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आज के समय में जरूरी है ‘‘कोविड-19 सभ्‍यता का संकट और समाधान’’ पुस्तक: पूर्व मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा

नई दिल्ली। नोबेल शांति पुरस्‍कार से सम्‍मानित कैलाश सत्‍यार्थी की पुस्‍तक ‘‘कोविड-19: सभ्‍यता का संकट और समाधान’’ का लोकार्पण भारत के पूर्व मुख्‍य न्‍यायाधीश न्‍यायमूर्ति श्री दीपक मिश्रा ने किया। राज्‍यसभा के उपसभापति श्री हरिवंश के विशिष्‍ट आतिथ्‍य में इस समारोह का आयोजन किया गया। प्रभात प्रकाशन द्वारा प्रकाशित इस पुस्‍तक का लोकार्पण ऑनलाइन माध्‍यम से संपन्‍न हुआ। पुस्‍तक के लोकार्पण समारोह का संचालन प्रभात प्रकाशन के निदेशक प्रभात कुमार ने किया, जबकि धन्‍यवाद ज्ञापन पीयूष कुमार ने किया।
इस पुस्तक में कोरोना महामारी के बहाने मानव सभ्‍यता की बारीक पड़ताल करते हुए यह बताने की कोशिश की गई है कि मौजूदा संकट महज स्वास्थ्य का संकट नहीं है, बल्कि यह सभ्यता का संकट है। भारत के पूर्व मुख्‍य न्‍यायाधीश श्री दीपक मिश्रा ने इस पुस्‍तक को महत्वपूर्ण और अत्यंत सामयिक बताते हुए कहा कि पुस्‍तक सरल और सहज भाषा में एक बहुत ही गहन विषय को छूती है। इस महत्वपूर्ण पुस्‍तक का अंग्रेजी सहित अन्‍य भाषाओं में भी अनुवाद किए जाने की जरूरत है। ताकि इसका लाभ अधिक से अधिक लोगों को मिल सके। महज 130 पृष्‍ठों की लिखी इस पुस्‍तक को पढ़कर अर्नेस्‍ट हेमिंग्‍वे के मात्र 84 पृष्‍ठों के उपन्‍यास ‘’ओल्‍ड मैन एंड द सी’’ की याद आना अस्‍वाभाविक नहीं है, जिसमें एक बड़े फलक के विषय को बहुत ही कम शब्‍दों में समेटा गया है। हेमिंग्‍वे को ‘’ओल्‍ड मैन एंड द सी’’ के लिए नोबेल पुरस्‍कार से सम्‍मानित किया गया था। कैलाश जी की यह किताब उनके ‘सामाजिक-राजनीतिक इंजीनियर’ के रूप को भी हमारे सामने प्रकट करती है। महान संस्‍कृत कवि भवभूति ने समाज सेवा को ही मानवता की सेवा कहा है। कैलाश जी इसके ज्‍वलंत उदाहरण हैं। यद्यपि पुस्‍तक गद्य में लिखी गई है लेकिन इसकी सुगंध कविता जैसी है। जिस दर्द की भाषा का हम प्रयोग करते हैं वह भाषा इस पुस्‍तक में मिलती है। इस अवसर पर पूर्व मुख्य न्यायाधीश ने कैलाश जी के कवि रूप की प्रशंसा की और पुस्तक में शामिल श्री सत्यार्थी की कविताओं को उद्धृत करते हुए उसकी दार्शनिक व्याख्या भी की।
राज्‍यसभा के उपसभापति श्री हरिवंश ने भी पुस्तक की महत्ता को रेखांकित करते हुए कहा कि कोविड संकट के दौर में इस पुस्‍तक का लिखा जाना मानव सभ्‍यता के इतिहास में एक नया अध्‍याय का जोड़ा जाना है। इस पुस्तक के माध्यम से बहुत ही बुनियादी लेकिन महत्वपूर्ण सवालों को उठाया गया और उनका समाधान भी प्रस्तुत किया गया है। यह सही है कि कोविड-19 का संकट महज स्‍वास्‍थ्‍य का संकट नहीं है बल्कि यह सभ्‍यता का संकट है। समग्रता में इसका समाधान करुणा, कृतज्ञता, उत्‍तरदायित्‍व और सहिष्‍णुता में निहित है, जिनका उल्‍लेख कैलाश जी अपनी पुस्तक में करते हैं। उन्‍होंने करुणा, कृतज्ञता, उत्‍तरदायित्‍व और सहिष्‍णुता की नए संदर्भ में व्‍याख्‍या भी की है, जिनका यदि हम अपने जीवन में पालन करें तो समाधान निश्चित है। कैलाश जी वैक्‍सीन को सर्वसुलभ करने की बात करते हैं और उस पर पहला हक बच्‍चों का मानते हैं, जो उनके सरोकार का उल्‍लेखनीय पक्ष है। संकट बहुत बड़ा है। चुनौती बहुत बड़ी है इसलिए इसका समाधान नए ढंग से सोचना होगा, तभी हम अपने अस्तित्‍व को बचा पाएंगे।
नोबेल शांति पुरस्‍कार विजेता कैलाश सत्‍यार्थी ने इस अवसर पर लोगों ध्यान कोरोना संकट से प्रभावित बच्चों की तरफ आकर्षित किया। उन्होंने कहा कि महामारी शुरू होते ही मैंने लिखा था कि यह सामाजिक न्‍याय का संकट है। सभ्‍यता का संकट है। नैतिकता का संकट है। यह हमारे साझे भविष्‍य का संकट है और जिसके परिणाम दूरगामी होंगे। इसके कुछ उपाय तात्‍कालिक हैं, तो कुछ लगातार खोजते रहने होंगे। महामारी के सबसे ज्‍यादा शिकार बच्‍चे हुए हैं। आज एक अरब से ज्‍यादा बच्‍चे स्‍कूल से बाहर हैं। इनमें से तकरीबन आधे के पास ऑनलाइन पढ़ने-लिखने की सुविधा नहीं है। बच्चों की दशा को व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि संयुक्‍त राष्‍ट्रसंघ की संस्‍थाओं ने अनुमान लगाया है कि कोरोना से उपजे आर्थिक संकट की वजह से 5 साल से कम उम्र के तकरीबन 12 लाख बच्‍चे कुपोषण के कारण मौत के शिकार हो जाएंगे। उन्होंने इन परिस्थितियों को बदलने पर जोर देते हुए कहा कि ऐसे बच्‍चों की सुरक्षा के लिए हमने दुनिया के अमीर देशों से वैश्विक स्‍तर पर ‘फेयर शेयर फॉर चिल्ड्रेन’ की मांग की है। महामारी से निपटने के लिए अमीर देशों ने अनुदान के रूप में कोविड फंड में 8 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर देने की घोषणा की थी, जिसमें उद्योग, व्‍यापार जगत और अर्थव्‍यवस्‍था को भी सुधारना था। हमने उसमें से आबादी के हिसाब से 20 प्रतिशत हिस्‍सा बच्‍चों के लिए देने की मांग की है। लेकिन अमीर देशों ने अभी तक बच्‍चों के मद में मात्र 0.13 प्रतिशत रकम ही दी है। न्‍याय की खाई कितनी चैड़ी है इस उदाहरण से समझा जा सकता है। श्री सत्यार्थी ने इस अवसर पर कोरोना वैक्‍सीन को मुफ्त में सर्वसुलभ कराए जाने की मांग की। उन्होंने कहा कि संकट से उबरने के लिए हमें “करुणा का वैश्‍वीकरण” करना होगा।

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