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किसानों के लिए अब 11 जनवरी भी होगा अहम, कृषि कानूनों के खिलाफ कोर्ट करेगी सुनवाई

नई दिल्ली। तारीख पर तारीख। यही हो रहा है दिल्ली की सीमाओं पर आंदोलन कर रहे किसानों के साथ। नए कृषि कानून को रद्द करने की मांग को लेकर वे महीनों से आंदोलन कर रहे हैं, लेकिन अब तक उन्हें कोई समाधान का रास्ता नहीं दिख रहा है। हां, कहने के लिए केंद्रीय मंत्रियों के साथ उनकी सात दौर की बात हो चुकी है, लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकला है। अब इस मामले को लेकर 11 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट सुनवाई करेगी।

असल में, बुधवार को उच्चतम न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ ने टिप्पणी की है कि किसानों के आन्दोलन के मसले पर जमीनी स्तर पर कोई सुधार नहीं हुआ है। केन्द्र सरकार ने पीठ को सूचित किया कि सरकार और किसानों के बीच इन मसलों पर ‘स्वस्थ विचार विमर्श’ जारी है। केंद्र सरकार की ओर से अटार्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने कहा कि निकट भविष्य में संबंधित पक्षों के किसी नतीजे पर पहुंचने की काफी उम्मीद है और नये कानूनों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर केन्द्र का जवाब दाखिल होने की स्थिति में किसानों और सरकार के बीच बातचीत बंद हो सकती है।

वहीं, सालिसीटर जनरल तुषार मेहता ने पीठ को सूचित किया कि सरकार और किसानों के बीच स्वस्थ वातावरण में बातचीत जारी है और इस मामले को आठ जनवरी को सूचीबद्ध नहीं किया जाना चाहिए। इस पर पीठ की ओर से कहा गया कि हम स्थिति को समझते हैं और सलाह मशविरे को प्रोत्साहन देते हैं। अगर आप बातचीत की प्रक्रिया के बारे में कहते हैं तो हम इस मामले को सोमवार 11 जनवरी के लिये स्थगित कर सकते हैं।’

बता दें कि सुप्रीम कोर्ट अधिवक्ता मनोहर लाल शर्मा की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। शर्मा ने भी तीनों कृषि कानूनों की संवैधानिक वैधता को चुनौती दे रखी है। पीठ ने शर्मा की याचिका पर केन्द्र को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। शर्मा का तर्क है कि केन्द्र को संविधान के तहत इन कानूनों को बनाने का अधिकार नहीं है। पीठ ने यह भी कहा कि हम इस याचिका (शर्मा की) को शुक्रवार को सुनवाई के लिये रख रहे हैं और इस बीच संशोधित याचिका को रिकार्ड पर लेने की अनुमति दे रहे हैं। हालांकि, पीठ ने यह भी कहा कि एम एल शर्मा हमेशा ही चैंकाने वाली याचिकायें दायर करते हैं और वह कहते हैं कि केन्द्र को कानून बनाने का अधिकार नहीं है।

 

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