बड़े बड़े बोल न बोलो भैया …

कमलेश भारतीय

हमारे नेताओं को बड़े बड़े बोल बोलने की आदत है या कहिए कि यह ऐसा रोग है जो राजनीति में आने के बाद लग ही जाता है । दूसरों को चुनौतियां देना आम बात है राजनीति में ! अभी ताजातरीन बड़े बोल गृहमंत्री अनिल विज ने कहे कि चीन को समझ लेना चाहिए कि यह भारत वुजदिल जवाहर लाल नेहरु का भारत नहीं है । बताइए चीन के कदमों से कैसे आप नेहरु को खोज लाये ! सिर्फ सन् 1962 की लड़ाई को याद कर ? हर नाकामी का दोष नेहरु पर और हर सफलता सन् 2014 के बाद ? जैसे कि कंगना रनौत ने कहा थे कि असली आजादी सन् 2014 में मिली थी जबकि सन् 1947 में तो अंग्रेजों ने महात्मा गांधी को भीख दी थी । जो इतने विकास के काम किये उन्हें भूल गये ! इंदिरा गांधी को खुद अटल बिहारी वाजपेयी ने दुर्गा कहा था, वह भी तो एक युद्ध के बाद ही न ! आजकल एकतरफ एक नेता को पप्पू तो दूसरे को फेंकू साबित करने में कोई कमी नहीं छोड़ रहे कांग्रेस और भाजपा के आईटी प्रकोष्ठ ! वैसे भी तोल मोल के बोल ही श्रीमुख से अच्छे लगते हैं ।

आजकल चौटाला परिवार में भी एकदूसरे को कुछ न कुछ कहने सुनाने की बातें आ रही हैं । अभी भिवानी की रैली में डाॅ अजय चौटाला ने कहा कि जो सरकार बनाने का दावा करते थे , उनका एक ही विधायक क्यों रह गया ? इसी तरह एक और बात कही जा रही है कि इनेलो बताये कि उनके बाकी 84 विधायक कहां हैं जो न्याययुद्ध के बाद जीत कर आये थे । अब एक ही विधायक कैसे रह गया ?

इधर कुलदीप बिश्नोई ने भी ताजातरीन बयान में पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा को धृतराष्ट्र कहने में देर नहीं लगाई कि पुत्रमोह के चलते उन्हें धृतराष्ट्र कहूं तो गलत न होगा । क्या चौ भजनलाल को चंद्रमोहन और कुलदीप के सिवाय कोई अन्य दिखता था चुनाव लड़वाने के लिए ! दूसरों को कठघरे में खड़ा करना आसान है , खुद को आइने में देखना पसंद क्यों नहीं ? क्या आदमपुर में कोई और नेता ही नहीं था जो परिवार में ही प्रत्याशी मिलते गये और पांच लोग आदमपुर से एक ही परिवार के विधायक बने ? चौ वीरेंद्र सिह ठीक ही कहते हैं कि मैं राजनीति में दरियां बिछाने नहीं आया लेकिन आदमपुर में लोग दरियां बिछाते ही रह गये । यही क्यों हरियाझा में अनेक अन्य ऐसे चुनाव क्षेत्र हैं जहां लोग बस दरियां ही बिछाते आ रहे हैं ! फिर ऊपर से दीपेंद्र हुड्डा को हरियाणा का पप्पू कहने लगे हैं कुलदीप बिश्नोई और भव्य बिश्नोई ! अरे आप मुख्यमंत्री बनने की दौड़ में रहे और अब खिसकते खिसकने विधायक तक आ गये तो क्या वे मुंगेरीलाल के हसीन सपने ही थे मुख्यमंत्री बनने के ? नामकरण सभी करते हैं राजनीति में ! सभी विरोधी एकदूसरे का कोई न कोई नाम लेते हैं और रैलियों में इससे जनता का मनोरंजन भी करते हैं । पर जनता के मनोरंजन किसी दूसरे की हंसी उड़ाकर क्यों ? प्रसिद्ध व्यंग्यकार डाॅ इंद्रनाथ मदान ने कहा था कि मजा तो तब है जब आदमी खुद का मज़ाक उड़ाये न कि दूसरों पर हंसकर मनोरंजन करे । वे एक शेर भी कहते थे
नशा पिला के गिराना तो सब जानते हैं साकी
मजा तो तब है जो गिरते को थाम ले साकी !
इसलिए कोशिश होनी चाहिए कि तोल मोल कर ही बात की जाये और सभ्य मजाक किया जाये ।