Guest Column : कोरोना से जंग में कैसे पूरा सिस्टम ने किया एक टीक के रूप में काम

कोरोना वैक्सीनेशन ठीक एक साल पहले शुरू हुआ था। 16 जनवरी 2021 से लेकर 16 जनवरी 2022 के यात्रा को बता रहे हैं केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के अतिरिक्त सचिव डॉ मनोहर अगनानी।

नई दिल्ली। यह भारत के सामर्थ्य की जीत की कहानी है। एक साल,156 करोड़ वैक्सीनेशन! यानि कि हर दिन औसतन 42 लाख से ज़्यादा टीके। यह आलेख “टीम हैल्थ इंडिया” की इस असाधारण उपलब्धि की बेमिसाल यात्रा की कहानी, देशवासियों के साथ साझा करने की एक कोशिश है।

हम सभी जानते हैं कि दुनिया के सबसे बड़े कोविड टीकाकरण अभियान की तैयारी करते समय कुछ बुद्धिजीवियों और विषय विशेषज्ञों नेअनेक तरह की शंकाएं अपने व्यक्तिगत अनुभवों, तथ्यों और तर्कों के आधार पर ज़ाहिर की थीं। मसलन-

• अव्वल तो देश की ज़रुरत के मुताबिक वैक्सीन उपलब्ध ही नहीं हो पाएगा। और अगर हो भी गया तो हमारे देश में इतनी अधिक मात्रा में वैक्सीन को सुरक्षित रखने की स्टोरेज क्षमता भी नहीं है।
• इस क्षमता को विकसित करने में तो बहुत समय लग जाएगा।
• वैक्सीन की स्टोरेज हो भी गई तो परिवहन की व्यवस्था और ट्रेन्ड मैन-पॉवर कहाँ है।
• इतनी विशाल जनसंख्या के टीकाकरण के लिएट्रेन्ड मैन-पॉवर तैयार करने में कितना समय लगेगा, इसका कोई अंदाज़ा ही नहीं है।
• पूरी जनसंख्या को कवर करने में अनेकों साल लग जाएंगे।
• अब तक हमने कभी भी वयस्क आबादी को टीका नहीं लगाया है। राष्ट्रीय टीकाकरण कार्यक्रम के अंतर्गत हमने सिर्फ़ छोटे बच्चों और गर्भवती महिलाओं का टीकाकरण किया है, जो कि देश की आबादी का बहुत छोटा हिस्सा ही है।
• किस बच्चे को कौन सा टीका लगा? कब लगा? इसकानामवर डिजिटल रिकॉर्ड रखने की तोहमने शुरुआत भी नहीं की है।
• जनमानस की कोविड टीके से सम्बंधित शंकाओं का समाधान कैसे होगा? वैक्सीनहैज़ीटेंसी कैसे एड्रेस करेंगे?
• दूरदराज़ के क्षेत्रों में वैक्सीन समय पर और सुरक्षित कैसे पहुंचेगा? उनको टीका कौन लगाएगा? आदि-आदि !

इन सभी आलोचनाओं औरअविश्वास के माहौल के बीच “टीम हैल्थ इंडिया” नेएक सुव्यवस्थित रणनीति और आत्मविश्वास के साथ एकजुट होकर काम करना शुरू कर दिया। इस आत्मविश्वास की पृष्ठभूमि में था-

• हमाराराष्ट्रीय टीकाकरण कार्यक्रम (यू.आई.पी.) को चलाने का वर्षों का अनुभव।
• पल्स पोलियो अभियान के तहत सीमित समय में लगभग 10 करोड़ छोटे बच्चों को पोलियो की 2 बूँद पिलाने का 25 वर्षों से अधिक का तजुर्बा।
• पंद्रह साल तक के 35 करोड़ से ज़्यादा बच्चों को मीसल्स एवं रूबेला वैक्सीन लगा पाने की क्षमता।
• 29,000 से अधिक कोल्ड चेन पॉइंट्स पर वैक्सीन स्टोरेज कर दूर दराज़ के क्षेत्रों में नियमित रूप से वैक्सीन पहुंचाने का अनुभव।
• मानकों के अनुरूप वैक्सीन के रखरखाव एवं वितरण की मॉनिटरिंग करने वाली भारतीय प्रणाली ई-विन (इलेक्ट्रॉनिक वैक्सीन इंटेलिजेंस नेटवर्क) का सफल क्रियान्वयन,
• छूटे हुए बच्चों एवंगर्भवती महिलाओं को केन्द्रित कर टीकाकरण करने की “मिशन इन्द्रधनुष” रुपी सटीक रणनीति को क्रियान्वित करने का अनुभव। और,
इस आत्मविश्वास का सबसे महत्वपूर्ण सबब बना- हमारे देश के माननीय प्रधानमंत्री जी का देश के नागरिकों की छुपी हुई क्षमताओं और योग्यताओं पर अटूट विश्वास, जिसने शुरुआत से ही एक नैतिक संबल प्रदान करने का कामकिया।

