी सक्षम राजनीतिक दल अब सत्ता संभाले, हालात को ठीक करने में समय तो लगेगा ही। आज किसी के पास न तो अलाउद्दीन का चिराग या जादुई छड़ी है कि जिस चिराग को जलाने से श्रीलंका में खुशियों की बिजली चमकने लगेगी और न ही जादुई छड़ी घुमाने से वहां सुख-शांति और समृद्धि अचानक लौट आएगी। फिर होगा क्या? यह बड़ा ही गंभीर प्रश्न है कि क्या श्रीलंका समृद्धि की पटरी पर फिर से लौट पाएगा? कई विशेषज्ञों ने राजनेताओं पर आरोप लगाते हुए तर्क दिया है कि फरार राजनीतिज्ञ, जिन्होंने अपने अहंकार में गलत निर्णय लेकर देश को गर्त में धकेल दिया, क्या ऐसे राजनीतिज्ञ चाहेंगे कि देश समृद्धि और विकास की पटरी पर फिर से सरपट दौड़े? जो भी हो, पड़ोसी देश होने के कारण और आध्यात्मिक जुड़ाव के कारण श्रीलंका के विकास के सारे द्वार भारत ने पहले ही खोल दिए हैं।

जब देश विकास के शिखर पर चढ़ता है तो उसका श्रेय तो राजनीतिज्ञ बढ़—चढ़कर लेते है। लेकिन ,जब उनके गलत और धींगामुश्ती के कारण देश गर्त में डूबने लगता है तो जनता के समक्ष अपनी गलती को स्वीकार करते हुए उनसे माफी मांगने के स्थान पर ऐसे राजनेता देश छोड़कर भाग खड़े होते हैं । ऐसा ही श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने किया है, क्योंकि कहा जाता है कि देश को बेचकर उन्होंने अकूत संपत्ति पहले ही विदेशों में जमा करा रखा है। अब जनता जाए चूल्हे में, राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे महोदय ने त्यागपत्र देकर पतली गली से भागकर सिंगापुर पहुंच चुके हैं। अब वह देश को गर्त में धकेलकर योजनाबद्ध तरीके से अपना ठिकाना जहां बनाया होगा, वहां जाकर मौज—मस्ती में शेष जीवन गुजारेंगे। श्रीलंका में अंतरिम इमरजेंसी लगा दिया गया है और कोलंबो से कर्फ्यू हटा लिया गया है ।


(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं)

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