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Vastu में दिशाओं का महत्व

वास्तु शास्त्र में दिशाओं के उपर बहुत बल दिया गया इसका ध्यान आम लोगों को रखना चाहिए ताकि आपका स्वास्थ्य उत्तम रह सके और समृद्धि बनी रहे ।

नई दिल्ली। वास्तु नियमों का उल्लंघन और विपरीत दिशाओं के चयन से उस दिशा से संबंधित ग्रह के कारकत्वों में आने वाले रोगों का सामना करना पड़ता है। संबंधित दिशा के देवता के सामर्थ्य से प्राप्त होने वाली समृद्धियों की भी कमी होती है जिससे हमारा समय प्रतिकूल होता है । वास्तु शास्त्र में दिशाओं के उपर बहुत बल दिया गया इसका ध्यान आम लोगों को रखना चाहिए ताकि आपका स्वास्थ्य उत्तम रह सके और समृद्धि बनी रहे ।

यहां दिशाओं को मुख्यतः आठ भागों में बांट कर बताते हैं। आकाश और पाताल को भी दिशा के रूप में समझते हैं परन्तु हम यहां आठ दिशाओं की बात करेंगे । हमें दिशाओं के साथ-साथ सभी ग्रहों के अधिपति ग्रह व दिशाओं के देवताओं का भी ध्यान रखना चाहिए । साथ ही साथ विशेष जानकारी के लिए वास्तुपुरूष को अधोमुख जमीन पर दबाते हुए जिन सुरासुरों ने जिस अंग व दिशाओं में निवास किया उस अंग और उन सुरासुरों के गुण स्वरूप के अनुसार स्वास्थ्य व समृद्धि में परेशानी होती है । इसे शास्त्रानुसार समझना आसान होता है, विज्ञान भी अपनी तरक्की के साथ-साथ इस विधा को मानने के लिए मजबूर है ।

दिशाओं के प्रतिकूल प्रयोग से होने वाली शारीरिक व मानसिक परेशानी के साथ-साथ समृद्धि में कमी को समझा जा सकता है। इसके वैज्ञानिक कारण को समझते हुए वास्तु से संबंधित आधुनिक विद्वान, आर्किटेक्ट आदि भी इसका ध्यान रखते हैं ।
वास्तु मुख व संरचना – पूर्व व उत्तर मुखी वास्तु के बारे में वास्तुविद और आम लोगों की भी यही धारणा है कि यह बेहतर होता है। काल परिवर्तन के अनुसार हर विषय पर शोध होता है। समय के अनुसार हर चीज में कुछ-न-कुछ परिवर्तन के प्रयास किये जाते हैं, ताकि उसकी स्वीकार्यता बढ़े। अगर मान्यता पुरानी भी हो तो उसे कहने का अंदाज बदला जाता है. अगर इसे पारंपरिक भाषा में कहें तो आधुनिक युग में पुरातन कहे जाने वाले हमारे शास्त्र बिल्कुल नवीन हो जाते हैं। हम उसकी सूक्षता को समझकर आधुनिक परिवेश में उसका प्रयोग करते हैं।

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