अनंत अमित
सुप्रीम कोर्ट का कल का फैसला बेहद महत्वपूर्ण है। 2024 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में कथित फर्ज़ी मतदान पर दाख़िल याचिका को अदालत ने खारिज करते हुए साफ़ कहा कि “ऐसा कोई ठोस सबूत सामने नहीं आया है जो फर्ज़ी मतदान का संकेत देता हो।” अदालत ने यह भी जोड़ा कि इस तरह की याचिकाएँ केवल क़ानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग हैं।
यह लोकतंत्र के लिए बड़ा संदेश है कि केवल आरोप लगाना पर्याप्त नहीं, बल्कि प्रमाण भी होना चाहिए। दुर्भाग्य की बात है कि राजनीति अब तथ्यों से ज़्यादा शोरगुल और आरोप-प्रत्यारोप तक सीमित होती जा रही है। राहुल गांधी पर “झूठ की दुकान या शोरूम” चलाने का आरोप इसी दिशा की ओर इशारा करता है।
चुनाव आयोग का काम संविधान के तहत तय है। आयोग अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर निर्णय नहीं ले सकता। ऐसे में विपक्ष का आयोग को धमकी देना न केवल अनुचित है बल्कि लोकतांत्रिक संस्थाओं पर सीधा प्रहार भी है। राजनीति में मतभेद होना स्वाभाविक है, लेकिन उसे बदले की भावना से संचालित करना देशहित में नहीं कहा जा सकता।
सत्ता पक्ष जहां शासन संचालन और नीतियों को लागू करने के लिए उत्तरदायी होता है, वहीं विपक्ष की भूमिका लोकतंत्र के प्रहरी की होती है, जो सरकार के हर कदम पर सवाल उठाकर जनभावनाओं को दिशा देता है और असंतोष को स्वर प्रदान करता है। लेकिन मौजूदा समय में विपक्ष, खासतौर से कांग्रेस नेता राहुल गांधी, इस जिम्मेदारी में विफल दिखाई देते हैं। जिस तरह से उन्होंने वोट चोरी, ईवीएम में गड़बड़ी और मतदाता सूचियों की जांच को लेकर निराधार व असंगत आरोप लगाए हैं, उससे न केवल संवैधानिक संस्था चुनाव आयोग की गरिमा और विश्वसनीयता को ठेस पहुँची है, बल्कि विपक्ष की भूमिका भी संदेह के घेरे में आ गई है।
सौभाग्य से, मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर इन आरोपों का बिंदुवार जवाब दिया और राहुल गांधी के दावों को न केवल असत्य साबित किया, बल्कि उन्हें चेतावनी भी दी कि वे या तो अपने आरोपों के समर्थन में शपथपत्र प्रस्तुत करें या सात दिनों के भीतर देश से माफी माँगें। यह चेतावनी बिल्कुल आवश्यक थी, क्योंकि राहुल गांधी ने अपने संकीर्ण राजनीतिक हितों की पूर्ति के लिए लोकतांत्रिक संस्थाओं की गरिमा और प्रतिष्ठा को ठेस पहुँचाने की हदें पार कर दी हैं।
विपक्ष का उद्देश्य केवल सत्ता की आलोचना करना नहीं होता, बल्कि उसका दायित्व है कि वह जनता की वास्तविक समस्याओं—जैसे बेरोजगारी, महंगाई, जीएसटी की अत्यधिक वसूली, पर्यावरण संरक्षण, स्वच्छता और महिलाओं की सुरक्षा—को सामने लाए, ठोस विकल्प प्रस्तुत करे और लोकतांत्रिक संस्थाओं की मजबूती में योगदान दे। यदि विपक्ष केवल आरोप-प्रत्यारोप में उलझकर अपनी ऊर्जा नष्ट करता है और समाधान पेश नहीं करता, तो वह जनता का भरोसा खो देता है। यही कारण है कि आज विपक्ष कमजोर स्थिति में नजर आता है, क्योंकि वह समस्याएँ गिनाता तो है, मगर रास्ता दिखाने में पिछड़ जाता है।
सत्ता पक्ष को भी यह नहीं भूलना चाहिए कि लोकतंत्र केवल बहुमत से नहीं चलता, बल्कि सहमति और पारदर्शिता से भी संचालित होता है। यदि विपक्ष लगातार सवाल उठा रहा है, तो सत्ता पक्ष का दायित्व है कि वह धैर्यपूर्वक जवाब दे, जांच की प्रक्रिया खोले और आरोपों को तथ्यों की कसौटी पर परखे। विपक्ष की आवाज को पूरी तरह नकारना लोकतंत्र को कमजोर करने जैसा है। सत्ता और विपक्ष के बीच जब टकराव बढ़ता है, तब न्यायपालिका अंतिम सहारा बन जाती है। यही वजह है कि आज बार-बार सुप्रीम कोर्ट से हस्तक्षेप की मांग उठती है। यह लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत नहीं है, क्योंकि इससे प्रतीत होता है कि जनता और राजनीतिक दल चुनाव आयोग व अन्य संवैधानिक संस्थाओं पर पर्याप्त विश्वास नहीं कर पा रहे। नतीजतन, न्यायपालिका पर लोकतंत्र के भरोसे को पुनः स्थापित करने की जिम्मेदारी आ गई है, जबकि यह कार्य मूलतः सरकार और राजनीतिक दलों का है।
लोकतंत्र का सार यही है कि सत्ता और विपक्ष एक-दूसरे के विरोधी नहीं, बल्कि पूरक हों। विपक्ष को केवल विरोध तक सीमित न रहकर रचनात्मक विकल्प देने होंगे, वहीं सत्ता पक्ष को समझना होगा कि विपक्ष की आलोचना लोकतंत्र की स्वाभाविक और आवश्यक प्रक्रिया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपनी सरकार की शुरुआत से ही विपक्ष की भूमिका को महत्व दिया है और संवेदनशील नेतृत्व का परिचय दिया है। लेकिन जब विपक्ष आग्रह, पूर्वाग्रह और दुराग्रह से ग्रस्त हो, तो सकारात्मक दिशा कैसे संभव हो सकती है?
वहीं, यह भी कम विडंबनापूर्ण नहीं है कि विपक्ष भारत की ऐतिहासिक अंतरिक्ष उपलब्धियों की सराहना तक करने से बचता है। हाल ही में “ऑपरेशन सिंदूर” ने दुनिया को भारत की अंतरिक्ष क्षमताओं से परिचित कराया। विपक्षी दल भाजपा और एनडीए के प्रति अपनी भड़ास एक ऐसे अंतरिक्ष यात्री पर निकाल रहे हैं जो किसी भी राजनीतिक दल से जुड़ा हुआ नहीं है।
आज की राजनीति में सत्ता और विपक्ष के बीच टकराव तीव्र है। यह टकराव लोकतंत्र को कमजोर करने वाला नहीं, बल्कि उसे परिपक्व बनाने वाला होना चाहिए। आवश्यकता इस बात की है कि विपक्ष अपनी जिम्मेदारी निभाते हुए रचनात्मक भूमिका अदा करे और सत्ता पक्ष आलोचना को स्वीकारते हुए जवाबदेही का परिचय दे। तभी लोकतंत्र की असली ताकत और जनता का विश्वास बरकरार रह सकेगा।