Home दुनिया Guest Column : पाकिस्तान को कहीं बर्बाद न कर दे ‘कश्मीर’

Guest Column : पाकिस्तान को कहीं बर्बाद न कर दे ‘कश्मीर’

शायद पाकिस्तान के वर्तमान प्रधानमंत्री को इसकी याद दिलाने की जरूरत नहीं होगी, क्योंकि उनकी आत्मा भारत की सामरिक शक्ति को जानती होगी । इन्ही बातों को ध्यान में रखते हुए तथा विश्व को एक कड़ा संदेश देते हुए भारतीय रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने पिछले दिनों अमरीकी यात्रा के दौरान कहा भी है कि भारत किसी को कभी छेड़ेगा नही, लेकिन यदि किसी ने भारत को छेड़ा तो वह उसे छोड़ेगा भी नही । पाकिस्तान के नए प्रधानमंत्री यह भी जानते होंगे कि भारत महात्मा गांधी और भगवान बुद्ध पर आस्था रखता है, इसलिए उसकी शांति को भंग करना कितना घातक हो सकता है।

निशिकांत ठाकुर

वर्ष 1947 में केवल भारत का बंटवारा हुआ था और इसके एक टुकड़े को पाकिस्तान नाम दिया गया था। ऐसा इसलिए, क्योंकि पाकिस्तान शब्द का प्रादुर्भाव सन् 1933 में उस वक्त हो गया था, जब कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के छात्र चौधरी रहमत अली ने ‘पाकिस्तान’ शब्द के बीज का रोपण किया था। रहमत अली पंजाब के होशियारपुर जिला के बलाचौर के रहने वाले थे। उससे पहले सन् 1930 में शायर डॉ. मुहम्मद इक़बाल ने भारत के उत्तर-पश्चिमी चार प्रांतों- सिंध, बलूचिस्तान, पंजाब तथा अफ़गान (सूबा-ए-सरहद) को मिलाकर एक अलग राष्ट्र बनाने की मांग की थी। जब भारत का बंटवारा हुआ तो दोनों देशों को बहुत कुछ मिला और बहुत कुछ दोनों से दूर भी हो गया। किसी को कुछ ज्यादा मिला, तो किसी को कुछ कम। कहा जाता है कि उस समय की परिस्थितियों का सिलसिलेवार आकलन करने पर तात्कालिक परिस्थितियां पाकिस्तान के विकास के पक्ष में ज्यादा थीं, लेकिन हमारे पास कई ऐसे महापुरुष थे, जिनके समतुल्य उस वक्त पूरे विश्व में किसी देश के पास कोई नहीं थे। वे महापुरुष थे पं. जवाहरलाल नेहरू, सरदार बल्लभ भाई पटेल, डॉ. राजेंद्र प्रसाद तथा स्वयं महात्मा गांधी और कई धुरंधर राष्ट्रभक्त। हिंदू- मुस्लिम के बीच समृद्ध भाईचारे में फूट डालने एवं संबंधों में जहर बोने के लिए शिक्षाविद लॉर्ड मैकाले वर्ष 1834 में ही भारत आ चुका था जिसे गवर्नर जनरल की कार्यकारी परिषद के विधि सदस्य के तौर पर नियुक्त किया गया था। भारतीय शिक्षा पद्धति में आमूल बदलाव के उसे आदेश दिए गए थे। उसमें उसे इशारा किया गया था कि हिंदू-मुस्लिमों के बीच एक ऐसी शिक्षा पद्धति की रूपरेखा तैयार हो, जिसमें हिंदू और मुस्लिम रेल की दो पटरियों की तरह हों, जो चलें तो साथ—साथ, लेकिन आपस में मिलें कभी नहीं। लॉर्ड मैकाले भारतीय प्राच्य शिक्षा का धुर विरोधी था। आज उसी शिक्षा के कारण न तो हिंदू, मुस्लिम को और न मुस्लिम, हिंदू को अपने भाई का दर्जा दे पा रहा है। भारत तो बंटवारे के बाद अपना विकास करता ही रहा, लेकिन अपनी कट्टरता के कारण पाकिस्तान अब तक न तो विश्व में अपनी छवि को सुधार पाया है और न अपने यहां की सरकार को स्थिर कर पाया है। उसका वर्तमान उदाहरण इमरान खान सरकार का दो मतों से गिर जाना और 30वें नए प्रधानमंत्री के रूप में शाहबाज शरीफ का पदभार संभालना है।

