नई दिल्ली / लखनउ। सितंबर महीने का केस अब दिसंबर में कोर्ट की निगरानी में चला गया। लोगों की उम्मीद जगी है कि सच और झूठ प्रपंच का खेल सामने आ जाएगा। कोर्ट ने जिस प्रकार से हाथरस रेप कांड पीडिता के बयान को आधार सीबीआई ने अपनी हजारों पन्नों की चार्जशीट दाखिल की और कोर्ट ने अगली सुनवाई की तारीख, लोगों के बीच यह मामला फिर से आ गया है।
लोगों का कहना है कि अब सच सामने आ जाएगा। बता दें कि हाथरस जिले के एक गांव बूलगढ़ी के बाहर खेत में चारा अपने मां भाई के साथ काट रही एक उन्नीस वर्षीय युवती पर 14 सितंबर को हमला हुआ और 29 सितंबर को उसकी मौत हो गई । भारी बवाल हुआ और मृतिका के शव का अंतिम संस्कार बिना परिवार की जानकारी के रातों रात जलाकर कर दिया गया । हद तो तब हो गई जब पुलिस ने कहा की चोट लगने से युवती की मौत हुई है और उसके साथ किसी प्रकार का अमानवीय कृत्य अर्थात सामूहिक बलात्कार नहीं किया गया, क्योंकि उसकी पुष्टि नहीं हो सकी है । शव का अंतिम संस्कार रातों रात इसलिए कर दिया गया क्योंकि पुलिस प्रशासन को खुफिया तंत्रों से मिली जानकारी के अनुसार सुबह होने पर बहुत बड़ा बवाल होने वाला था अशांति फैल जाती जातीय दंगा अगड़ी और पिछड़ी जातियों का शुरू हो सकता था । पुलिस और प्रशासन का भंडाफोड़ न हो जाए इसलिए किसी भी मीडिया को घटना स्थल अथवा परिवार के आसपास पहुचनें नहीं दिया गया।
उस समय कुछ दिनों के लिए हाथरस का यह गांव नेशनल ही नहीं, इंटरनेशनल मीडिया और एक्टिविस्टों के लिए हाॅट केक से कम नहीं रहा। हाथरस और दिल्ली की दूरी मानो चंद फर्लांग की हो, उसी हिसाब से दिल्ली से राष्ट्ीय नेताओं की आवाजाही होती रही। तरह तरह के आरोप प्रत्यारोप एक दूसरे पर लगे । पूरे देश के लिए हाथरस एक मुद्दा बन गया फिर राज्य सरकार को इसके लिए सीबीआई जांच की सिफारिश करनी पड़ी।
और अब फिर सीबीआई ने 67 दिन बाद जो चार्जशीट अदालत में सौंपी है, वह चैंकानेवाला है। सीबीआई ने इस बात की पुष्टि की है कियुवती के साथ सामूहिक बलात्कार भी हुआ और उसकी हत्या भी की गई । अब मामला अदालत के समक्ष है और देखना यह है कि अदालत का निर्णय क्या होता है? हाथरस के मामले में पुलिस इतनी संवेदनहीन क्यों हो गई थी ? जांच इसकी भी की जानी चाहिए। हर बात को राजनीतिक रंग देकर ऐसे लोग ही सरकार को बदनाम करने की साजिश रचते हैं और सरकार को धोखे में रखकर अपना मान सम्मान बढ़ाते है।
जानकार लोगों का कहना है कि निश्चित रूप से सरकार ने यह आदेश अपने किसी प्रशासनिक अधिकारी अथवा पुलिस अधिकारी को नहीं दिया होगा कि वह मृतिका का दाह संस्कार से पहले उसके शव को उसके घर पर नहीं ले जाया जाएगा , उसका रातों रात बिना परिवार के किसी सदस्य की उपस्थिति में दाह संस्कार कर दिया जाय । मीडिया के किसी सदस्य को उसके आसपास फटकने न दिया जाए । फिर किस खुशामद के चलते यह सब किया गया यह बात अब भी उन लोगों को समझने कि जरूरत है जो इसे करने में शामिल थे । यह भी ठीक है कि इन सारी बातों का खुलासा अदालत में ऐसे अधिकारियों को करना पड़ेगा क्योंकि अब तक यह एक रहस्य जैसा लगता है कि इतना पर्दा इस मामले के ऊपर क्यों डाला गया ? जिसे सीबीआई ने अब सड़ांध मारते हुए गंदगी को अदालत के समक्ष चार्जशीट के रूप में दाखिल किया है ।