नई दिल्ली: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच संबंधों को लेकर सियासी हलकों में चर्चा तेज है। हाल ही में भागवत ने 75 साल की उम्र के बाद नेताओं को स्वेच्छा से रिटायर होकर दूसरों को मौका देने की नसीहत दी थी। माना गया कि यह संदेश अप्रत्यक्ष रूप से पीएम मोदी को संबोधित था, जो अगले महीने 75 साल के हो जाएंगे। दिलचस्प बात यह है कि इसी साल मोहन भागवत भी 75 साल के हो रहे हैं।
भागवत के इस बयान के कुछ ही दिनों बाद उन्होंने एक कार्यक्रम में स्वास्थ्य और शिक्षा के बढ़ते व्यवसायीकरण पर सरकार को कठघरे में खड़ा किया। इससे पहले भी मणिपुर हिंसा और चुनावी मुद्दों पर वे परोक्ष रूप से केंद्र सरकार पर सवाल उठा चुके हैं।
लालकिले से आरएसएस का पहला उल्लेख
स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहली बार लालकिले की प्राचीर से आरएसएस की स्थापना के सौ साल पूरे होने पर उसकी प्रशंसा की। मोदी ने कहा, “राष्ट्र के लिए ये सौ साल की सेवा एक गर्व और सुनहरा अध्याय है। स्वयंसेवकों ने मां भारती की सेवा के लिए अपना जीवन समर्पित किया है।”
यह पहला मौका था जब किसी प्रधानमंत्री ने स्वतंत्रता दिवस के भाषण में आरएसएस का उल्लेख किया। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह संघ और सरकार के बीच ठंडे पड़े रिश्तों को फिर से गर्माहट देने की कोशिश है।
विपक्ष के निशाने पर पीएम मोदी
कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने इस पर तंज कसते हुए ट्वीट किया कि “पीएम मोदी की कुर्सी मोहन भागवत की कृपा पर टिकी है। लालकिले से आरएसएस की तारीफ करके उन्होंने भागवत को खुश करने की कोशिश की है।”
‘बीजेपी को आरएसएस की जरूरत नहीं’ वाले बयान का असर
लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने कहा था कि पार्टी अब इतनी बड़ी हो चुकी है कि उसे आरएसएस की जरूरत नहीं है। इसके बाद 2024 के चुनाव में बीजेपी को अपेक्षा से कम 240 सीटें ही मिलीं। माना गया कि नड्डा के इस बयान से आरएसएस का कैडर उत्साहपूर्वक सक्रिय नहीं हुआ। चुनाव के बाद से ही बीजेपी ने संघ को फिर से साधने की कोशिशें शुरू की हैं।
क्या मोदी छोड़ेंगे पद?
मोहन भागवत के 75 साल की उम्र में रिटायरमेंट वाले संदेश के बाद यह सवाल भी उठ रहा है कि क्या पीएम मोदी भी इस पर अमल करेंगे? वरिष्ठ पत्रकार शरद गुप्ता का मानना है कि ऐसा होना मुश्किल है। वे कहते हैं, “मोदी तब तक पद नहीं छोड़ेंगे, जब तक उन्हें हटाया न जाए। 2014 में भी उन्होंने मुख्यमंत्री पद आखिरी दिन तक नहीं छोड़ा था।”
रिश्तों में खटास या रणनीति?
आरएसएस के पूर्व पदाधिकारी और बीजेपी नेता राम माधव ने हालांकि इस तरह की अटकलों को नकारते हुए कहा है कि बीजेपी और संघ एक ही वैचारिक परिवार हैं और इनके बीच किसी तरह का टकराव नहीं है। मगर भागवत के तीखे बयानों और मोदी द्वारा लालकिले से पहली बार संघ की प्रशंसा करने के राजनीतिक मायने निकाले जा रहे हैं।
राजनीतिक जानकार मानते हैं कि आने वाले समय में यह साफ होगा कि भागवत की नसीहत और मोदी का जवाब महज प्रतीकात्मक है या फिर इसके पीछे कोई बड़ा संकेत छिपा है।