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यूं ही नहीं कहते हैं ममता को शेरनी, भाजपा की विशाल फौज को दी मात

भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों सहित पार्टी के दिग्गज नेताओं ने राज्य में दस साल से सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस को सत्ता से बेदखल करने की मंशा से यहां पार्टी की चुनावी रैलियों को संबोधित किया था। देश भर से आए भाजपा नेताओं ने यहां पार्टी के चुनाव अभियान में सक्रिय योगदान किया था ।

कोलकाता। ममता बनर्जी (Mamta Banarjee) अकेली पूरी भारतीय जनता पार्टी (BJP) की फौज पर भारी पडी। नंदीग्राम में जिस प्रकार से रोमांचक जीत हासिल की, वह भी उनके जीवटता को बताता है। तृणमूल कांग्रेस (TMC) अभी जश्न मना रहा है, जिसका पूरा अधिकार उसे है। भाजपा कोे इस सदमें से उबरने में अभी वक्त लगेगा। अब सवाल उठता है कि आखिर यह कैसे संभव हुआ है ?

इसका सीधा सा जवाब है कि ममता बनर्ती भारतीय राजनीति में यूं ही शेरनी नहीं कही जाती हैं। जिस जीवटता से उन्होंने पहली बार पश्चिम बंगाल में सत्ता हासिल की, उसी जीवटता के साथ तीसरी बार भी सत्ता में बनी रही। भाजपा को यह मलाल तो अवश्य ‌होगा कि पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनावों में ‌अपनी सारी ताकत झोंक देने के बावजूद वह तृणमूल कांग्रेस (TMC)को सत्ता से बेदखल करने में सफल नहीं ‌हो‌ पाई।

बता दें कि 294 सदस्यीय विधानसभा के इन चुनावों में उसने 200 पार का नारा दिया था। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (Narendra Modi) , केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा सहित अनेक केंद्रीय मंत्रियों, भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों सहित पार्टी के दिग्गज नेताओं ने राज्य में दस साल से सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस को सत्ता से बेदखल करने की मंशा से यहां पार्टी की चुनावी रैलियों को संबोधित किया था। देश भर से आए भाजपा नेताओं ने यहां पार्टी के चुनाव अभियान में सक्रिय योगदान किया था ।

भाजपा (BJP) की इतनी ‌बडी फौज का सामना करने के लिए तृणमूल कांग्रेस (TMC) के पास केवल ममता बनर्जी (Mamta Banarjee) का चेहरा था लेकिन अकेली ममता बनर्जी ही भाजपा की इतनी बड़ी फौज पर भारी पड़ गई । पश्चिम बंगाल की राजनीति में ममता बनर्जी के कद का कोई नेता भाजपा ‌के पास न होने के कारण पार्टी अपने किसी भी नेता को भावी मुख्यमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट करने का जोखिम नहीं उठा पाई। कभी ममता बनर्जी के विश्वस्त सहयोगी माने जाने वाले शुभेंदु अधिकारी को अपने खेमे में शामिल कर लेने में कामयाब होने के बावजूद भाजपा ने न तो उन्हें भावी‌ मुख्यमंत्री के रूप में पेश किया और न ही भाजपा के प्रदेश ‌अध्यक्ष दिलीप घोषित को ममता बनर्जी के कद का नेता माना यद्यपि तृणमूल कांग्रेस के अनेक वरिष्ठ सांसदों, विधायकों को फोड़ने में मिली सफलता ने भाजपा के हौसले जरूर बुलंद कर दिए थे।

ऐसा प्रतीत होता है कि महिलाओं ने‌ ममता बनर्जी ‌को अपना समर्थन प्रदान किया। मुस्लिम मतदाताओं ने अपने वोट को बिखरने न दिया। न तो कांग्रेस की ओर से वोट गया और न ही वाम दलों की ओर। चुनाव केवल तृणमूल और भाजपा के बीच ही रहा। चुनाव के दौरान ममता बनर्जी के पैर की चोट ने भी ममता बनर्जी के लिए मतदाताओं के मन में सहानुभूति जगा दी। उन्होंने इन चुनावों में बाहरी का जो मुद्दा उछाला वह भी ममता बनर्जी के लिए फायदेमंद साबित हुआ। भाजपा शायद यह अनुमान ही नहीं लगा पाई कि इन चुनावों में तृणमूल कांग्रेस के पक्ष में अंडर करंट बह रहा है।

इस सबके बावजूद भाजपा (BJP) ने राज्य विधानसभा के इन चुनावों में जो सफलता हासिल की है वह निःसंदेह ऐतिहासिक है परंतु भाजपा को तो यह तो स्वीकार करना ही चाहिए कि ममता बनर्जी के कद का कोई नेेता उसके पास न होना इन चुनावों में उसकी पराजय का मुख्य कारण बन गया।

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