नई दिल्ली। केंद्रीय मंत्रिमंडल में नए चेहरों को लेकर जितनी उत्सकुता रही, उससे अधिक चर्चा इस बात को लेकर भी हो रही है कि वरिष्ठ केंद्रीय मंत्रियों को क्यों छुट्टी कर दी गई ? यूं तो कई केंद्रीय मंत्रियों की छुट्टी हुई है, लेकिन इसमें सबसे चौंकाने वाला नाम पर केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री डॉक्टर हर्षवर्धन का है। कोरोना काल में उनके काम को आम जनता तो सराह रही है, लेकिन पतंजलि के कोरोनिल और इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के बीच हुए विवाद में इनकी काफी फजीहत हुई। जिस प्रकार से पतंजलि के स्वामी रामदेव के साथ कोरोनिल के लॉचिंग के मौके पर बतौर केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉक्टर हर्षवर्धन उपस्थित थे, उससे प्रधानमंत्री कार्यालय नाराज हो गया था।
गौर करने योग्य यह भी है कि कोरोना काल में कई राज्यों ने वैक्सीन की कमी को लेकर केंद्र सरकार पर निशाना साधा। केंद्र सरकार कहती रही है कि वैक्सीन की पूरी उपलब्धता है, लेकिन मीडिया में वैक्सीन की कमी भी दिखती रही। कहा जा रहा है कि केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की ओर से इसके लिए पूरी तत्परता से मीडिया में सही बात रखी नहीं गई। कहा जा रहा है कि इस बार केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री बनने के बाद से डॉक्टर हर्षवर्धन के व्यक्तिगत व्यवहार में परिवर्तन आया। कोरोना काल से पहले ही ये पार्टी कार्यकर्ताओं और आम जनता से मिलने में परहेज करने लगे थे। वैसे, बतौर केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री के रूप में मंत्रालय में ये घंटों बैठकर काम करते रहे हैं।
वहीं, केंद्रीय मानव संसाधन एवं विकास मंत्री डॉक्टर रमेश पोखरियाल निशंक जब बोर्ड परीक्षा को रद्द करने वाले दिन भी सार्वजनिक रूप से नहीं दिखे, तो उस समय से ही तय माना जा रहा था कि इनकी छुट्टी की जाएगी। कोरोना काल में शिक्षा को लेकर पूरा देश संशय में रहा, लेकिन बतौर केंद्रीय शिक्षा मंत्री डॉक्टर निशंक जनता के सवालों का सही से सामना नहीं कर पाए।
स्वतंत्र प्रभार लिए श्रम मंत्री संतोष गंगवार को उनकी बढ़ती उम्र और स्वास्थ्य कारणों से मंत्रिमंडल से विश्राम दिया गया है। पार्टी उनका अनुभव संगठन के कामों में लेगी। केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री थावरचंद गहलोत को एक दिन पहले ही राज्यपाल के रूप में नियुक्ति कर दी गई।