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सुप्रीम कोर्ट की दो टूक, पीएम की तस्वीर से नहीं होना चाहिए किसी को आपत्ति

कोई यह नहीं कह सकता कि प्रधानमंत्री कांग्रेस के प्रधानमंत्री हैं या भाजपा के प्रधानमंत्री या किसी राजनीतिक दल के प्रधानमंत्री हैं। लेकिन एक बार जब प्रधानमंत्री संविधान के अनुसार चुन लिए जाते हैं, तो वह हमारे देश के प्रधानमंत्री होते हैं और वह पद हर नागरिक का गौरव होना चाहिए।

नई दिल्ली। कोरोना टीकाकरण अभियान में मिल रहे प्रमाणपत्र पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तस्वीर लगी होने से कई लोगों ने इसके विरोध में आवाज उठाया था। मामला देश के सर्वोच्च न्यायालय में पहुंचा। सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि प्रधानमंत्री किसी राजनीतिक दल के नहीं बल्कि राष्ट्र के नेता हैं और नागरिकों को उनकी तस्वीर और “मनोबल बढ़ाने वाले संदेश” के साथ टीकाकरण प्रमाण-पत्र ले जाने में “शर्मिंदा होने की जरूरत नहीं है।” इसके साथ ही अदालत ने कोविड-19 टीकाकरण प्रमाणपत्रों से प्रधानमंत्री की तस्वीर हटाने का अनुरोध वाली एक याचिका को खारिज कर दिया।

असल में, अदालत ने यह भी कहा कि जब कोविड-19 महामारी को केवल टीकाकरण से ही समाप्त किया जा सकता है तो अगर प्रधानमंत्री ने प्रमाण पत्र में अपनी तस्वीर के साथ संदेश दिया कि दवा और सख्त नियंत्रण की मदद से भारत वायरस को हरा देगा तो इसमें “क्या गलत है?”

अदालत ने एक लाख रुपये का जुर्माना लगाते हुए याचिका को खारिज कर दिया और कहा कि यह याचिका “तुच्छ, गलत उद्देश्यों के साथ प्रचार के लिए” दायर की गई और याचिकाकर्ता का शायद “राजनीतिक एजेंडा” भी था।

न्यायमूर्ति पी वी कुन्हीकृष्णन ने कहा, “मेरी राय के अनुसार, यह एक तुच्छ उद्देश्य से दायर की गई याचिका है और मुझे पूरा संदेह है कि याचिकाकर्ता का कोई राजनीतिक एजेंडा भी है। मेरे अनुसार, यह प्रचार पाने के लिए याचिका है। इसलिए, यह एक उपयुक्त मामला है जिसे भारी जुर्माने के साथ खारिज किया जाना चाहिए।”

अदालत ने याचिकाकर्ता – पीटर मयालीपरम्पिल को छह सप्ताह के भीतर केरल राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरण (केईएलएसए) के पास जुर्माना जमा करने का निर्देश दिया। अदालत ने कहा कि निर्धारित अवधि के भीतर जुर्माना जमा नहीं करने की सूरत में, केईएलएसए राजस्व वसूली की कार्यवाही शुरू कर याचिकाकर्ता की संपत्ति से राशि की वसूली करेगा।

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