Home लाइफस्टाइल क्या करें आप, जब टीनएनजर खुद लेने लगे फैसले ?

क्या करें आप, जब टीनएनजर खुद लेने लगे फैसले ?

अब गोलू बड़ा हो गया है। झूठी शाबाशी समझ लेगा। अपने जेहन से यह बात निकाल दें कि तारीफ करने से गोलू बिगड़ जाएगा। अन्यथा आपके पास आएगा, आपसे खुलेगा।

नई दिल्ली। एक समय था जब बच्चे की जिंदगी के अहम हिस्सा थे। वो खाने-पीने, सोने-जागने, खेलने, दोस्ती, कपड़े पहनने जैसी हर रोजमर्रा की व्यवस्थाओं में आप पर आश्रित था। पर, आज वो थोड़ा बदल गया है। उसे पसंद नहीं आपकी दखलअंदाजी। वो हर छोटा-बड़ा फैसला खुदा लेना चाहता है। जानते हैं कि अपने जिगर के टुकड़े की यह बेरूखी से आपका दिल जलता है। जरा सोचिए कि कभी आप भी उम्र के इस अल्हड़ दौर से गुजरे हैं। उसकी ये बेरूखी का सम्मान करें। कहीं कुछ गलत लगे तो बिना दुराव-छिपाव से टीनएजर से दिल खोलकर, जिंदादिली से बात करें। हां, सबसे जरूरी है कि अपनी जुबान में मिश्री घोल लें।

जब उसकी पसंद-नापसंद बनती-बिगड़ती जाएं

अभी तक तो छोटा गोलू आपके साथ प्लेग्राउंड या घर में खेलना पसंद करता था, अब अचानक सब बदल गया। उसे देर रात तक दोस्तों के साथ रहना पसंद हैै। बता दें कि जितना रोकेंगे वह उतना उस ओर जाने को व्याकुल होगा। आपके लिए एक हिदायत कि टीनएज गोलू को आजादी दें, लेकिन कुछ नियम बांध दें। मसलन समय तय करें दोस्तों, फेसबुक, इंटरनेट गेमिंग, होमवर्क, आउटिंग का। आप समझिए कि वो आपसे दूर नही जा रहा। बस, बड़ा हो रहा है। यह आजादी देने से आप उसके करीब आ रहे हैं। इस रवैये से ही आप उसकी अच्छी-बुरी आदतों पर पैनी नजर रख पाएंगे।
सारे पैरंट्स की चाहत होती है कि वे अपने बच्चों को बेहतरीन परवरिश दें। वे कोशिश भी करते हैं, फिर भी ज्यादातर पैरंट्स बच्चों के बिहेवियर और परफॉर्मेंस से खुश नहीं होते। उन्हें अक्सर शिकायत करते सुना जा सकता है कि बच्चे ने ऐसा कर दिया, वैसा कर दिया… इसके लिए काफी हद तक पैरंट्स ही जिम्मेदार होते हैं क्योंकि अक्सर किस हालात में क्या कदम उठाना है, यह वे तय ही नहीं कर पाते।

टीनएजर आपकी बात, आपका नजरिया नहीं समझता

यह दौर जीना थोड़ा मुश्किल होता है जब आपका गोलू आपकी कोई बात सुनना ही नहीं चाहता। दुख होता है, लेकिन टीनएज गोलू को भी समझिए। बात-बात पर उसे नकारेंगे या टोकेंगे, तो उसे बेइज्जती का अहास होगा। नतीजतन वो आपसे दूर होता जाएगा। इससे बचने का बेस्ट उपाय है कि आप टीनएजर के गलत-सही सोच का स्वागत करें। याद रहे कि एक किसी एक चीज को देखने का दो लोगों का अलग-अलग नजरिया होता है। उसकी सोच का स्वागत करें। जबरदस्ती अपनी सोच उसपर थोपे नहीं। इससे वो आपके करीब रहेगा और अच्छा-बुरा सबकुछ आपसे शेयर करेगा। नतीजतन वो आपकी बात सुनेगा और आप उस पर नजर रख पाएंगी। जब टीनएजर दिखाए अटीटयूड टीनएजर की गुड पेरंटिंग के गुर जानना ही पर्याप्त नहीं है। उसके पल-पल बदलते मूड को जानना भी बहुत जरूरी है। उम्र का यह दौर है यह जहां मूड स्विंग होता ही रहता है और ऐसे में आपकी खीझ उसे गलत राह पर अख्तियार कर सकती है। उसके मूड स्विंग को जान लिया अपने तो समझो हमेशा के लिए आपकी और गोलू की दोस्ती पक्की।

