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मेदांता में भारत की पहली थ्री-वे स्वैप लिवर ट्रांसप्लांट चेन ने तीन लोगों की जान बचाई

डॉ. नरेश त्रेहन, चेयरमैन एवं मैनेजिंग डायरेक्टर, मेदांता ने कहा, ‘‘यह ऐतिहासिक उपलब्धि विभिन्न सीनियर सुपर स्पेशलिस्ट्स के मल्टीडिसिप्लिनरी प्रयासों और मेदांता में क्रियान्वित इलाज एवं संचालन के कठोर प्रोटोकॉल्स की बदौलत हासिल हो सकी। इस उपलब्धि के बाद हम अपने पेयर्ड एक्सचेंज प्रोग्राम को लिवर और किडनी तक बढ़ाने की योजना बना रहे हैं, ताकि हम ज्यादा से ज्यादा लोगों को जीवन-रक्षक ट्रांसप्लांट प्रदान कर सकें।’’

गुड़गांव। मेदांता लिवर ट्रांसप्लांट टीम ने एक दुर्लभ उपलब्धि हासिल करते हुए देश में पहली बार थ्री-वे लिवर ट्रांसप्लांट स्वैप, या पेयर्ड एक्सचेंज किया, जिसके द्वारा टर्मिनल लिवर रोग से पीड़ित तीन मरीजों का एक साथ जीवनरक्षक लिवर ट्रांसप्लांट किया जा सका। इन तीन ट्रांसप्लांट्स के लिए मुख्य सर्जन क्रमशः डॉ. एएस सोइन, डॉ. अमित रस्तोगी, और डॉ. प्रशांस भांगुई थे।

यह थ्री-वे स्वैप तीन अजनबियों के बीच किया गया। मध्य प्रदेश के बिज़नेसमैन, संजीव कपूर; उत्तर प्रदेश के बिज़नेसमैन, सौरभ गुप्ता और दिल्ली की गृहणी, आदेश कौर को लिवर ट्रांसप्लांट की जरूरत थी। उन सभी का जीवन टर्मिनल लिवर फेल्योर के कारण खतरे में था, और उनकी जान बचाने के लिए तुरंत लिवर ट्रांसप्लांट किया जाना जरूरी था। वो इस स्थिति में नहीं थे कि डोनर का इंतजार किया जाए, जिसमें एक साल तक का समय लग सकता था। तीनी मरीजों के लिए उनके परिवार में ही जीवित डोनर थे, पर उनमें से कोई भी उचित मैच नहीं था। इन तीनों ने जीवित बचने की उम्मीद खो दी थी, पर मेदांता लिवर ट्रांसप्लांट टीम ने एक साथ स्वैप सर्जरी की योजना बनाकर इन तीनों को जीवन का एक और मौका प्रदान किया।

मेदांता के चीफ लिवर ट्रांसप्लांट सर्जन, डॉ. अरविंदर सोयन ने टीम के इस अभूतपूर्व प्रयास की सराहना करते हुए कहा, ‘‘हमने 2009 में दो ग्राहियों और डोनर जोड़ों के बीच लिविंग डोनर ऑर्गन स्वैप (या पेयर्ड एक्सचेंज) का कॉन्सेप्ट शुरू किया था। इस तरह के एक्सचेंज से उन ग्राहियों का जीवन बचाने में मदद मिलती है, जिनके रिश्तेदार, चिकित्सा की दृष्टि से स्वस्थ होने के बाद भी ब्लड ग्रुप और/या लिवर के आकार की असमानता के कारण डोनेट करने में असमर्थ होते हैं। पिछले 13 सालों में 46 बार टू-वे स्वैप (92 ट्रांसप्लांट) करने के बाद हमने थ्री-वे स्वैप चेन के कॉन्सेप्ट का विस्तार किया है, जिसमें तीन डोनर-ग्राही जोड़े होते हैं। यह तीन ट्रांसप्लांट एक साथ तीन डोनर्स और तीन ग्राहियों के ऑपरेशन द्वारा किए गए। 55 डॉक्टर्स और नर्सों ने 12 घंटों तक 6 ऑपरेटिंग रूम्स में एक साथ काम करते हुए लिवर ट्रांसप्लांट पूरा किया। जहाँ संजीव की डोनर (उसकी पत्नी) ब्लड ग्रुप कंपैटिबल थी, उसका आंशिक लिवर संजीव के लिए बहुत छोटा होता। दूसरी तरफ, सौरभ की डोनर (उसकी पत्नी) और आदेश का डोनर (उसका बेटा), दोनों ब्लड ग्रुप कंपैटिबल नहीं थे। पेयर्ड एक्सचेंज इस तरह प्लान किया गया कि तीनों मरीजों को ब्लड ग्रुप कंपैटिबल लिवर पर्याप्त मात्रा में मिल सका। सैद्धांतिक रूप से, चित्रों में बताए अनुसार, यह चेन चार, पाँच, या उससे भी ज्यादा डोनर-ग्राही पेयर्स तक बढ़ाई जा सकती है। एक सेंटर में इतने सारे लिवर ट्रांसप्लांट एक साथ करने की लॉजिस्टिक की चुनौती के कारण अब हम ऐसे प्रोटोकॉल्स का विकास कर रहे हैं, जो एक ही शहर में 2 या 3 अलग-अलग केंद्रों में लिवर एक्सचेंज की लंबी श्रृंखला प्राप्त कर सकें।

