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West Bengal Politics : जिसका था अंदेशा वही हुआ, ममता ने नहीं मानी मुख्य सचिव को भेजने की बात

मुझे आशा है कि नवीनतम आदेश (मुख्य सचिव का तबादला दिल्ली करने का) और कलईकुंडा में आपके साथ हुई मेरी मुलाकात का कोई लेना-देना नहीं है। मैं सिर्फ आपसे बात करना चाहती थी, प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री के बीच आमतौर पर जिस तरह से बैठक होती है उसी तरह से। : मुख्यमंत्री बनर्जी

कोलकाता। पश्चिम बंगाल (West Bengal) की राजनीति एक बार फिर गरमा गई। केंद्र सरकार के आदेश को मानने से राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने मना कर दिया है। उन्होंने राज्य के मुख्य सचिव को केंद्रीय नियुक्ति नहीं भेजने का निर्णय लिया है। इसके लिए उन्होंने प्रधानमंत्री से औपचारिक अनुरोध किया है। इसके लिए ममता बनर्जी (Mamta Banarjee)ने प्रधानमंत्री को पांच पन्ने का पत्र लिखा और उसे मीडिया में सार्वजनिक कर दिया।

इस घटना को राजनीति से जोडकर देखा जा रहा है। जानकार कहते हैं कि यदि सरकारी स्तर पर भी अनुरोध करना था, तो पत्र की जानकारी मीडिया को नहीं दिया जाता है। जिस प्रकार से पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने मुख्य सचिव के तबादले का मुद्दा बनाया है, उसके सहारे वो राज्य में नई राजनीति करना चाहती है और संदेश देना चाहती है कि पश्चिम बंगाल की सत्ता केवल और केवल उनके इशारे पर चलेगी। किसी और का हस्तक्षेप न तो बर्दाश्त होगा और न ही उसे माना जाएगा।

असल में, पश्चिम बंगाल के मुख्य सचिव अलपन बंदोपाध्याय को दिल्ली बुलाने के केंद्र के आदेश को ममता बनर्जी ने ‘असंवैधानिक’ करार दिया है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी (Mamta Banarjee) ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर यह आदेश वापस लेने का अनुरोध किया है। ममता बनर्जी ने यह भी कहा कि उनकी सरकार बंदोपाध्याय को कार्यमुक्त नहीं कर रही है। बता दें कि केंद्र सरकार की ओर से एक फैसले में 28 मई को बंदोपाध्याय की सेवाएं मांगी थीं और राज्य सरकार को प्रदेश के शीर्ष नौकरशाह को तत्काल कार्यमुक्त करने को कहा था। 1987 बैच के, पश्चिम बंगाल कैडर के आईएएस अधिकारी बंदोपाध्याय साठ साल की उम्र पूरी होने के बाद सोमवार को सेवानिवृत्त होने वाले थे। बहरहाल, उन्हें केंद्र से मंजूरी मिलने के बाद तीन माह का सेवा विस्तार दिया गया।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) को भेजे पांच पन्नों के पत्र में , मुख्य सचिव को तीन माह का सेवा विस्तार दिए जाने के बाद, उन्हें वापस बुलाने के केंद्र सरकार के फैसले पर पुनरूविचार करने का अनुरोध किया है। मुख्यमंत्री ने पत्र में कहा है कि पश्चिम बंगाल के मुख्य सचिव को दिल्ली बुलाने के एकतरफा आदेश से स्तब्ध और हैरान हूं। यह एकतरफा आदेश कानून की कसौटी पर खरा नहीं उतरने वाला, ऐतिहासिक रूप से अभूतपूर्व तथा पूरी तरह से असंवैधानिक है। पश्चिम बंगाल सरकार इस गंभीर समय में मुख्य सचिव को कार्यमुक्त नहीं कर सकती, ना ही उन्हें कार्यमुक्त कर रही है। उन्होंने प्रधानमंत्री से कहा, ‘‘मैं आपसे विनम्र अनुरोध करती हूं कि अपने फैसले को वापस लें और पुनर्विचार करें। व्यापक जनहित में तथाकथित आदेश को रद्द करें। मैं पश्चिम बंगाल की जनता की ओर से आप से अंतरात्मा से तथा अच्छी भावना से काम करने की अपील करती हूं।’’

मुख्यमंत्री ने पत्र में यह अनुरोध भी किया कहा कि केंद्र ने राज्य सरकार के साथ विचार विमर्श के बाद मुख्य सचिव का कार्यकाल एक जून से अगले तीन महीने के लिए बढ़ाने जो आदेश दिया था उसे ही प्रभावी माना जाए। उन्होंने कहा कि संघीय सहयोग, अखिल भारतीय सेवा तथा इसके लिए बनाए गए कानूनों के वैधानिक ढांचे का आधार स्तंभ है।

सबसे अहम बात पत्र में यह भी लिखा है कि मुख्यमंत्री बनर्जी (Mamta Banarjee) ने सीधे तौर पर यह लिख दिया कि मुझे आशा है कि नवीनतम आदेश (मुख्य सचिव का तबादला दिल्ली करने का) और कलईकुंडा में आपके साथ हुई मेरी मुलाकात का कोई लेना-देना नहीं है। मैं सिर्फ आपसे बात करना चाहती थी, प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री के बीच आमतौर पर जिस तरह से बैठक होती है उसी तरह से। लेकिन आपने अपने दल के एक स्थानीय विधायक को भी इस दौरान बुला लिया जबकि प्रधानमंत्री-मुख्यमंत्री की बैठक में उपस्थित रहने का उनका कोई मतलब नहीं है।

 

 

 

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