कृषि मंत्री लोगों की आंख में धूल झोक रहे हैं : एआईकेएससीसी

नई दिल्ली। एआईकेएससीसी के वर्किंग ग्रुप ने कहा है कि कृषि मंत्री का पत्र दिखाता है कि सरकार किसानों की 3 नये खेती के कानून रद्द करने की मांग को हल नहीं करना चाहती। इनमें समस्या कानून के उद्देश्य में ही लिखी है, जो कहते हैं कि कारपोरेट को अब कृषि उत्पाद में व्यापार करने का, किसानों को ठेकों में बांधने का और आवश्यक वस्तु के आवरण से मुक्त खाने के सामग्री को स्टाॅक कर कालाबाजारी करने की छूट होगी, का कानूनी अधिकार देते हैं। यह भी लिखा है कि इन सभी कारपोरेट पक्षधर व किसान विरोधी पहलुओं को सरकार बढ़ावा देगी।

मंत्री जी ने जानबूझकर वार्ता के दौरान के तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर दावा किया है कि वे विनम्रता और खुले मन से चर्चा चाहते हैं। सच यह है कि एआईकेएससीसी ने तथा अन्य संगठनों ने सरकार को इन कानूनों को रद्द करने के लाखों पत्र भेजे हैं, जिसे सरकार ने अनसुना कर दिया है। जब आन्दोलन दिल्ली पहँुचा तो सरकार ने नेताओं को मजबूर किया कि वे धारावार आलोचना पेश करें। और नेताओं ने सर्वसम्मति से इस आलोचना के साथ 3 दिसम्बर को सरकार को यह समझा दिया कि अगर किसानों की जमीन व जीविका बचनी है तो ये तीनो कानून वापस होने होंगे। पर सरकार ने खुद-ब-खुद 8 मुद्दे छांट लिये और अब वह यह दावा कर रही है कि यही 8 मुद्दे मुख्य हैं।

एआईकेएससीसी ने कहा है कि विश्व भर में कारपोरेट छोटे मालिक किसानों की खेती की जमीनें छीन रहे हैं और जल स्रातों पर कब्जा कर रहे हैं ताकि वे इससे ऊर्जा क्षेत्र, रीयल स्टेट और व्यवसायों को बढ़ावा दे सकें। इसकी वजह से किसान विदेशी कम्पनियों और उनकी सेवा करने वाली सरकारों के खिलाफ खड़े हो रहे हैं। भारत में चल रहे वर्तमान आन्दोलन को इसी वजह से दुनिया भर में समर्थन मिला है और 82 देशों में लोगों ने किसानों के समर्थन में प्रदर्शन किये हैं।

मुम्बई में एआईकेएससीसी बांद्रा कुर्ला काम्प्लेक्स में अबानी व अडानी के मुख्यालय पर भारी विरोध आयोजित हुआ जिसमें 15,000 से ज्यादा किसानों ने भाग लिया। सभा को एआईकेएससीसी, महाराष्ट्र व पंजाब के नेताओं ने संबोधित किया।
एआईकेएससीसी ने किसानों की मांग के खिलाफ प्रधानमंत्री के तानाशाह पूर्ण भाषा की आलोचना की है, जिसमें उन्होंने कहा था कि सुधारों के अमल से उन्हें कोई नहीं रोक सकता। देश के लोगों को ये बात साफ होनी चाहिए कि ये सुधार वे हैं जो कारपोरेट व विदेशी कम्पनियों का मुनाफा बढ़ाएंगे और किसानों को बरबाद कर देंगे।