इस पृष्ठभूमि के साथ “टीम हैल्थ इंडिया” ने सबसे पहले बुद्धिजीवियों एवं विषय विशेषज्ञों द्वारा ज़ाहिर की गई अपेक्षाओं एवं शंकाओं को व्यवस्थित रूप से समाधान करनेकी रणनीति पर ध्यान केन्द्रित किया। भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय, राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों के स्वास्थ्य विभाग, स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम करने वाली स्वयंसेवी संस्थाएं, अंतर्राष्ट्रीय संगठनों आदि सभी नेमिलकर ना सिर्फ़ लगातार हुई मैराथन बैठकों में भाग लिया, हर विषय परगहन चिंतन और विचार विमर्श किया बल्कि इन चिंतन बैठकों के निष्कर्षों को विभिन्न स्ट्रेटेजीज़ एवं गाइडलाइन्स का स्वरुप भी प्रदान किया।

आज से ठीक एक साल पहले माननीय प्रधानमंत्री द्वारा दुनिया के इससबसे बड़े कोविड टीकाकरण अभियान कीशुरुआत से पहले ना सिर्फ़ सभी बुनियादी गाइडलाइन्स को अंतिम रूप दिया जा चुका था, बल्कि इसके लिए आवश्यक प्रशिक्षण भी पूरे किए जा चुके थे।

हालांकि अभी टीकाकरण कार्यक्रम का औपचारिक प्रारंभ होना बाकी था, लेकिन “टीम हैल्थ इंडिया” आत्मविश्वास से सराबोर थी और इसके सबब भी थे।16 जनवरी 2021 से पहले सभी आवश्यक तैयारियां जो पूरी हो चुकी थीं, उनमें प्रमुख हैं-
• कोविड टीकाकरण से संबंधित ऑपरेशनल गाइडलाइंस
• टीकाकरण के लिए पर्याप्त मात्रा में आवश्यक दलों के सदस्यों की पहचान एवं उनका प्रशिक्षण
• वैक्सीन को व्यवस्थित रूप से टीकाकरण केन्द्रों तक सुरक्षित रूप से पहुंचाने और आवश्यक अतिरिक्त भंडारण क्षमता का निर्माण
• वैक्सीन हैज़ीटेंसी,ईगरनेस और कोविडएप्रोप्रिएट बिहेवियर जैसे विषयों पर केंद्रित कम्यूनिकेशन स्‍ट्रेटेजी और
• सभी भारतीयों के टीकाकरण से संबंधित आवश्यक रिकॉर्ड डिजिटल रूप में संधारित करने के लिए आकल्‍पित “कोविन प्लेटफार्म” आदि।
इन सभी तैयारियों से संबंधित “ड्राय रन” (dry-run) भी सभी राज्यों में किया जा चुका था, जिससे संबंधित एक व्यक्तिगत अनुभव साझा करना प्रासंगिक है। देश के सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के हज़ारों कोविड वैक्‍सीनेशनसेंटरों, राज्य के मुख्यालयों एवं भारत सरकार के मंत्रालय में पदस्थ टीम जो कोविन प्लेटफार्मपर काम कर रही थी, सभी को15 जनवरी की सारी रात जागना पड़ा।कोई ऐसी तकनीकी समस्या थी, जिसे हल करने के लिए सभी इकट्ठा थे। कड़ाके की ठंड थी। सूर्योदय होने तक सभी के दिल उसी तरह से ज़ोर-ज़ोर से धड़क रहे थे, जैसे किसी अंतरिक्ष यान का प्रक्षेपण करते समय कमांड सेंटर पर बैठे वैज्ञानिकों का दिल धड़कता होगा। राष्ट्रीय कोविड टीकाकरणअभियान का नोडल अधिकारी होने के नाते मैं भी “टीम हैल्थ इंडिया” के नैतिक संबल के लिए मंत्रालय में हीसाथ था और उस रात टीम की बेचैनी और अंततोगत्वा मिले सुखदपरिणाम की अनुभूति का इज़हार शब्दों में नहीं कर सकता। ‘कोविन’ बखू‍बी चल पड़ा और हम सभी गवाह हैं, इस अनोखे भारतीय डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म की खूबियों के, जिसने लगातार कार्यक्रम की ज़रूरतों के मुताबिक खुद को और बेहतर किया है। यह वाकई देश-दुनिया के लिए एक अनूठी सौगात है।

