Home पॉलिटिक्स Guest Column : कैसी होगी पंजाब में कैप्टन बिन कांग्रेस

Guest Column : कैसी होगी पंजाब में कैप्टन बिन कांग्रेस

यदि कांग्रेस को प्रशांत किशोर की गणना को गलत साबित करना है तो उसे गंभीर आत्म मंथन जरूर करनी पड़ेगी अन्यथा इस बार यदि फिर कांग्रेस गिरती है तो उसका संभाल पाना दूर दूर तक आसान नहीं दिखाई देता है ।

निशिकांत ठाकुर

सुव्यवथित ढंग से चल रहे देश का एक महत्वपूर्ण और कर्मठ राज्य ‘मसखरों’ के चक्कर में कांग्रेस के हाथ से छिटकता नजर आ रहा है। राजनीति में पद नहीं, कद की बात की जाती हैं, लेकिन कांग्रेस सुप्रीमो की समझ में यह बात नहीं आई और एक जीते हुए राज्य के कद्दावर नेता को बहकावे में आकर उन्हें अयोग्य करार दिया। आज पंजाब में कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह अपनी अलग पार्टी बनाकर राज्य की सभी 117 सीटों पर विधानसभा चुनाव लड़ने की घोषणा कर रहे हैं। ऐसा क्यों हुआ और किसकी साजिश से ऐसा हुआ, इस पर परिपक्व कांग्रेसियों को जमकर विचार—विमर्श करने की जिम्मेदारी बनती है। यदि धीरे—धीरे ऐसा ही होता रहा तो भाजपा का वह नारा कामयाब हो जाएगा जिसमें उसने कहा था कि देश को कांग्रेस मुक्त कराना है।

यह ठीक है कि कांग्रेस की स्थापना ए. ओ. ह्यूम नामक अंग्रेज नौकरशाह अपनी नीति और दूरदर्शी सोच को बनाए रखने के लिए की थी, लेकिन धीरे—धीरे कांग्रेस एक ऐसा संगठन बन गया जिसके सदस्यों ने जमकर स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया और देश को आजाद कराने में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया। यहां कद की बात इसलिए कर रहा हूं, क्योंकि आजादी की लड़ाई के जरिये अंग्रेजों से सत्ता वापस लेने में जिन्होंने बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया, वह थे मोहनदास करमचंद गांधी। उन्होंने कांग्रेस में कोई पद नहीं स्वीकार किया था, बल्कि उनका कद ही इतना बड़ा था कि उस काल के सभी पद उनके कद के सामने बौने हो गए थे। उसी तरह आज यदि पंजाब के किसी राजनीतिज्ञ के कद की बात करें तो सरदार प्रकाश सिंह बादल और दूसरे कैप्टन अमरिंदर सिंह जैसे नेताओं का नाम ही इस सूची में शामिल किया जाता है। ऐसे कद्दावर नेता को साजिश करके, अपमानित करके बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। इसका हश्र क्या होगा, यह तो चुनाव के बाद भी पता चलेगा।

कैप्टन अमरिंदर सिंह तीनों नए कृषि कानूनों पर बात करने के लिए गृहमंत्री अमित शाह से समय लिया है। कैप्टन अपने साथ 25 कृषि विशेषज्ञों के लेकर दिल्ली आ रहे हैं। दिल्ली में यदि उनकी भेंट गृहमंत्री से हो जाती है तो निश्चित रूप से कुछ—न—कुछ हल जरूर निकलेगा। इसमें यदि वह सफल हो जाते हैं तो यह उनके कद को फिर बड़ा ही करेगा। इसी असमंजस में वर्तमान सत्तारूढ़ कांग्रेस दल में खलबली मची है। कैप्टन के इस आक्रामक रुख को देखते हुए कांग्रेसियों ने भी हमले शुरू कर दिए हैं। पंजाब के फूड एवं सिविल सप्लाई मंत्री भारत भूषण आशु ने कहा कि कैप्टन ने अब तक इतना इंतजार क्यों किया? वह सीएम रहते कृषि कानूनों को रद्द करवाने के लिए दिल्ली क्यों नहीं गए? उन्हें कौन रोक रहा था? तब अगर इसका हल निकलवा देते तो उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी से हटने की जरूरत नहीं पड़ती।

पंजाब कांग्रेस में इस वक्त बड़ी हलचल मची है। इस वजह से पहले विधायकों और मंत्रियों को दिल्ली बुलाया गया, अब अचानक मुखमंत्री चरणजीत चन्नी को भी राहुल गांधी का बुलावा आ गया। चन्नी उस वक्त रोपड़ के किसी कार्यक्रम में गए थे। वहां से वह तुरंत दिल्ली के लिए रवाना हो गए। इस हलचल को कैप्टन अमरिंदर सिंह के सियासी दांव के साथ अरुसा आलम के विवाद से जोड़कर देखा जा रहा है। अरुसा विवाद को लेकर कांग्रेस हाईकमान खासा नाराज बताया जा रहा है। खासकर, इस विवाद में कैप्टन ने सोनिया गांधी को घसीट लिया जिसके बाद दिल्ली में हलचल बढ़ गई। इसी कारण से पहले डिप्टी सीएम सुखजिंदर रंधावा को दिल्ली तलब किया गया था। माना जा रहा है कि उन्हें इस मुद्दे पर कांग्रेस हाईकमान की खरी—खरी बातें सुननी पड़ीं। रंधावा ने ही अरुसा के आईएसआई कनेक्शन के जांच की बात कहकर विवाद शुरू किया था। इस पूरे प्रकरण की नींव में नवजोत सिद्धू भी बताए जा रहे हैं। पंजाब में चुनाव को लेकर कांग्रेस हाईकमान ने सिद्धू से मीटिंग की थी जिसमें सिद्धू ने भी अरुसा विवाद को लेकर एतराज जताया। इसके अलावा डीजीपी और एडवोकेट जनरल की नियुक्ति पर सवाल उठाए। सिद्धू ने हाईकमान को बताया कि पंजाब में सरकार हाईकमान के 18 सूत्रीय एजेंडे पर काम नहीं कर रही। माना जा रहा है कि इसके बाद ही संगठन की शिकायत पर सरकार को दिल्ली बुलाया गया।

