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West Bengal Byelection : भबानीपुर उपचुनाव से राजनीतिक रसूख बढ़ेगा सीएम ममता बनर्जी का

संवैधानिक प्रावधानों के तहत मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को 5 नवंबर तक विधानसभा में जीतकर आना है। चुनाव आयोग ने सितंबर में होने वाले उपचुनाव की घोषणा कर दी है। तृणमूल कांग्रेस की ओर ममता बनर्ती भबानीपुर सीट से नामांकन दाखिल करेंगी।

कोलकाता। ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल की राजनीति में एक ऐसा नाम है, जिन्होंने अपने बूते ही संघर्ष किया और राजनीतिक की शिखर पर जा पहुंची। सड़क से संसद की राजनीति कैसे तय की जाती है, इसको पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी बखूबी जानती है। कुछ महीने पहले में संपन्न राज्य के विधानसभा चुनाव में की भाजपा की पूरी फौज का अकेले सामना किया। हां, उनके पीछे बंगाली मानुष का भरोसा था, नतीजा सत्ता में उनकी वापसी हुई। अब हो रहे उपचुनाव में उनका रसूख और बढे़गा, इसकी पूरी संभावना है।

भबानीपुर विधानसभा सीट से सीएम ममता बनर्जी ने अपनी उम्मीदवारी घोषित कर दी है। बता दें कि नंदीग्राम विधानसभा चुनाव वह हार गई थी, इसलिए संवैधानिक बाध्यता के कारण उन्हें किसी और सीट से चुनकर सदन पहुंचना है। सो, वह अपनी पारंपरिक सीट भबानीपुर से उम्मीदवार बनी है। यहां से उनकी जीत तय है। हाल के दिनों में जिस प्रकार से भाजपा के कुछ विधायक ममता बनर्जी को अपना नेता मानते हुए तृणमूल कांग्रेस में आ रहे हैं, उससे सीएम ममता बनर्जी की जीत को लेकर किसी को भी संशय नहीं होना चाहिए।

असल में, वरिष्ठ पार्टी नेता सोभनदेव चट्टोपाध्याय ने भबानीपुर से तृणमूल कांग्रेस विधायक के रूप में इस्तीफा दिया है ताकि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के उपचुनाव लड़कर राज्य विधानसभा की सदस्य बनने का रास्ता साफ हो। चट्टोपाध्याय ने इस सीट पर भाजपा के उम्मीदवार और अभिनेता रुद्रनील घोष को करीब 28,000 वोटों से हराया था।

ममता बनर्जी हाल में हुए विधानसभा चुनाव में नंदीग्राम सीट पर भाजपा के शुभेंदु अधिकारी से हार गयी थीं। उन्हें मुख्यमंत्री पद पर बने रहने के लिए इस उपचुनाव में जीत हासिल करनी होगी। भबानीपुर उपचुनाव के लिए अधिसूचना छह सितंबर को जारी होगी, जिसके बाद नामांकन की प्रक्रिया शुरू हो जाएगी।

ममता बनर्जी को पांच नवंबर तक राज्य विधानसभा की सदस्यता प्राप्त करनी होगी। बनर्जी 2011 से दो बार भबानीपुर सीट पर चुनाव जीत चुकी हैं। वह इस साल की शुरुआत में हुए विधानसभा चुनाव में अपनी परंपरागत सीट छोड़कर नंदीग्राम लड़ने चली गयी थीं लेकिन अपने पूर्व सहयोगी शुभेंदु अधिकारी से हार गयीं, जो अब विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष हैं।

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