कोरोना वैक्सीन को लेकर क्यों हो रही है हलाल की बात ?

नई दिल्ली। इंडोनेशिया से जो मसला उठा था, वह अब हर जगह मुस्लिम समुदाय के बीच मुद्दा बन रहा है। लोगों का कहना है कि कोरोना वायरस संक्रमण को रोकने के लिए वैक्सीन के आ जाने पर भी वो अपने समुदाय के उलेमाओं और मौलानाओं के फतवे का इंतजार करेंगे। उसके बाद वो कोरोना वैक्सीन लगवाने से पहले हलाल और हराम पर विचार करेंगे, अगर ये कोरोना वैक्सीन हलाल हुई तो लगवाएंगे और अगर ये वैक्सीन हलाल नहीं हुई तो फिर ये लोग इस वैक्सीन को हराम के नजरिए से देखेंगे और इसे लगवाने से परहेज करेंगे। वहीं कुछ ऐसे भी लोग थे, जिन्होंने कहा कि वे इस वैक्सीन में हलाल हराम एंगल को नहीं देखेंगे।

मुस्लिम धर्मगुरू मौलाना खालिद राशिद फिरंगीमहली से इस बारे में बातचीत की गई तो उन्होंने कहा कि वैक्सीन में हलाल या फिर हराम के एंगल को देखना ठीक नहीं है। शरीयत में तो जान बचाने के लिए जिसका भी गोश्त मिले जीवित रहने के लिए उसकी इजाजत है ऐसे में जो वैक्सीन आएगी उसे लगवाकर अपनी जान बचाने का काम करना चाहिए।

वहीं जब मुस्लिम समुदाय के एक और धर्मगुरू मौलाना सुफ़ियान से कोरोना वैक्सीन को लेकर बातचीत की गई तो उन्होंने भी वैक्सीन के समर्थन में बात की। वहीं आम मुस्लिमों की मानें तो उनका कहना है कि वैक्सीन जब आएगी तो वो उसको लगवाएंगे ताकि उनकी जान बच सके। लेकिन इसके बाद भी कुछ लोग ऐसे भी हैं जो वैक्सीनेशन से पहले उलेमा, मौलानाओं के फतवे का इंतज़ार ज़रूर करेंगे, यानी अगर मौलानाओं ने ये कह दिया कि ये भारत मे आई वैक्सीन हराम है और ये हलाल सर्टिफिकेट वाली नहीं है, तो वो उसे नहीं लगवा सकते।

असल में, इसकी शुरुआत उस समय हुई, जब दुनिया के सबसे बड़े मुस्लिम-बहुल राष्ट्र इंडोनेशिया ने इस्‍लामिक मूल्‍यों के मद्देनजर कोरोना वैक्‍सीन पर जल्‍दबाजी नहीं करने का निर्णय लिया है। इंडोनेशिया के राष्‍ट्रपति जोको विडोडो ने कहा कि कोरोना वैक्‍सीन को लेकर हम कतई जल्‍दबाजी में नहीं हैं। बता दें क‍ि इंडोनेशियाई राष्‍ट्रपति का बयान ऐसे समय आया है, जब नवंबर महीने में कोरोना वक्‍सीन को देश में लगाया जाना था।

इंडोनेशिया के राष्‍ट्रपति ने कहा कि एक कट्टर इस्‍लामिक राष्‍ट्र में 27 करोड़ लोगों को टीका लगाना एक चुनौती पूर्ण लक्ष्‍य है। राष्‍ट्रपति ने वैक्‍सीन के जल्‍दबाजी के खिलाफ स्‍पष्‍ट चेतावनी दी है। उन्‍होंने इस्‍लाम के तहत टीके को हलाल के बारे में स्‍पष्‍ट सार्वजनिक संदेश भेजने का आग्रह किया है। उन्‍होंने कहा कि टीकाकरण के पहले मैं यह सुनिश्चित करना चाहता हूं कि इसकी तैयारी पूरी कर ली गई हो। विशेष रूप से हलाल और हराम, मूल्य और गुणवत्ता के संबंध में। बता दें कि देश में इसके पूर्व भी इस बात पर विवाद रहा है कि क्‍या इस्‍लामिक सिद्धांत सार्वजनिक स्‍वास्‍थ्‍य से ऊपर रहा है। वर्ष 2018 में इंडोनेशिया उलेमा काउंसिल ने एक फतवा जारी कर खसरे के टीके को हराम घोषित किया था।

क्या होता है हलाल ?

हलाल एक अरबी शब्द है जिसका अर्थ है ‘अनुमेय या वैध’। हलाल इस्लाम और उसके भोजन कानून, विशेष रूप से मांस से संबंधित है। कुरान में वर्णित हलाल प्रक्रिया के अनुसार, केवल एक मुस्लिम व्यक्ति ही जानवर को मार सकता है। कई जगहों पर यह भी उल्लेख किया गया है कि अगर यहूदी और ईसाई हलाल प्रक्रिया का पालन कर जानवरों को मारते हैं, तो यह मांस इस्लामिक नियमों के अनुसार हलाल है।
कई इस्लामी देशों में, हलाल सर्टिफिकेशन सरकार द्वारा दिया जाता है। भारत में, FSSAI (भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण) का सर्टिफिकेशन लगभग सभी खाद्य पदार्थों पर देखा जा सकता है, लेकिन यह प्राधिकरण भारत में हलाल सर्टिफिकेशन नहीं देता है। भारत में, लगभग दर्जन भर कंपनियाँ हलाल सर्टिफिकेशन देती हैं जो इस्लाम के अनुयायियों के लिए खाद्य या उत्पादों के इस्तेमाल की अनुमति देता है।