पिछले दिनों एक प्रेस कान्फ्रेंस के दौरान सूबे के पूर्व मुखमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कहा कि वह हमेशा सैनिक तरह लड़ते रहे हैं और आगे भी लड़ते रहेंगे। उन्होंने कहा कि जब से सिद्धू सीन में आए हैं, कांग्रेस की लोकप्रियता में 25 प्रतिशत कमी आई है। राहुल गांधी पर कटाक्ष करते हुए कैप्टन ने कहा कि वह घबवराहट में हैं, इसलिए सभी से मिल रहे हैं। पार्टी में हुए अपने अपमान से तिलमिलाए कैप्टन ने कहा कि हाईकमान उन्हें बदलने का फैसला ले चुका था। इतनी भूमिका बनाना तो केवल दिखावा है। पंजाब का भविष्य क्या होगा, इस पर विशेषज्ञ चिंतित हैं, क्योंकि अगले विधानसभा चुनाव के लिए आम आदमी पार्टी के सर्वे सर्वा दिल्ली के मुख्यमंत्री सूबे पर अपना कब्जा जमाने के लिए तैयार बैठे हैं। ऐसा नहीं है कि अकाली नेता सुखबीर सिंह बादल चुप रहकर सत्ता किसी और के हाथ में सहजता से जाने देंगे। फिर रही भाजपा की बात, फिलहाल तो भाजपा अकाली गठबंधन के कारण ही पंजाब में सत्तासीन रही है, लेकिन अब अकाली-भाजपा गठबंधन टूटने के बाद दोनो दलों को अपनी नीति में बदलाव करके सत्ता पर काबिज होने में कोई कसर नहीं छोड़ने वाली है। फिर उस दल की बात होगी, जिसका गठन करने का एलान कैप्टन अमरिंदर सिंह कर चुके हैं और वह यह भी कह चुके हैं कि उनकी पार्टी अपना उम्मीदवार सभी सीटों पर उतारेगी।

वैसे कांग्रेस वह दल है जिसमे कुछ—न—कुछ ज्वार भाटा इसके प्रारंभकाल से ही आता रहा है। कई बार इस दल से बहुत बड़े बड़े राजनीतिज्ञ अलग हुए। उनके अलग—थलग होने पर कयास लगाया जाने लगा था कि इस दल का भविष्य खतरे में है, लेकिन सब कयासों को धता बताते हुए फिर से कांग्रेस पुनर्जीवित होती रही है और कुछ देर से ही सही, देश की जनता का विश्वास जीतती रही है। यह प्राकृतिक नियम और आम मानसिकता होती है की जब कोई बुलंदियों पर रहकर सत्तारूढ़ होता है तो सामने वाले उसकी नजर में बौने हो जाते हैं। जिन्हें हम सत्ता में मदांध कह सकते हैं, लेकिन जनता हर किसी को जांचती-परखती है, लेकिन जिस दिन उन्हे उस मदांध को समझाना होता है, औकात दिखाना होता है, वह उसे सत्ताच्युत करने में देर नहीं करती। चाहे कोई कितना ही बड़ा राजनीतिज्ञ क्यों न हो। यदि कैप्टन अमरिंदर सिंह सत्ताच्युत होने से पहले इन बातों को सोचा होता तो आज 79 वर्ष की उम्र में उनके लिए नई पार्टी बनाने की नौबत ही नहीं आती। जैसा कि कैप्टन का दावा है कि कई विधायक उनके संपर्क में हैं, तो सच में वह उनके समर्थक या शुभचिंतक नहीं होंगे, लेकिन ऐसे राजनीतिज्ञ होंगे जो जरूर मौकापरस्त होंगे तथा उन्हें बरगला रहे हैं। सत्ता को सभी सलाम करते हैं, क्योंकि ऐसे लोग कम होते हैं जो हर परिस्थिति में व्यक्ति विशेष का साथ दे। कहा तो यह भी जाता है कि सत्ताच्युत व्यक्ति का साथ कोई नहीं देता। देखना यह होगा कि कैप्टन किस आश्वासन पर इतना बड़ा कदम उठा रहे हैं और यदि उनका भरोसा पक्का है तो इसका परिणाम क्या होता है, यह देखने के लिए हमें इंतजार करना होगा। और अंत में कांग्रेस यदि अपने सत्तासीन राज्यों में अपने ही षड्यंत्रकारियों बहकावे में आकर अपने जमे जमाए सरकार को छेड़ती रही तो निश्चित रूप से चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर की यह बात सच हो जाएगी जिसमें उन्होंने कहा है कि ‘राहुल गांधी मोदी को सत्ता से हटाने के भ्रम में न रहें, राजनीति में दशकों तक ताकतवर भाजपा बनी रहेगी।’

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं)

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