Home पॉलिटिक्स क्या भाजपा अब पूरा ताकत लगाएगी दक्षिण की ओर ?

क्या भाजपा अब पूरा ताकत लगाएगी दक्षिण की ओर ?

जिस प्रकार से भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष जेपी नड्डा, संगठन महामंत्री बीएल संतोष और केंद्रीय गृहमंत्री व पूर्व राष्ट्ीय अध्यक्ष अमित शाह दक्षिण प्रांत के राज्यों से मिल रहे हैं। वहां का दौरा कर रहे हैं। स्थानीय निकायों के चुनाव तक में प्रचार कर रहे हैं, उससे सियासी गलियारों में यह बात बहस का मुद्दा बन रही है कि क्या वाकई भाजपा अपना प्रसार दक्षिण भारत के राज्यों में चाहती है ?

असल में, बीते दिनों अमित शाह का हैदराबाद और चेन्नई जाने से इस बात को अधिक बल मिलता है। कुछ दिन पहले भाजपा के पूर्व अध्‍यक्ष और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह जैसे ही चेन्नई गई और कई नेताओं से मुलाकात करके लौट आए, उसके बाद सियासी कयासों का दौर शुरू हो गया। दौरे के दौरान उन्होंने पूर्व मुख्यमंत्री एम करुणानिधि के बड़े बेटे एम अलगिरि से भी मुलाकात की। मान सकतेे हैं कि आगामी विधानसभा चुनाव में भाजपा अलगिरि की संभावित पार्टी केडीएमके के साथ मिलकर चुनाव लड़ सकती है। अलगिरि डीएमके में काफी उपेक्षित रहे हैं। ऐसे में वह अपनी अलग पार्टी कलैनार डीएमके बनाने पर विचार कर रहे हैं।

अलगिरी के केडीएमके के साथ गठबंधन होने से भाजपा को लाभ हो या न हो, राज्य में मुख्य विपक्षी दल डीएमके को नुकसान जरूर पहुंचेगा। डीएमके के नुकसान में भी भाजपा अपना फायदा देख रही है, क्योंकि इससे उसकी सहयोगी और सत्ताधारी पार्टी एआईएडीएमके को मदद मिलेगी। जहां भाजपा को लाभ, वहां तो अमित शाह दिखेंगे ही।

और तो और, भाजपा का इस राज्य में जनाधार नहीं है। उसकी छवि भी तमिलनाडु की प्रमुख पार्टियों की तरह ब्राह्मण विरोधी आंदोलन के अनुकूल भी नहीं है। ऐसे में एक द्रविड़ पार्टी का साथ लेकर भाजपा प्रदेश में अपने जनाधार के विस्तार की उम्मीद लगाए है। राज्य में भाजपा का सत्ताधारी एआईएडीएमके के साथ गठबंधन है।

दोनों पार्टियों के बीच हाल के दिनों में तल्खी बढ़ने के संकेत भी मिले हैं। जयललिता के निधन के बाद पार्टी के करीबी कई उद्योगपतियों के यहां छापेमारी और इसके अलावा बागी नेता ओ पनीरसेल्वम के विद्रोह तथा पार्टी के विभाजन तक में भाजपा का हाथ माना जाता है। बताया जाता है कि एआईएडीएमके के शीर्ष नेतृत्व के पास भाजपा की ऐसी आक्रामक सियासी नीतियों से निपटने में दक्षता नहीं थी। ऐसे में पार्टी का भाजपा से गठबंधन को मजबूरी ही माना जा रहा है। हाल ही में वेल यात्रा को लेकर भाजपा और एआईएडीएम के मतांतर खुलकर सामने आए थे।

प्रदेश में जमीनी स्तर पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के लिए पार्टी हर वह चीज कर रही है, जो उसे सही लगता है। इसके लिए भाजपा के पूर्व अध्यक्ष को अपने सहयोगी दलों से भी टकराव मोल लेने में गुरेज नहीं है।

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