और फिर अभी तो शुरुआत हुई थी। वैक्सीन सीमित मात्रा में उपलब्ध थी और अपेक्षाएं अनन्त थीं।सीमित मात्रा में उपलब्ध वैक्सीन का लगातार तर्कसंगत वितरण एक चुनौती थी। नासिर्फ़भारत सरकार के स्तर पर,अपितु राज्यों एवं जिलों के स्तर पर भी। ऐसे में आलोचनाएं स्वभाविक थीं। “टीम हैल्थ इंडिया” ने इस काम को भी बखूबी अंजाम दिया। लेकिन यह आसान नहीं था। इसके लिए हर रोज़ घंटों वर्चुअल बैठकें करनी पड़तीथीं। वैक्‍सीन निर्माताओं के साथ, वैक्सीन परिवहन करने वाली एजेंसियों के साथ, वैक्सीन के भंडारण केंद्रों के साथ, वैक्‍सीन वितरण करने वाले कोल्ड चेन पाइंट्स के साथ और वैक्सीन लगाने वाले केंद्रों के साथ। और मकसद सिर्फ एक होता था, उपलब्ध वैक्सीन का यथासंभव सर्वश्रेठइस्तेमाल और वैक्सीन कीहर बूंद का सदुपयोग।
और अंदाज़ालगाइए,देश के दूरदराज के क्षेत्रों में वैक्सीन पहुंचाया गया। जहां सड़क नहीं थी, वहां साइकिल दौड़ाईगई, रेगिस्तान में ऊंट का सहारा लिया गया, नदी पारकरने के लिए नाव पर सवारी की गई।पहाड़ों पर तो वैक्सीन कैरियर को अपनी पीठ पर ही उठा लिया। वैक्सीन पहुंचाया भी, लगाया भी। पीले चावल देकर वैक्सीनेशन के लिए आमंत्रित किया। वैक्सीन नहीं लगवाने वाले नागरिकों के लिए ‘हर घर दस्तक’ देकर पुकार भी लगाई। इस सारी प्रक्रिया का कोई वेस्टर्न मॉडल नहीं था। यह विशुद्ध रूप से भारतीय मॉडल था। इसमें भारत के सामर्थ्यकी अनूठी छाप थी।
एकवर्ष की कोविड टीकाकरण की यहअनूठी गाथा है क्योंकि तैयारी करने के लिए वक्त सीमित था। वक्त के साथ-साथ फील्ड से प्राप्त अनुभवों और सकारात्मक आलोचनाओं और सुझावों से हम सीखते चले गए, कार्यक्रम में सुधार करते चले गए, अपने संकल्प और इरादों को और दृढ़ करते चले गए और सही मायने में अंग्रेजी कहावत “बिल्डिंग द शिप व्हाइलसेलिंग” को चरितार्थ करते चले गए।
“टीम हैल्थ इंडिया” ने इस सारी धुन में अनदेखी की है अपनी जरूरतों की, अनदेखीकीहै अपने व्यक्तिगत समय की, अनदेखी की है अपने परिवार की,भुलाया है अपने सपनों को और खोया है अपनों को। लेकिन फ़ख्रही नहीं, बल्कि यह“टीम हैल्थ इंडिया” का सौभाग्य भी है कि उसे सदियों में कभी एक बार आने वाला यह अवसर मिला और देश की सेवा करते हुए इस नोबल प्रोफेशन की नोबेलनेस बनाए रखने कामौका भी। हाँ, उन्हें ढेर सारा प्यार भी मिला।

मैं जो कुछ देख पाया हूं या लिख पाया हूँ वो तो मात्र “टिप ऑफ़ द आइसबर्ग” के समान है।“टीम हैल्थ इंडिया” के पास तोऐसे अनगिनत संघर्ष और संतुष्टि के उदाहरण होंगे। ऐसे उदाहरण जो इंसानियत की मिसाल होंगे, ऐसे उदाहरण जोकृतज्ञता का एहसास कराते होंगे और ऐसे उदाहरण जो आशावाद के वाहक होंगे ।

अंत में यह याद दिलाना चाहता हूं कि हैल्थ को “पब्‍लिक गुड” माना गया है और भारत के कोविड टीकाकरण की इस असाधारण गाथा में सरकारी तंत्र की भूमिका ने इस विचारधारा को और पुख्ताकिया है, मज़बूत किया है। जय हिन्द!