नई दिल्ली। सीता केवल राम की पत्नी या राजा जनक की पुत्री नहीं थीं, बल्कि वैदेही थीं, जो गर्भ के बाहर पैदा हुईं। प्रकृति की बेटी और गरिमा और अनुग्रह, शक्ति और बलिदान की प्रतिमूर्ति थीं। हम अपनी बेटियों का जश्न क्यों नहीं मनाते हैं, इससे पहले कि हम घर पर उनकी योग्यता को पहचानें, दुनिया उनकी प्रशंसा क्यों करती है?“ इस प्रश्न के उत्तर के रूप में, सीएसटीएस ने उत्सव के हिस्से के रूप में एक अंतरराष्ट्रीय चित्रकला प्रदर्शनी का आयोजन किया है, जिसमें कलाकारों को उस क्षेत्र की एक प्राचीन कला परंपरा – मिथिला कला रूप में मिथिला की बेटी को चित्रित करने के लिए आमंत्रित किया गया है। प्राप्त प्रविष्टियों में से, सात देशों के 125 चित्रों को प्रदर्शित किया गया है, जो हमें इस बात पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर कर रहे हैं कि सीता कौन हैं। यह कहना है कि सीएसटीएस की डॉ सविता झा खान का।
बता दें कि सीएसटीएस और इंदिरा गांधी नैशनल सेंटर फॉर आर्ट्स (आई.जी.एन.सी.ए.) की ओर से जनपथ पर जानकी नवमी के दिन से सात दिनों तक मिथिला पेंटिंग्स की प्रदर्शनी लगाई है। देश और विदेशी कलाकारों ने इसे भेजा है। इसके साथ ही कई कार्यशालाएं आयोजित की गई, जिसमें सीता के विभिन्न आयाम को लेकर बातें हुईं। कलाकारों ने युवक-युवतियों को सीता और मिथिला पेंटिंग्स की जानकारी दी। बता दें कि तृप्ति पांडेय की पेंटिंग्स को प्रथम पुरस्कार दिया गया है।
वहीं, जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डॉ मणिन्द्र नाथ ठाकुर का कहना है कि वैदेही, अष्टावक्र गीता और जनक के बीच संवाद के निष्कर्ष की प्रतीक है। क्या निष्कर्ष है उस संवाद का? तत् त्वम् असि। इस निष्कर्ष ने बतौर राजा अपनी प्रजा से असीम प्रेम का संदेश दिया। यही निर्विकार और शर्तविहीन प्रेम जानकी का संदेश है। इस बात की सबसे बेहतर समझ गांधी और टैगोर के चिंतन में मिलती है। आज के राजनीतिक वर्ग को यह समझने की जरूरत है। समाज में बढ़ती हिंसा से निजात पाने के लिए वैदेही के संदेश को समझना जरूरी है। मधुबनी लिटररी फेस्टिवल के द्वारा आयोजित इस पेंटिंग प्रदर्शनी में जानने समझने के लिए बहुत कुछ है।
कार्यक्रम की शुरुआत वेद पाठ और उसके बाद बिपिन मिश्र ने शंखध्वनि से की। उसके बाद अपने वक्तवय में वरिष्ठ पत्रकार और इंदिरा गांधी राष्ट्ीय कला केंद्र के अध्यक्ष रामबहादुर राय ने कहा कि राजा जनक को विदेह कहा गया है और उनकी बेटी वैदेही। यह बेहद खुशी की बात है कि वैदेही अब मिथिला ही नहीं, देश-विदेश में लोगों की चेतना में हैं। युवाओं के बीच जिस प्रकार का कौतुहल है उनको समझने का है, वह सुखद संकेत है। उन्होंने कहा कि वैदेही को समझना है तो आध्यात्मिकता के आधार पर समझना होगा।
सीता को समग्रता में समझने के लिए सात दिनों तक प्रदर्शनी और कार्यशाला
सेंटर फॉर स्टडीज़ ऑफ ट्रेडिशन एन्ड सिस्टमस् और इंदिरा गांधी नैशनल सेंटर फॉर आर्ट्स (आई.जी.एन.सी.ए.) की सहभागिता में 10 मई 2022 से 16 मई 2022 तक सप्त दिवसीय वैदेही अंतरराष्ट्रीय उत्सव आई.जी.एन.सी.ए. परिसर में आयोजित किया गया है। इसमें विभिन्न देशों और भारत के विभिन्न प्रान्तों के कलाकारों द्वारा सीता के विभिन्न रूपों की प्रदर्शनी है।