कभी खुद को गरीबों का लाल कहनेवाले लालू सिस्टम के सिर पर जाति की धमक के साथ बिहार की राजनीति को बदल कर रख दिया था। लालू ने 1990 के दशक में जाति पाति के सहारे राजनीति की बैतरणी पार करने वाले लालू अंततया अतित के पन्नों की वो कहानी बनते जा रहे हैं जिसे पलटने की हिमाकत अव शायद उनकी खुद की पार्टी राजद भी नहीं कर पा रही तो वहीं दूसरी तरफ नीतीश ने भी लगे हाथ लालू को उनके 74 वें जन्मदिन की बधाई दे ही डाली ।
याद किजीये 1990 के उस दौर को जब बिहार में एक शख्स ने जाति पाति की वो इवारत लिखी जिसके आंचल तले वो 15 बर्षों तक शासन करता रहा। 1990 से लेकर 2005 तक लालू ने राजनीति को तौर तरीकों को सर के बल खरा कर दिया तो वहीं जाति की धमक से सवार बिहार के हाल को बेहाल कर रख दिया—-हालांकि 2005 और अव के बिहार में बहुत बदलाव आ चुका है लेकिन आज भी राजद मानती है कि बिहार की सियासत शुरु और खत्म होती है तो लालू के नाम से और जव तक बिहार में गरीबी और अशिक्षा रहेगी तव तक लालू गरीबों में जिंदा रहेंगे और विपक्ष के आरोप लगाने से कुछ नहीं होने वाला—–
1990 वाले लालू वो लालू थे जो गरीबों का मसीहा और पिछङों का पोस्टरब्वाय़ हुआ करता था हालांकि लालू अव अतित के पन्नों की धूमिल कहानी बन चुके हैं और लोग लालू के उस शासनकाल को याद नहीं करना चाहते जब बिहार में बच्चों को लाठी में तेल पिलाकर रैली करने की तालीम दी जाती थी तो दूसरी तरफ बिहार के खेतों में फसलों की जगह पर बंदूक की खेति लगाई जाती थी….. कहते हैं वक्त किसी को नहीं बक्शता लिहाजा 2015 में वक्त ने करवट बदली और किसी जमाने में दूसरों को पीएम सीएम बनाने वाले लालू आज चारा घोटाले में सजा काट अभी हाल ही में बाहर निकले हैं और अपनी बेटी मिसा के दिल्ली के घर पर आराम कर रहे हैं। हैं-
1990 के दशक को याद किजीये जब बिहार में लोग अपना सरनेम लगाना भूल गये और अपने नाम में जाति के पहचान से डरना सीख गये थे। सीवान में एक परिवार के दो भाईयों को सरेआम तेजाव से नहला दिया गया था तो बारा और सेनारी में सामूहिक नरसंहार में 54 अगरी जाति के लोगों की चिखें सत्ता की धमक के नीचे दब कर रह गई थी। लालू ने अपने शासनकाल में शिक्षा के नाम पर चरवाहा विद्यालय खोले तो सङकों को हेमामालिनी की गाल बता सुर्खियां बटोरने में लगे रहे-
कहते हैं बिहार की सियासत को समझना उङती चिङियां के पर गिनने जैसा है लिहाजा लालू की सियासत भले ही फिलहाल दम तोङती दिख रही हो लेकिन इतना तय मानीये की गांव के भैंस चराते उस बच्चे में लालू आज भी जिंदा है क्योंकि ये बिहार है जहां विकास पर आज भी जात पात भाङी है और इन सबके बीच आज पटना से लेकर दिल्ली तक लालू का 74 वां जन्मदिन मनाया तो गया लेकिन वो जन्मदिन लालू के अतित के सामने फिंका ही नजर आया ।