Home लाइफस्टाइल Pitru Dosh In Kundali Upay: पितरों का तर्पण करते समय अंगूठे के...

Pitru Dosh In Kundali Upay: पितरों का तर्पण करते समय अंगूठे के माध्यम से ही जल जमीन पर क्यों छोड़ा जाता है ?

20 सितंबर से पितु पक्ष प्रारंभ हो रहे है और सभी के मन मे यह विचार आता है कि हम अपने पितर या पूर्वजों के लिए क्या करे तो इसका समाधान इस प्रकार है... पितरो की शांति हेतु त्रिपिण्डी श्राद्ध, नारायण बलि कर्म, पितर गायत्री मंत्र जाप, महामृत्युंजय मंत्र जाप और श्रीमद् भागवत कथा कराये.

हिंदू धर्म में श्राद्ध पक्ष को बहुत ही पवित्र समय माना गया है, पितर पक्ष 20 सितंबर 2021 से प्रारंभ हो रहे है, श्राद्ध पक्ष से कई परंपराएं भी जुड़ी हैं। लेकिन इन परंपराओं के पीछे का कारण बहुत कम लोग जानते हैं ज्योतिषाचार्य पं. नरेन्द्र कृष्ण शास्त्री ने बताया कि आज आपको श्राद्ध से जुड़ी एक ऐसी ही परंपरा के बारे में बता रहे हैं, जो हम बचपन से देखते आ रहे हैं, लेकिन उसके पीछे का कारण से अनजान हैं। वो परंपरा है तर्पण करते समय अंगूठे के माध्यम से जल जमीन पर छोड़ना….
इसलिए तर्पण करते समय अंगूठे से छोड़ते हैं जल:- ज्योतिषाचार्य पं. नरेन्द्र कृष्ण शास्त्री ने बताया कि श्राद्ध कर्म करते समय पितरों का तर्पण भी किया जाता है यानी पिंडों पर अंगूठे के माध्यम से जलांजलि दी जाती है। ऐसी मान्यता है कि अंगूठे से पितरों को जल देने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है। इसके पीछे का कारण हस्तरेखा से जुड़ा है। हस्तरेखा के अनुसार, पंजे के जिस हिस्से पर अंगूठा होता है, वह हिस्सा पितृ तीर्थ कहलाता है। इस प्रकार अंगूठे से चढ़ाया जल पितृ तीर्थ से होता हुआ पिंडों तक जाता है। ऐसी मान्यता है कि पितृ तीर्थ से होता हुआ जल जब अंगूठे के माध्यम से पिंडों तक पहुंचता है तो पितरों की पूर्ण तृप्ति का अनुभव होता है। यही कारण है कि हमारे विद्वान पूर्वजों ने पितरों का तर्पण करते समय अंगूठे के माध्यम से जल देने की परंपरा बनाई है।

(1) त्रिपिण्डी श्राद्ध यदि किसी मृतात्मा की लगातार तीन वर्षों तक श्राद्ध नहीं किया जाए तो वह जीवात्मा प्रेत योनि में चली जाती है। ऐसी प्रेतात्माओं की शांति के लिए त्रिपिण्डी श्राद्ध कराया जाता है।
(2) नारायण बलि कर्म यदि किसी जातक की कुण्डली में पित्रृदोष है एवं परिवार मे किसी की असामयिक या अकाल मृत्यु हुई हो तो वह जीवात्मा प्रेत योनी में चला जाता है एवं परिवार में अशांति का वातावरण उत्पन्न करता है। ऐसी स्थिति में नारायण बलि कर्म कराना आवश्यक हो जाता है। पितरों का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए पितर गायत्री मंत्र का भी जाप कर सकते हैं।
(3) मृतात्मा की शांति के लिए भी महामृत्युंजय मंत्र जाप करवाया जा सकता है। इसके प्रभाव से पूर्व जन्मों के सभी पाप नष्ट हो जाते है।
(4) आचार्य पं. नरेन्द्र कृष्ण शास्त्री ने बताया कि पितरो की आत्मा की शांति के लिए श्रीमद्भागवत का पाठ कराना चाहिए। श्रीमद् भागवत कथा सुनने से प्रेत योनि से मुक्ति हो जाती है। और परिवार के लिए सुख शांति प्राप्त होती है।

Exit mobile version