डॉ. अमित रस्तोगी, सीनियर लिवर ट्रांसप्लांट सर्जन, मेदांता ने कहा, ‘‘तीन लिवर ट्रांसप्लांट करने का मतलब है, एक साथ छः लिवर सर्जरी करना। यह एक बहुत बड़ा काम है, जिसके लिए अनेक कुशल सर्जंस, पर्याप्त संख्या में प्रशिक्षित स्टाफ और ऑपरेटिंग रूम्स की जरूरत होती है, ताकि एक्सचेंज के लिए सभी डोनर्स की सुरक्षित सर्जरी पूरी हो सके। इसके लिए सभी प्रतिभागियों को अपनी बीमारी की गंभीरता के लिए मैचिंग में होना जरूरी है, और परिणामों का अनुमान के अनुसार अच्छा होना जरूरी है। इतनी अनिवार्यताओं के कारण यह प्रक्रिया इससे पहले नहीं की गई थी। हमारी सफलता इस तरह के और पेयर्ड एक्सचेंज ट्रांसप्लांट्स के साथ भविष्य में लिविंग डोनर पूल बढ़ाने का मार्ग तैयार करेगी।’’

तीन ट्रांसप्लांट (छः ऑपरेशन) एक साथ क्यों किए गए, इस बारे में मेदांता में सीनियर ट्रांसप्लांट सर्जन, डॉ. प्रशांत भंगुई ने कहा, ‘‘ये ऑपरेशन जटिल होते हैं, एवं सभी डोनर्स और मरीजों को सर्जरी के लिए चिकित्सा की दृष्टि एवं मनोवैज्ञानिक रूप से तैयार करना पड़ता है। यदि ट्रांसप्लांट एक के बाद एक अगले दिन किए जाएं, तो संभावना हो सकती है कि जब डोनर के रिश्तेदार को पिछले दिन एक्सचेंज डोनेशन मिल जाए, तो अगले दिन वह डोनेशन से पीछे हट सकता है। साथ ही, अगले दिन कोई एक ग्राही सर्जरी के लिए अनफिट हो सकता है, क्योंकि ये मरीज कभी-कभी ट्रांसप्लांट से पहले गंभीर रूप से बीमार हुआ करते हैं।’’

डॉ. नीरज सराफ, सीनियर डायरेक्टर, हेपेटोलॉजी, मेदांता ने बताया कि संजीव और आदेश पीलिया के कारण एडवांस्ड लिवर फेल्योर से पीड़ित थे। उनके पेट में पानी जम रहा था और बार-बार कोमा की स्थिति उत्पन्न हो रही थी। सौरभ को एडवांस्ड लिवर कैंसर था। डॉ. सराफ ने बताया, ‘‘हमें लगा कि हम इन तीनों की जान नहीं बचा पाएंगे, क्योंकि किसी मरीज का प्रियजन उन्हें डोनेट करने के लिए उपयुक्त नहीं था। सभी परिवारों ने उम्मीद खो दी थी, तभी हमने थ्री-वे स्वैप की योजना बनाई। हालाँकि, उनके संक्रमणों एवं किडनी डिसफंक्शन जैसी अन्य जटिलताओं को रोकना और उन्हें उसी दिन सर्जरी के लिए चिकित्सा की दृष्टि से फिट बनाना एक बड़ी चुनौती थी।’’

मेदांता डॉ. निकुंज गुप्ता ने एनेस्थेसिया टीम का नेतृत्व किया। उन्होंने बताया कि एनेस्थेसिया किसी भी लिवर ट्रांसप्लांट में मुख्य भूमिका निभाता है। उन्होंने कहा, ‘‘सभी छः डोनर्स और रेसिपिएंट्स को सर्वश्रेष्ठ एनेस्थेटिक केयर प्रदान करने के लिए हमने स्टाफिंग, टाईमिंग और घटनाक्रम की बहुत सतर्कता से योजना बनाई, और एक दिन पहले डमी प्रयोग करके उसकी पुष्टि की। सर्जरी के दिन, हर काम योजना के अनुरूप चला, हर ऑपरेटिंग रूम में हमारी टीम के 2-3 सदस्य मौजूद रहे, और सर्जरी के दौरान सर्वश्रेष्ठ फ्लुड, रेस्पिरेटरी एवं ड्रग मैनेजमेंट करते रहे।’’

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