किसी भी राज्य में जाएं, वहां की धड़कन में काशी की धड़कन से मिलती है : आरएन रवि

तमिलनाडु के राज्यपाल ने काशी तमिल संगमम में की शिरकत. तमिलनाडु की तीन किताबों के संस्कृत अनुवाद पुस्तक का विमोचन


वाराणसी।
काशी-तमिल संगमम के द्वितीय संस्करण के सांस्कृतिक कार्यक्रमों की सातवीं संध्या पर काशी और तमिलनाडु के नौ तरह के सांस्कृतिक कार्यक्रम हुए। रविवार को तमिलनाडु के सभी आध्यात्मिक डेलीगेशन ने नमो घाट पर आयोजित प्रस्तुतियों को देखा। मां गंगा के तट पर आयोजित सांस्कृतिक कार्यक्रमों को देख और सुन सभी डेलीगेट्स मंत्रमुग्ध नजर आए।

काशी तमिल संगमम के द्वितीय संस्करण का आयोजन उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र प्रयागराज एवं दक्षिण क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र तंजावूर, संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार द्वारा किया गया है। कार्यक्रम की प्रस्तुतियों के बीच में ही मुख्य अतिथि तमिलनाडु के राज्यपाल आरएन रवि का संबोधन और तीन पुस्तकों का विमोचन भी हुआ। इसके पहले मंच पर आईआईटी बीएचयू के निदेशक प्रो. पीके जैन ने मुख्य अतिथि तमिलनाडु के राज्यपाल आरएन रवि को अंगवस्त्र से सुशोभित किया। वाराणसी के जिलाधिकारी एस राजलिंगम ने राज्यपाल की धर्मपत्नी को अंग वस्त्र और स्मृति चिन्ह भेंट किया। विशिष्ट अतिथि अन्नपूर्णा देवी को अंगवस्त्र और स्मृति चिन्ह जिला पुरातत्व अधिकारी सुभाष यादव ने किया। प्रो. पीके जैन और वाराणसी के डीएम का भी अंगवस्त्र और स्मृति चिन्ह देकर स्वागत किया गया। राज्यपाल आर एन रवि और बाकी अतिथियों ने तमिलनाडु की तीन किताबों के संस्कृत अनुवाद पुस्तक का विमोचन किया। इन किताबों के नाम हैं तिरुप्पुदई मरुधूर ओवियंगल प्रजेंस ऑफ एनशिएंट तमिल वर्ड्स इन अदर इंडियन लैंग्वेज और मणिमैगले के नाम शामिल हैं।

राज्यपाल आरएन रवि ने एन्नाड वरकुम और वणक्कम काशी-वणक्कम तमिलनाडु जैसे शब्दों से अपना उद्बबोधन शुरू किया। राज्यपाल ने अपने संबोधन का शुभारंभ तमिल शब्दों से किया। इसके बाद उन्होंने हिंदी में कहा कि साथियों, इस काशी-तमिल संगमम के लिए हम, जो प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की सोच की उपज है। इसके दूसरे संस्करण के लिए भी उनको ह्रदय से उनका अभिनंदन करते हैं। उन्होने कहा कि आप जिस राज्य में जाएं वहां की धड़कन में काशी की धड़कन से मिलती है। उन्होंने वेदाें के मंत्रों का हवाला देकर कहा कि जब तप और दीक्षा लोक कल्याणकारी इच्छा से परिपूर्ण एक ओजस्वी और बलशाली राष्ट्र का निर्माण होता है। हजारों वर्ष पूर्व हमारे ऋषियों ने वैदिक काल में एक ऐसा समावेशी समरसता पूर्ण एक अध्यात्म दिया। जिसे हम सनातन आध्यात्म कहते हैं। पूरी सृष्टि एक परिवार है। जैसे जी20 का मोटो था वसुधैव कुटुंबकम। ऋषियों की तपस्या से समावेशी संस्कृति का जन्म हुआ। उस संस्कृति ने विविधता से भरे भारत को एक सूत्र में पिरो दिया। हमारी अनेक भाषाएं और वेश भूषाएं अलग हैं, खान-पान अलग है लेकिन हमारी धड़कन एक है।

काशी तमिल संगमम के दौरान आयोजित सांस्कृतिक कार्यक्रम में रविवार शाम की पहली प्रस्तुति वाराणसी के प्रवीन उद्धव और उनकी टीम के वाद्य यंत्रों की रही। दूसरी प्रस्तुति गायन की रही। सुचरिता गुप्ता और टीम ने गायन कर लोगों का मन मोह लिया। तीसरी प्रस्तुति वाद्य लोक आधारित ट्राइबल डांस, कनियाकूथू की रही। तमिलनाडु के तिरुनिवेली से आए एस थंगराज और टीम वाद्य कला कला पर साथी किन्नर कलाकारों ने साड़ी में बड़ा आश्चर्यजनक नृत्य किया। चौथी प्रस्तुति आर गीता द्वारा वाली ओलिया कुम्मी कुट्टम की रही। बारिश की आस में इस लोक विधा की प्रस्तुति की जाती है। कोंडवा अड़ी-कोंडवा अड़ी गाते हुए महिलाओं ने डांडिया के साथ नृत्य किया। इस दौरान लाइव गायन भी चल रहा था। पांचवीं प्रस्तुति थपट्टम की रही, जिसमें विल्लुप्पुरम से आए कलाकारों ने वाद्य यंत्रों से समा बांध दिया। छठवीं प्रस्तुति कारागट्टम, नयांदी मेलम की रही। कलासुदारमणि और उनकी टीम ने लोगों को मंत्र मुग्ध कर दिया। सातवीं प्रस्तुति तमिलनाडु की नृत्यांगना और कोरियाग्राफर गुरु अरुणा सुब्रमण्यम और उनकी शिष्याओं द्वारा भरतनाट्यम की बड़ी मनोरम प्रस्तुति दी गई। उन्होंने पुष्पांजलि, जिसमें भगवान गणेश की प्रार्थना, लिंगाष्टकम, शिवारंजिनी, हनानादमओदू आदि कई तरह की भरतनाट्यम नृत्य विधाओं पर अपनी प्रस्तुतियां दीं। आठवीं प्रस्तुति कथक की रही। प्रियंबदा तिवारी और टीम ने यह खास प्रस्तुति देकर लोगों को मुग्ध कर दिया। नौवीं प्रस्तुति कालीकट्टम, करुप्पासामी, अट्टम, कवाडी, पिकॉक डांस की रही। इस प्रस्तुति में कलाकार मोर, नंदी समेत कई तरह के रूप धारण कर मंच पर नृत्य करते रहे।