ट्रैफिकर का ‘टोही राडार’

बचनदेव की कहानी एक मिसाल है कि जिजीविषा और दृढ़ निश्चय के सहारे आप अतीत की कड़वाहटों को पीछे छोड़ जीवन में बहुत कुछ सार्थक कर सकते हैं। बचनदेव ने अनगिनत बच्चों को ट्रैफिकिंग करने वाले गिरोहों के चंगुल से मुक्त करा कर उन्हें नया जीवन दिया है। बचनदेव अपने आप में एक प्रेरक कहानी है।

नई दिल्ली। बचनदेव यादव की पैनी निगाहों से बच्चों की तिजारत करने वाले ट्रैफिकिंग गिरोहों का बच पाना मुश्किल है। न जाने कितने बच्चों को उन्होंने इन गिरोहों के चंगुल में फंसने से बचाया है। यह काम वे इसलिए इतने मनोयोग से कर पाते हैं क्योंकि खुद उनका बचपन शोषण और उत्पीड़न का शिकार रहा है।
झारखंड के देवघर में पैदा हुए बचनदेव यादव ने अपने माता-पिता को दो वक्त की रोटी जुटाने के लिए मशक्कत करते देखा। घर की माली हालत ऐसी थी कि मां-बाप की मदद के इरादे लेकर महज 15 साल की उम्र में वह शहर की ओर चल पड़ा। वहां उसे फोटो के फ्रेम बनाने वाली एक दुकान में नौकरी मिली। दुकान मालिक ने फौरन ताड़ लिया कि गरीब घर का कच्ची उम्र का ये लड़का अब जाएगा भी तो कहां? उसने बचनदेव की मजबूरी का फायदा उठाना शुरु कर दिया। कई आदमियों का काम उस अकेले बच्चे पर लाद दिया। साथ ही उसने तनख्वाह का पैसा मारने के लिए बहाना बनाया कि ये पैसे उसके माता-पिता के पास देवघर भेजे जाएंगे।
बचनदेव और दुकान में काम करने वाले अन्य बच्चों से रोजाना 15-16 घंटे काम कराया जाता। पांच-छह महीने उस दुकान में काम करने के बाद उसने समझ लिया कि यहां शोषण और जिल्लत के अलावा कुछ नहीं मिलने वाला है। यहां की जिंदगी से तंग आकर उसने इससे पीछा छुड़ा कर अपने गांव लौटने की सोची। किसी ने इसमें बचनदेव की मदद की और वह अपने गांव लौटा।
गांव पहुंचकर उसने अपनी पढ़ाई फिर शुरू की और साथ ही गांव के अन्य बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने लगा। आगे चलकर उसकी मुलाकात कैलाश सत्यार्थी फाउंडेशन (केएससीएफ) के सरवाइवर –लेड इंटेलीजेंस नेटवर्क के खुशवंत सिंह से हुई। इस नेटवर्क में वो युवा शामिल किए जाते हैं जो खुद पहले बाल मजदूर रह चुके होते हैं। इस नेटवर्क का काम है बच्चों को बहला फुसला कर बंधुआ मजदूरी या अन्य घृणित कार्यों में धकेलने वाले ट्रैफिकिंग गिरोहों के बारे में गोपनीय तरीके से जानकारी जुटाना और फिर उस जानकारी का बच्चों को छुड़ाने में इस्तेमाल करना। खुशवंत ने उसे केएससीएफ के कार्यों और अभियानों की जानकारी दी। बचनदेव फोटो फ्रेम बनाने वाली दुकान में काम करने के दु:स्वप्न सरीखे अनुभव से गुजर चुका था। वह नहीं चाहता था कि जो उसके साथ हुआ, वह उसके जैसे किसी अन्य बच्चे के साथ नहीं हो। जल्द ही खुशवंत की मदद से केएससीएफ का स्वयंसेवी बन गया। वह गांवों के उसके जैसे गरीब घरों के बच्चों की लाचारियां समझता था। वह जानता था कि अभावों के कारण किस तरह उन्हें कम उम्र में कमाने शहर जाना पड़ता है और शोषण का शिकार होना पड़ता है। उसने इन बच्चों की मदद करने की ठान ली और जल्दी ही उसे इस काम में एक संतुष्टि का अनुभव होने लगा।
बचनदेव अब झारखंड के गोड्डा जिले में सरवाइवर-लेड इंटेलीजेंस नेटवर्क के साथ काम करता है। यहां वह बच्चों को शोषण और उत्पीड़न से बचाने के अलावा उनके हक की लड़ाई लड़ कर इन बच्चों के जीवन को बेहतर बनाने में जुटा है। वह बच्चों की ट्रैफिकिंग में लगे लोगों पर पैनी नजर रखता है और इस बारे में गोड्डा और देवघर में रेलवे के अफसरों के साथ सूचनाएं साझा करता है। कोई भी ट्रैफिकर बचनदेव की पैना निगाहों से बच नहीं सकता। उसकी सटीक सूचनाओं की बदौलत अब तक तमाम बच्चों को ट्रैफिकिंग करने वाले गिरोहों के चंगुल से छुड़ाया जा चुका है।