नजरअंदाज करें, समय दें

बात-बात पर उसे टोका-टाकी उसे जिद्दी बना देगी और फिर वो आपसे दूर भागेगा। उसके भले की लिए उसकी हर आड़ी-तिरछी बातों नजरअंदाज करें। हां, एक बात का ध्यान रहे कि नजरअदांज करने रवैया इतना नहीं बढ़ जाए कि वो गलत संगत में लिप्त हो जाए। यहां जुबान में मिश्री घोलकर उसे सब समझाना होगा। संयम से पेश आएं बात-बात पर गोलू आप से अनुचित व्यवहार करता है या गंदी जुबान में आपसे मुंहजोरी करता है, तो संयम से पेश आएं। ऐसे में मारने-पीटने से कुछ नहीं होगा। वरन वो और जिद्दी, डीठ बनेगा। ऐसी स्थितियों में संयम से काम लें। उसे समय, प्यार देने सबकुछ हल हो जाएगा। और वो आपसे अपशब्द, मुंहजोरी नहीं करेगा। यानी आप उससे फस्र्ट लव कर लीजिए।
इसका जादू दिखेगा गोलू के बिहेवियर में।

अपना स्टाइल बदलिए यदि गोलू बचपन से जवानी की दहलीज में दस्तक दे रहा है, तो आप भी बड़े हो रहे हैं। प्रौढ़ अवस्था के पास आ रहे हैं। टीनएज गोलू को आपकी टोका-टाकी जिद्दी बना सकती है। इस उम्र में मारने-पीटने से कुछ नहीं होगा। सजा देने से भी कुछ नहीं होगा। उसके हाथ से मोबाइल छीन लेने से कुछ नहीं होगा। फर्क पड़ेगा अपना स्टाइल बदलने से। उसे हाॅस्पिटल या अंधआलय या अनाथालय या स्पेेशल स्कूल में लेकर जाएं। वहां जाकर उसे अहसास होगा कि वह कितना लकी है। उसके पास सबकुछ है। और जो है वह उसे खोना नहीं चाहेगा। ऐसी जगहें उसमें जिम्मेदारी का जज्बा जगाएंगी।

नहीं लागू करें एक-सा नियम

सही परवरिश के लिए हालात के मुताबिक समझ-बूझ की जरूरत होती है। सब बच्चों पर एक ही नियम लागू नहीं हो सकता। चाहे बच्चों के ख्याल रखने की बात हो, प्यार जताने की हो या फिर सख्ती बरतने कीय हर बच्चे के साथ अलग ढंग से पेश आने की जरूरत होती है। सदगुरु जग्गी वासुदेव कहते हैं कि मान लीजिए मैं नारियल के बाग में खड़ा हूं और आप मुझसे पूछें, “एक पौधे को कितना पानी देना होगा?” तो मेरा जवाब होगा, “एक पौधे को कम-से-कम पचास लीटर।” घर जाने के बाद अगर आप अपने गुलाब के पौधे को पचास लीटर पानी देंगे, तो वह मर जाएगा। आपको देखना होगा कि आपके घर में कौन-सा पौधा है और उसकी क्या जरूरतें है? सदगुरु कहते हैं कि उनको जो बनना है, बनने दें। जिंदगी की अपनी समझ के मुताबिक उनको ढालने की कोशिश न करें। जरूरी नहीं कि आपने अपनी जिंदगी में जो किया, वही आपका बच्चा भी करे। बच्चे को ऐसा कुछ करना चाहिए जिसके बारे में सोचने तक की हिम्मत आपने अपनी जिंदगी में नहीं की। तभी यह दुनिया तरक्की कर पाएगी।
पीठ थपथपाएं

जरुरत पूरी करें, हर मांग नहीं

समाजशास्त्री डाॅ राकेश कुमार राजू कहते हैं कि जब आपकी जिंदगी में एक बच्चा आता है तो यह सीखने का वक्त होता है, सिखाने का नहीं। आपकी जिंदगी में उसके आने के बाद अनजाने ही आप हंसते हैं, खेलते हैं, गाते-बजाते हैं, सोफे के नीचे दुबकते हैं और वह सब-कुछ करते हैं जो आप भूल चुके थे। इसलिए यह जिंदगी के बारे में सीखने का वक्त है।

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