Guest Column : फिर क्यों जिक्र हो रहा है अपूर्वानंद का ?

अपूर्वानंद की तरह देशभर में ऐसे वामपंथी प्राध्यापक बड़ी संख्या में एक—एक कर गिरफ्तार हो रहे हैं जिनकी समाज के बीच पढ़ने और पढ़ाने वाले की छवि है लेकिन वे भीतरखाने माओवादियों, आतंकियों, समाज को बांटने वालों की छवि में है। उनके जीवन का यह कुरूप पक्ष भारतीय जांच एजेन्सियों की जागरूकता की वजह से अब समाज के सामने आ रहा है।

आशीष कुमार अंशु

नई दिल्ली। पिछले साल दिल्ली में भड़के दंगे के दौरान शाहरुख पठान नामक आरोपी की एक तस्वीर खूब वायरल हुई थी। इस तस्वीर में आरोपी पुलिस वाले की ओर पिस्तौल ताने खड़ा था। शाहरुख अभी जेल में है, लेकिन बीते दिनों पैरोल पर बाहर आने पर उसका स्वागत एक आरोपी नहीं हीरो की तरह हुआ। 2020 की फाइल्स से गुजरते हुए, यह दो साल पुरानी टिप्पणी मिली। अपूर्वानंद का नाम भी दंगों में आया था। इस मामले में आगे क्या हुआ, इसकी जानकारी नहीं मिल सकी।
अपूर्वानंद बिहार में प्रगतिशील लेखक संघ के संस्थापकों में से एक हिन्दी साहित्य के प्रख्यात आलोचक डॉक्टर नंद किशोर नवल के दामाद हैं। अपूर्वानंद के पूर्व छात्र ही बताते हैं कि 2014 से पहले उपकी पहचान विश्वविद्यालय परिसर में कम्यूनिस्ट शिक्षक थी लेकिन 2014 के बाद ना जाने किस मजबूरी में उन्होंने गांधीवाद का चोला ओढ़ लिया। वैसे नक्सलियों के महानगरीय नेटवर्क का हिस्सा बने रहने के लिए कहा जाता है कि गांधीवाद का चोला सबसे मुफीद है। वैसे अपूर्वानंद स्टालिन, माओ, लेनिन के विचार से अधिक करीब हैं।
दिल्ली दंगे की आरोपी और यूएपीए एक्ट (Unlawful Activities (Prevention) Act) में गिरफ्तार गुलफिशा उर्फ गुल ने दिल्ली पुलिस के सामने दिए बयान में प्रोफेसर अपूर्वानंद के संबंध में बड़ा खुलासा कर दिया। जिससे अपूर्वानंद की दंगों में भूमिका बेहद संदिग्ध नजर आती है। गुल के अनुसार अपूर्वानंद ने दंगों की साजिश की थी। उन्होंने दंगों के लिए ऐसी मुसलमान महिलाओं की टीम तैयार करवाई जो बुर्का पहनती हों। जब यह टीम तैयार हो रही थी उस दौरान प्रोफेसर अपूर्वानंद ने अपने टीम के लेागों को अगाह करते हुए बता दिया था कि दंगों के लिए तैयार रहो। गुल के अनुसार — दंगों के बाद अपूर्वानंद की शाबाशी भी महिलाओं को मिली लेकिन साथ ही साथ वे डर रहे थे कि उनका नाम दंगों में सामने ना आ जाए। इसलिए उन्होंने अपना नाम सार्वजनिक ना करने के लिए कहा। साथ ही साथ गुल के अनुसार वे ‘पिंजड़ा तोड़’ के वामपंथी आरोपी युवतियों का नाम भी सामने नहीं आने देना चाहते थे।
गुल के अनुसार ‘पिंजड़ा तोड़’ एनजीओ की कॉमरेड देवांगना और कॉमरेड परोमा राय ने उन्हें अपूर्वानंद से मिलवाया था। अपूर्वानंद और राहुल रॉय का गुल से परिचय पिंजड़ा तोड़ के मार्गदर्शक के रूप में कराया गया। बाद के दिनों में इन मुलाकातों में जेएनयू का छात्र नेता उमर खालिद भी जुड़ गया।
गुल के अनुसार अपूर्वानंद ने समझाया कि ”नागरिकता कानून की आड़ में हम सरकार के खिलाफ बगावत का माहौल बना सकते हैं और सरकार को घुटने पर ला सकते हैं, इसलिए हमे इसका विरोध करना है।”
यह सब पढ़कर ऐसा लगता है कि चाहे सामने से सीएए और एनआरसी का विरोध करते हुए मुसलमान नजर आ रहे हों लेकिन उनके पिछे बड़ा सहयोग कम्यूनिसअ और माओवादी गिरोह का रहा था।
अपूर्वानंद ने गुल से कहा— ”जामिया कॉर्डिनेशन कमिटी दिल्ली में 20-25 जगह पर आंदोलन शुरू करवा रही है। इस आंदोलन का मकसद भारत सरकार की छवि को ऐसे प्रस्तुत करना है जैसे ये सरकार मुसलमानों के खिलाफ हो। ये तभी संभव हो सकता है जब हम प्रदर्शन की आड़ में दंगे करवाएंगे।”