सुशासन दिवस पर गृहमंत्री अमित शाह ने दिया मोदी सरकार के कार्यों का ब्यौरा

सुशासन सप्ताह मनाने का जो निर्णय देश के प्रधानमंत्री जी ने किया और आजादी के अमृत महोत्सव में किया, इससे सुशासन का कॉन्सेप्ट दिल्ली से निकल कर, राज्यों की राजधानी से निकल कर गांवों तक पहुंचाने का काम हुआ है।

नई दिल्ली। आज केंद्र सरकार और भाजपा शासित राज्यों में सुशासन दिवस मनाया जा रहा है। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के जन्मदिन के अवसर पर यह दिवस मनाया जाता है। राजधानी दिल्ली में आयोजित एक समारोह में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि लोगों की सुशासन से अपेक्षा है कि जो विकास का मॉडल हो वो सर्वस्पर्शी हो, सर्वसमावेशक हो। देश का कोई क्षेत्र ऐसा न हो जिसमें विकास का स्पर्श न होता हो और समाज का कोई व्यक्ति ऐसा न हो, जिसका विकास के मॉडल में समावेश न होता हो। 70 साल में हमारे लोकतांत्रिक सिस्टम से लोगों का भरोसा उठता जा रहा था क्यों​कि लोकतंत्र के सुफल तभी लोगों तक पहुंचते हैं जब स्वराज को सुराज में परिवर्तित करें। नरेंद्र मोदी ने लोगों की स्वराज को सुराज में बदलने की अपेक्षा को जमीन पर उतारने का काम किया।

उन्होंने यह भी कहा कि आज हम सुशासन सप्ताह मनाने के लिए 25 दिसंबर के दिन एकत्र हुए हैं। आज के दिन के साथ 2 ऐसी विभूतियों की स्मृति जुड़ी है जिन्होंने देश के विकास और देश की आजादी के लिए और देश को एक नई दिशा दिखाने के लिए अपना पूरा जीवन लगा दिया। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि पंडित मदन मोहन मालवीय जी ने आजादी से पहले इस देश की गौरवमयी विरासत को दुनिया के सामने रखने का काम किया। उन्होंने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना की, भारतीय परंपरा के आधार पर नई और आधुनिक शिक्षा पद्धति कैसी हो सकती है, इसका एक आदर्श खड़ा करने का काम किया।

दिल्ली में सुशासन दिवस कार्यक्रम में गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि 2014 से पहले इस देश मे 60 करोड़ लोग ऐसे थे, जिनके परिवार में एक भी बैंक एकाउंट नहीं था, उसके घर में बिजली नहीं थी, किसी के पास घर ही नहीं था। 10 करोड़ से ज्यादा परिवार ऐसे थे जिनके पास शौचालय ही नहीं था। स्वास्थ्य के नाम पर बहुत बड़ा शून्य था, घर में बीमारी आने पर गरीब आदमी केवल ईश्वर को ही याद करता था। कैंसर, दिल का दौरा और लकवा जैसी बीमारी आने पर वो अपने आप को असहाय महसुस करता था, आजादी के कोई मायने नहीं रह जाते थे। उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य के नाम पर बहुत बड़ा शून्य था, घर में बीमारी आने पर गरीब आदमी केवल ईश्वर को ही याद करता था। कैंसर, दिल का दौरा और लकवा जैसी बीमारी आने पर वो अपने आप को असहाय महसुस करता था, आजादी के कोई मायने नहीं रह जाते थे।