Home पॉलिटिक्स क्या किसान को समझने में असफल है वर्तमान सरकार ?

क्या किसान को समझने में असफल है वर्तमान सरकार ?

भूतपूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय लालबहादुर शास्त्री ने नारा दिया था – जय जवान जय किसान। अर्थ स्पष्ट है कि उन्होंने देश की रक्षा में अपने प्राणों की आहूति देने वालों का नमन किया उनके लिए जय जयकार किया और किसानों में उत्साह भरने के लिए उनके भी जय जयकार का नारा दिया। यदि जवान देश की रक्षा में है, तो किसान आपको जीवन देने के लिए जीतोड़ मेहनत करके अनाज उगाकर हमारा पेट भरते हैं। खेती करने और अनाज उगाने में हमारे देश के लगभग 80 प्रतिशत किसान लगे हैं, जिससे हम 100 प्रतिशत भारतीय जीवित है। उनकी मेहनत, उनकी कर्मठता को शत शत नमन।

अपना इतिहास यदि हम देखें तो पिछले पचास वर्षों में भारत में जो हरित क्रांति शुरू हुई आज उसी का परिणाम हुआ है कि देश ही नहीं, विश्व पर करोना 19 के संकट होने के बाद भी हम किसी भी देश के आगे हाथ फैलाने नहीं गए और अन्न के भंडार आज भी देश में भरे पड़े हैं। किसी लापरवाही से यदि देश में भूख से मौत हो जाए तो वह अफवाद ही होगा क्योंकि हमारे किसानों ने सरकार के सहयोग और वैज्ञानिक तरीकों को अपनाकर खेती के नए नए तरीके अपनाए और उन्होंने हमें आत्मनिर्भर बना दिया। अब हमारे देश में विदेशों से लदकर समुद्री मार्ग से जहाज नहीं आते। हां, कुछ खाद्य सामग्री अपवाद जरूर है ।

किसानों की इस मेहनत की कोई प्रशंसा नहीं करता, उनकी पीठ पर कोई हाथ नहीं रखता। यदि वह अपने परिश्रम की कीमत मांगता है, तो सर्दी में भी उसके उपर पानी की बौछार मारकर उसे अपने हक को मांगने से रोक दिया जाता है। यह बात इसलिए कह रहा हूं क्योंकि इस बीच किसानों के साथ जो कुछ हुआ और हो रहा है उसे देखकर ऐसा लगता है कि सरकार से देश के अन्नदाता द्वारा अपना अधिकार मांगना अपराध हो गया है। बड़े बड़े राजनेता लगभग किसान परिवार से ही आते हैं , लेकिन सत्ता की कुर्सी पर पहुंचते ही उन्हें सत्ता सुख इतना प्रिय और लाभप्रद लगने लगता है कि वह अपने ही परिवार के ही किसान सदस्यों की पिटाई करके पानी की बौछारों को मारकर सरकार के पक्ष में गलत बयानी करते हैं, समाज को बरगलाते हैं। ऐसा इसलिए लिख रहा हूं क्योंकि कृषि से संबंधित विवादित विधेयक आज देश भर में चर्चा का विषय बना हुआ है। पंजाब से शुरू हुआ यह आंदोलन अब धीरे धीरे पूरे भारतवर्ष में जोर पकड़ कर आग की तरह सुलग रहा है।

मुद्दा वहीं विवादित कृषि विधेयक है, जिसके विरोध में सत्तारूढ़ दल में शामिल अकाली दल की हरसिमरत कौर ने मंत्री मंडल से त्यागपत्र दे दिया। प्रधानमंत्री कहते हैं कि यह किसानों के हित में है और उन्हें दलालों के चंगुल से मुक्त कराने का एक प्रयास है । यह ठीक भी है कि जिस सरकार ने उनके ही नेतृत्व में विधेयक को पास किया हो, उसकी आलोचना भला मंत्रिमंडल में कौन कर सकता है। हां, जिसने विरोध किया उसने त्यागपत्र दे दिया। भारत में आंदोलन आज से नहीं, करीब 1900 के आसपास से ही किसान गोलबंद होने लगे थे और 1917 ,1920 में अवध किसान सभा का गठन हुआ। किसानों के गोलबंद होने की खबर पूरे देश में फैल गई और महाराष्ट्र के नेता बाबा रामचंद्र इसमें शामिल हो गए। वह गांव-गांव घूमकर रामकथा सुनते थे और किसानों को एकजुट करने लगे।

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