नई दिल्ली। दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता पर जनसुनवाई के दौरान हुआ हमला केवल एक व्यक्ति पर हुआ हमला नहीं, बल्कि लोकतांत्रिक व्यवस्था और कानून-व्यवस्था की गंभीर चुनौती है। जनसुनवाई वह मंच है, जो जनता और सत्ता के बीच भरोसे और संवाद का पुल बनाता है। लेकिन जब इसी मंच पर हिंसा देखने को मिले, तो यह न सिर्फ सुरक्षा व्यवस्था की कमजोरियों को उजागर करता है, बल्कि लोकतांत्रिक मूल्यों और नागरिक शिष्टाचार पर भी सवाल खड़े करता है।
लोकतंत्र में आलोचना और विरोध का अधिकार हर नागरिक को है, लेकिन असहमति की भाषा हिंसा नहीं हो सकती। मुख्यमंत्री पर हमला दरअसल उस संवैधानिक पद पर हमला है, जो जनता की आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व करता है। राजनीतिक दृष्टि से यह घटना सत्तापक्ष और विपक्ष के बीच बहस का मुद्दा बन सकती है, मगर असली सवाल यही है कि अगर मुख्यमंत्री अपने आवास में ही सुरक्षित नहीं हैं, तो आम आदमी अपनी सुरक्षा पर भरोसा कैसे करे?
यह घटना सिविल लाइंस स्थित मुख्यमंत्री आवास पर हुई, जहां रेखा गुप्ता नागरिकों की शिकायतें सुन रही थीं। इस दौरान एक व्यक्ति ने उन पर हमला करने की कोशिश की। पुलिस ने आरोपी को मौके पर ही पकड़ लिया और बाद में मुख्यमंत्री को स्वास्थ्य परीक्षण के लिए अस्पताल ले जाया गया। आरोपी ने खुद को राजेश भाई खीमजी भाई साकरिया बताया और कहा कि वह गुजरात के राजकोट का रहने वाला है। फिलहाल पुलिस उसकी पृष्ठभूमि और मंशा की जांच कर रही है।
प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक, जब मुख्यमंत्री लोगों की शिकायतें सुन रही थीं तभी अचानक हंगामा हुआ और पुलिस ने हमलावर को काबू में किया। एक शिकायतकर्ता ने दावा किया कि आरोपी ने मुख्यमंत्री को थप्पड़ मारने की कोशिश की, जिससे मौके पर अफरातफरी फैल गई।
घटना के बाद भाजपा प्रदेश अध्यक्ष वीरेंद्र सचदेवा ने कहा कि मुख्यमंत्री की हालत ठीक है और वह “मजबूत महिला” हैं, जिन्होंने अपने कार्यक्रम रद्द नहीं किए। वहीं, दिल्ली कांग्रेस अध्यक्ष देवेंद्र यादव ने घटना को दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए कहा, “अगर मुख्यमंत्री ही सुरक्षित नहीं हैं, तो आम आदमी और औरत की सुरक्षा कैसे सुनिश्चित होगी?”
यह हमला केवल सुरक्षा में चूक नहीं, बल्कि लोकतांत्रिक परंपराओं पर भी गंभीर सवाल खड़ा करता है। मुख्यमंत्री आवास जैसी संवेदनशील जगह पर सुरक्षा में सेंध एक चेतावनी है कि सुरक्षा तंत्र को और मज़बूत करने की तत्काल ज़रूरत है।
भाजपा और कांग्रेस की प्रतिक्रियाएँ साफ संकेत देती हैं कि यह मामला अब केवल सुरक्षा का मुद्दा नहीं रहेगा, बल्कि राजनीतिक विमर्श का हिस्सा भी बनेगा। जनता के मन में भी यह संदेश गया है कि शिकायत दर्ज कराने के लिए बनाए गए सबसे सुरक्षित मंच पर भी अराजकता संभव है।
आखिरकार, रेखा गुप्ता पर हमला केवल एक व्यक्ति पर नहीं, बल्कि लोकतांत्रिक संस्कृति और सुरक्षा व्यवस्था पर सीधा प्रहार है। यह घटना प्रशासन और राजनीतिक दलों दोनों के लिए चेतावनी है कि सुरक्षा ढांचे को और मजबूत किया जाए और इसे राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप का विषय बनाने के बजाय नागरिक सुरक्षा और लोकतांत्रिक संवाद की मजबूती पर गंभीरता से चर्चा हो।