पाकिस्तान के जन्म का यही इतिहास रहा है। कुंठित पाकिस्तानी शासक अबतक भारत से चार युद्ध लड़ चुके हैं, लेकिन हर बार उन्हें अपने मुंह की खानी पड़ी है। भारत गांधी और भगवान बुद्ध के बताए शांति के मार्ग पर चलते हुए अपनी भारी—भरकम आबादी के बावजूद विकास के मार्ग पर आगे बढ़ता रहा और विश्व के अग्रणी राष्ट्रों की बराबरी करता रहा, लेकिन पाकिस्तान 1948, 1965, 1971 और 1999 में चार युद्ध लड़कर अपनी कुंठा शांत करता रहा। भारत से विभाजन काल में वह पूर्वी पाकिस्तान और पश्चिमी पाकिस्तान के नाम से जाना जाता था, लेकिन 1971 के युद्ध में उसकी अकड़ उस समय दो टुकड़ों में बंटकर नेस्तनाबूत हो गई जब पूर्वी पाकिस्तान ने ‘बांग्लादेश’ के रूप में जन्म ले लिया। अब प्रश्न उठता है कि पाकिस्तान के नव निर्वाचित सरकार का भारत से कैसा संबंध रहेगा, क्योंकि अब तक का अनुभव तो यही बताता है कि बंटवारे के बाद पाकिस्तान में जितनी भी सरकारें बनीं, सबका एकमात्र उद्देश्य भारत के खिलाफ आतंकियों को संरक्षण देना ही रहा है। कहा तो यह भी जाता है कि पाकिस्तानी सरकार यदि भारत के खिलाफ अपने यहां विष—वमन न करे तो वह चल ही नहीं सकती। ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि पाकिस्तान का जन्म ही भारत विरोध में हुआ है।

अब पहले यह समझ लेते हैं कि पाकिस्तान में अभी जो सत्ता परिवर्तन हुआ, वह कैसे और किस क्रम में हुआ। क्रिकेटर से नेता बने इमरान खान द्वारा पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) पार्टी के गठन और उनके द्वारा संसद को भंग करने के अचानक उठाए गए कदम से संबंधित प्रमुख घटनाक्रम इस प्रकार सामने आए हैं। वर्ष 1996 में इमरान खान ने पीटीआई का गठन किया, जिसका अर्थ है न्याय के लिए आंदोलन। इमरान खान अब पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नहीं हैं। उनकी सरकार गिर गई है। इमरान खान के खिलाफ नेशनल असेंबली में अविश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग हुई, जिसमें विपक्ष को पर्याप्त सदस्यों का समर्थन मिला और सत्तासीन सरकार ने बहुमत खो दिया। अविश्वास प्रस्ताव के पक्ष में 174 वोट पड़े। प्रस्ताव पास कराने के लिए जादुई आंकड़ा 172 है। इसी के साथ पीएम आवास को भी खाली करा लिया गया। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान को अविश्वास प्रस्ताव के बाद आउट वोट दिया गया था। इससे पहले यहां पल-पल बदलते राजनीतिक घटनाक्रमों के बीच शनिवार देर रात नेशनल असेंबली के अध्यक्ष असद कैसर और उपाध्यक्ष कासिम सूरी ने इस्तीफा दे दिया था। वहीं, प्रधानमंत्री इमरान खान के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पर मतदान शुरू हुआ, जिसमें विपक्ष को जीत हासिल हुई है। करीब तीन घंटे के स्थगन के बाद सदन की कार्यवाही शुरू होने के चंद मिनट बाद कैसर और सूरी ने इस्तीफा दे दिया था।

