यूँ ही नहीं द्रौपदी मुर्मू पर पीएम मोदी ने खेला है दांव

जोहार ! द्रौपदी दीदी। साफ है,आप विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र की राष्ट्रपति बनने जा रही हैं। एनडीए ने जबरदस्त दाव खेला। विपक्ष चकराकर चक्कर घिन्नी में फंस गया है।

नई दिल्ली। जोहार ! द्रौपदी दीदी। साफ है,आप विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र की राष्ट्रपति बनने जा रही हैं। एनडीए ने जबरदस्त दाव खेला। विपक्ष चकराकर चक्कर घिन्नी में फंस गया है।

विपक्ष के खेमे में जा सकने वाले नवीन पटनायक का रास्ता द्रौपदी के उम्मीदवार घोषित होते ही बंद हो गया। पटनायक की पार्टी अपनी सरकार के पहली कैबिनेट की प्रतिभाशाली मंत्री रहीं द्रौपदी के अलावा किसी और को वोट दे ही नहीं सकती। झारखंड में झारखंड मुक्ति मोर्चा सरकार के लिए संथाली उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू के खिलाफ जाना ब्लंडर हो सकता है। लिहाजा पहली बार एक आदिवासी वह भी महिला भारत की राष्ट्रपति बनने जा रही हैं। निजी गर्व का विषय है। झारखंड मेरी कर्मभूमि रही है। वह भी खासकर दुमका जो कि संथाल परगना का मुख्यालय है। इसलिए अतिरिक्त खुशी है। दिल की गहराईयों से सबको बधाई। शुभकामना। आभार।

ओडिशा की द्रौपदी मुर्मू संथाल जनजाति से हैं। भाजपा की खास रणनीति के तहत झारखण्ड की राज्यपाल रही। सार्वजानिक जीवन में उनकी छवि साफ सुथरी है। कई भाषाओं की जानकर हैं। मातृभाषा संथाली के साथ हिंदी, ओड़िया,बंगाली बेबाकी से बोलती हैं। बीजेपी की कर्मठ कार्यकर्ता, विधायक, मंत्री और नेता रही हैं।

गैर आदिवासियों यानी दिक्कुओं में संथाल जिद पालने के लिए विख्यात है। बांग तो बांग, हे तो हे। बांग का हिंदी मतलब हुआ, नहीं और हे का मतलब हां। किसी संथाली के मुंह से हे निकल गया, तो आंधी आए या तूफान, जिद्दी संथाल अपने संकल्प को हरहाल में पूरा करके मानेगा। अगर बांग निकल गया, तो आप लाख मिन्नतें कर लीजिए। वह बड़ा से बड़ा नुकसान उठा लेगा पर न जो बोला,तो नहीं ही करेगा। इसी कर्मठता ने संथाल नायक चांद, भैरो और सिद्धो, कान्हो को इतिहास में खास जगह दे रखी है।

1819 में संथाल विद्रोह से घबरा कर अंग्रेज प्रशकों ने भागलपुर प्रमंडल से अलग कर दामिन ए कोह नाम से संथाल और पहाड़िया जनजाति के लिए अलग प्रांत बनाने की सहमति बना ली। दुमका, गोड्डा, राजमहल अनुमंडलों को मिलाकर 1932-33 में ब्रिटिश इंडिया की सरकार ने प्रशासनिक तौर पर दामिन – ई. कोह प्रदेश की स्थापना की, जो संथाल परगना जिले के लगभग 1, 338 वर्ग मील में फैला हुआ था।

दामिन – ई. कोह का पर्वतीय भू – भाग आज विलुप्त होने के कगार पर फंसी पहाड़िया जनजाति के लिए आवंटित किया गया। जबकि पर्वतीय भू – भाग के आगोश में फैला लगभग पांच सौ वर्ग मील का मैदानी क्षेत्र संथाल जनजाति के बसाव के लिए निर्धारित किया गया। अभिलेखागार के कागजात बताते हैं कि 1851 ई. तक दामिन – ई – कोह प्रदेश के 1, 473 गाँवों में लगभग 82, 795 संथाल रहने लगे।

भावी राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू टेक्निकली ओडिशा की मूलवासी हैं। पर संथाली जनजाति से हैं जिसका डीह झारखंड के संथाल परगना है। संथालों की आबादी उत्तर में बिहार, पूर्व में पश्चिम बंगाल और असम, दक्षिण में ओडिशा में बसी है। इनमें संथाल परगना का बेहद क्रेज है। इसी क्रेज ने छोटानागपुर के हजारीबाग ज़िला के शिबू सोरेन को दूरस्थ दुमका खींच लाया। उन्होंने अस्सी के दशक में संथाल परगना के रामगढ़ प्रखंड से महाजनों के खिलाफ संघर्ष का बिगुल फूंका। संथालों के बीच दिशाम गुरु बनकर राज करने लगे।

झारखंड में संथाल जनजाति का क्या महत्व है इसे ऐसे समझा जा सकता है कि राज्य गठन के 22 साल तक झारखंड ने संथाल नेता शिबू सोरेन के वंशवाद को ही देखा है। उनके तीनों पुत्र स्व. दुर्गा सोरेन, हेमंत सोरेन व बसंत सोरेन और एक पुत्रवधू सीता मुर्मू विधायक बने। दिशाम गुरु खुद और पत्नी रूपा सोरेन सांसद बनी। पिता और पुत्र हेमंत मुख्यमंत्री रहे। सबपर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप हैं।

बहरहाल राष्ट्रपति चुनाव में बीजेपी के पुराने दिग्गज नेता की बैंड बजनी तय है। बुढौती में विपक्ष ने उनको झार पर चढ़ा दिया। महत्वाकांक्षा में फंसे यशवंत सिन्हा की हार तय है। संयोग से प्रशासनिक सेवा के अधिकारी रहे यशवंत सिन्हा भी झारखण्ड के हजारीबाग से हैं।