नई दिल्ली। यह संस्पेंस खत्म हो गया कि यहां से राजनेता कैप्टन अजय यादव या अभिनेता राज बब्बर में से कौन कांग्रेस की पसंद होगा ! पूर्व मंत्री कैप्टन अजय यादव कांग्रेस टिकट नहीं पा सके , हालांकि उन्होंने अपनी ओर से पूरी कोशिश की । नाराज़गी में यहां तक कह दिया था कि राज बब्बर ही क्यों, रणबीर सिंह क्यों नहीं ? यहां तक कहा था कि राज बब्बर का गुरुग्राम से क्या सबंध ? अब वे कह रहे हैं कि टिकट नहीं मिलने पर फ्री हूँ और दूसरे राज्यों में प्रचार के लिए जाऊंगा यानी अब हरियाणा में लोकसभा चुनाव तक समय नहीं है ! अपनी राम राम राम, हम तो चलते दूसरे गांव ! जानी, यही कांग्रेस है, इसी को कांग्रेस कहते हैं । कैप्टन अजय यादव यह भी कह रहे हैं कि कांग्रेस में बड़े नेताओं को दरकिनार किया जा रहा है, जैसे बीरेंद्र सिंह, बृजेन्द्र सिंह, श्रुति चौधरी और कहा जाये तो वे भी इसी उपेक्षा के शिकार हुए हैं और वे भी कांग्रेस के नाराज नेताओं में शामिल हो गये हैं । समधि लालू यादव की कोशिश भी रंग न लाई यह। यह नाराजगी क्या गुल खिलायेगी ?
राज बब्बर की टिकट भी हरियाणा में नेता प्रतिपक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के खाते में ही जा रही है और इस तरह हरियाणा की गुरुग्राम लोकसभा सीट भी अब हाॅट सीट बन गयी है। दूसरी ओर जजपा ने भी यहां से हरियाणवी गायक राहुल फजलपुरिया को मैदान में उतारा गया है ! इस तरह हरियाणा की गुरुग्राम सीट की चर्चा भी देश भर में होगी । कैप्टन अजय यादव की नाराजगी के बावजूद राज बब्बर राजनीति में कोई नया नाम नहीं हैं। वे उत्तर प्रदेश में पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव की पुत्रवधु डिम्पल यादव को हराकर सुर्खियों में आये थे । यही नहीं उत्तर प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष पद पर भी रहे । हालांकि सन् 2014 में वे भाजपा के जनरल बी के सिंह से गाजियाबाद में हार गये । हरियाणा में पहली बार चुनाव लड़ने जा रहे हैं ।
हरियाणा प्रदेश में कांग्रेस ने बहुत देर तक टिकटों को दिये जाने पर मंथन किया गया । असल में यह मंथन कम, हुड्डा और एस आर के गुट के बीच रस्साकशी जैसा खेल ज्यादा था पर्दे के पीछे, जिसमें यह चर्चा आम है कि एस आर के को सफलता नहीं मिली । सुश्री सैलजा विधानसभा चुनाव लड़ने की बात लगातार कहती रहीं लेकिन हाईकमान के आदेश पर लोकसभा चुनाव लड़ने को राजी हो गयीं, पूर्व मंत्री किरण चौधरी की बेटी श्रुति चौधरी कांग्रेस टिकट न पा सकीं । इस तरह एस आर के गुट लगभग खाली हाथ रहा । इसके बावजूद यह गुटबाजी अब क्या गुल खिलायेगी, यह तो लोकसभा के चुनाव परिणाम ही बतायेंगे !
धीरै धीरे यह बात बढ़ी तो लोग क्या कहेंगे
अजी, गुटबाजी कहे़गे और क्या कहेंगे?