पाकिस्तान मुस्लिम लीग नवाज और पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के नेतृत्व ने सहयोगी दलों को संघीय कैबिनेट में शामिल करने और मनपसंद मंत्रालय देने का फैसला किया है। सत्तारूढ़ गठबंधन में आठ दल और चार निर्दलीय शामिल हैं। चूंकि शाहबाज शरीफ सिर्फ दो वोटों की बढ़त के कारण प्रधानमंत्री बने हैं, इसलिए वह अपने सहयोगियों के बीच किसी भी भ्रम के साथ अपना कार्यकाल प्रारंभ नहीं करना चाहते। सभी दलों को एकजुट करने तथा किसी गलतफहमी को जन्म नहीं देने के उद्देश्य से हो सकता है कि मंत्रिमंडल के गठन में कुछ समय लग जाए। जहां कहीं भी सत्ता परिवर्तन होता है पिछली सरकार पर गंदगी उछाली ही जाती है। पिछली सरकार के कार्यकाल की अच्छाइयों को नजरंदाज करके यदि जनता के समक्ष उस सरकार की छवि को धूमिल नहीं किया गया तो क्या पता अगर कल उसकी सरकार पलट जाए तो जाने फिर कैसे काम चलेगा। इसलिए अपनी सरकार को मजबूती देने और समर्थकों में अपने निर्णय का खास संदेश दिया जाता है। ऐसा ही खेल पाकिस्तान में इमरान सरकार गिरने पर शुरू हो चुका है। नव गठित सरकार द्वारा आरोप यह लगाया गया है कि पिछली सरकार में सरकारी हैसियत से जो उपहार मिले, उसे सरकारी खजाने में जमा नहीं कराकर इमरान खान ने उसे अपने पूर्व विशेष सहायक को दे दिया, जिन्होंने उसे लाहौर में एक सर्राफ को 18 करोड़ रुपये में बेच दिया। रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकारी पद पर रहते हुए प्राप्त उपहार की आधी कीमत चुकाकर उन्हें व्यक्तिगत संपत्ति के रूप में रखा जा सकता है, लेकिन पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान नें सरकारी खजाने में महज कुछ ही रकम जमा कराए। कानून के अनुसार सरकारी पद पर पदासीन होने के कारण मिले उपहारों को तोषखाने में जमा कराना पड़ता है, लेकिन पूर्व प्रधानमंत्री ने ऐसा नहीं किया। एक पाकिस्तानी न्यूज चैनल से बात करते हुए इमरान खान ने कहा कि “हमने वहां जो कुछ लिया वह रिकॉर्ड में दर्ज है । अगर किसी के पास भ्रष्टाचार का साक्ष्य हैं तो उसे आगे आना चाहिए” ।

शहबाज शरीफ का नजरिया भारत के प्रति क्या है, तो इसका अंदाजा इसी बात से पता चलता है कि पाकिस्तान के नए प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ ने अप्रैल 2018 में एक चुनावी रैली में कहा था कि ‘हमारा खून खौल रहा है। कश्मीर को हम पाकिस्तान का हिस्सा बनाकर रहेंगे।’ शहबाज शरीफ ने जब यह बयान दिया था, तब वह पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज की ओर से प्रधानमंत्री पद के दावेदार थे। इस एक बयान से समझा जा सकता है कि शहबाज का भारत के प्रति किस तरह का नजरिया है। प्रायः हर देश में यह होता है कि जनता की मानसिकता को भांपते हुए चुनावी सभा में नेतागण उनकी हां में हां मिलाकर अपने पक्ष में करने में माहिर होते हैं जिसे भारत में चुनावी जुमला कहा जाता है। लेकिन, जब सत्ता का भार कंधे पर आता है, तो सच में कुछ तो उस पर चर्चा भी नहीं करते और कुछ उसे मिट्टी में दबा देने में माहिर होते हैं।

रही कश्मीर पर शाहबाज शरीफ के खून खौलने की बात तो यदि उनका खून सत्तारूढ़ होने के बाद यदि अब भी खौल रहा है तो हो सकता है कि वह उसी खौलते खून में जलकर भस्म न हो जाएं। बंटवारे के बाद से अब तक पाकिस्तान के सभी नेताओं की यही लालसा रही अथवा अपनी जनता को बरगलाने का कश्मीर ही एक ऐसा लालीपॉप रहा जिसे जब चाहा, अपनी जनता को उसे दिखाकर, ललचाकर उसे अपने पक्ष में करने का प्रयास करता रहा है। शायद वर्तमान पाकिस्तान के प्रधानमंत्री को भारतीय आंतरिक शक्ति का अब तक आभास हो गया होगा जिसमें भारत ने अपनी तटस्थता की नीति का पालन करते हुए रूस-यूक्रेन युद्ध को रोकने का प्रयास किया और अमरीकी सरकार की धमकी में भी नहीं आया। भारत अपनी बचनबद्धता के प्रति प्रतिबद्ध है-रूस, भारत का मित्र था, है और रहेगा, क्योंकि वह वर्ष 1971 में हुए दोनों देशों के बीच के समझौते का पालन कर रहा है, जिसके पालन न करने के लिए अमेरिका द्वारा दवाब बनाया जा रहा है पर सफल नहीं हो पा रहा है। वह इसलिए क्योंकि भारत को रूस का वह वचन याद है जिसमें रूस ने कहा था कि भारत पर आक्रमण उसके ऊपर किया गया आक्रमण माना जाएगा। हम भारतीय इस बात के लिए प्रतिबद्ध हैं कि भारत अपनी सामरिक शक्ति के लिए डंका नहीं पीटेगा, लेकिन यदि हमारे स्वाभिमान पर कोई हमला करेगा तो उसकी मदद विश्व में कोई देश भी नहीं कर सकेगा।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं)

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