नई दिल्ली। कोविड-19 के तीन साल हो गए हैं और हम अब इसे भूलने लगे हैं। लेकिन इस बीच बीते कुछ दिनों से एच3एन2 इन्फ्लुएंजा वायरस ने हमारी नींदें उड़ा दी हैं। एच3एन2 इन्फ्लुएंजा वायरस बच्चों और 65 वर्ष से अधिक के वयस्कों को अपनी चपेट में ले रहा है। 12 साल से छोटे बच्चे जिनकी इम्युनिटी कमजोर है, वे सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं। मौसम में अचानक चेंज से इन्फ्लुएंजा वायरस फैलने का प्रमुख कारण है। इस बीमारी के ज्यादा बढ़ने की मूल वजह है। भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) का कहना है कि भारत में इन्फ्लुएंजा के मामले इन्फ्लुएंजा ए के उपस्वरूप एच3एन2 के कारण बढ़ रहे हैं। इन्फ्लुएंजा ए के किसी अन्य उपस्वरूप की तुलना में एच3एन2 से पीड़ित लोगों के अस्पताल में भर्ती होने की दर अधिक है। नाक बहना, लगातार खांसी और बुखार इसके लक्षणों में शामिल है। हमने इस बारे में लीडिंग फार्मास्युटिकल्स कंसल्टेंट एंड इन्वेंटर डॉ. संजय अग्रवाल से बात की। उन्होंने इसके लक्षणों एवं उपचार पर चर्चा की।
एच3एन2 इन्फ्लुएंजा क्या है
एच3एन2 इन्फ्लुएंजा या फ्लू, एक प्रकार का रेस्पिरेटरी डिजीज है। यह दूसरे इन्फ्लुएंजा वायरस की तरह नाक, गला और लंग्स को सबसे पहले प्रभावित करता है। 2010 में अमेरिका में सबसे पहले इस रोग की पहचान सुअरों में की गई थी। सुअरों से ही इस वायरस का संक्रमण मनुष्यों में आया। इसलिए जिन जगहों पर सुअरों की आबादी ज्यादा है, वहां इस बीमारी के फैलने की आशंका ज्यादा रहती है।
लक्षण
इस बारे में डॉ. संजय अग्रवाल, लीडिंग फार्मास्युटिकल्स कंसल्टेंट एंड इन्वेंटर का कहना है कि एच3एन2 इन्फ्लुएंजा के लक्षण एक बच्चे से दूसरे बच्चे में भिन्न हो सकते हैं, लेकिन आम तौर पर सिरदर्द से बीमारी की शुरुआत होती है और फिर धीरे-धीरे सर्दी-जुकाम, गले में खराश के लक्षण नजर आने लगते हैं। बीमारी की अवस्था और भी गंभीर हो जाने पर और भी लक्षण जुड़ने लगते हैं।
सिरदर्द- बच्चे जैसे ही एच3एन2 इन्फ्लुएंजा से आक्रांत होते हैं, उनको सिर में तेज दर्द महसूस होने लगता है। साथ ही सर्दी-जुकाम के लक्षण नजर आने लगते हैं। शुरुआत में ये लक्षण मौसम के बदलाव के कारण हुआ है, ये मानकर नजरअंदाज कर दिया जाता है, लेकिन ऐसा गलती न करें।
सर्दी-जुकाम- एच3एन2 इन्फ्लुएंजा की खास बात यह है कि सर्दी-खांसी के लक्षणों के साथ बुखार बच्चों को नहीं होता है।
गले में खराश- सर्दी-जुकाम के बाद का लक्षण गले में खराश होना होता है। यहां तक कि इन लक्षणों के साथ गले से भारी खसखस जैसी आवाज भी निकल सकती है। फेफड़ों में जकड़न महसूस होने के कारण बच्चों को सांस लेने में असुविधा महसूस हो सकती है।
थकान – एच3एन2 इन्फ्लुएंजा के लक्षण में थकान भी शामिल हो सकता है, क्योंकि शरीर पहले के लक्षणों से जुझने के कारण हद से ज्यादा थक जाती है। मरीज की इम्युनिटी कमजोर होने के कारण अवस्था गंभीर होने लगती है।
दस्त- एच3एन2 इन्फ्लुएंजा के लक्षण में गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल लक्षण भी शामिल हो जाता है, जिसके कारण दस्त, कब्ज, दस्त से खून भी आ सकता है। इन सब लक्षणों से मरीज की इम्युनिटी और भी लो हो जाती है, जिसके कारण ठीक होने में समय लगता है। अगर इस दौरान बच्चों को हाइड्रेटेड नहीं रखा गया तो स्थिति गंभीर हो सकती है।
इलाज
डॉ. संजय अग्रवाल का कहना है कि बच्चों में एच3एन2 इन्फ्लुएंजा का असर 15 दिनों के बाद से धीरे-धीरे कम होने लगता है, बुखार में सुधार आने लगता है। वैसे तो एच3एन2 इन्फ्लुएंजा के लिए कोई सटीक दवा अभी तक नहीं है, सिर्फ लक्षणों में सुधार लाने के लिए दवा दी जाती है ताकि लक्षणों को नियंत्रण में रखा जा सके। बच्चों की इम्युनिटी को बढ़ाने के सिवा इस बीमारी से लड़ने का कोई दूसरा विकल्प नहीं है।
एच3एन2 इन्फ्लुएंजा के लक्षण में सुधार लाने के लिए बच्चों को सुबह दस बजे से पहले और शाम 4 बजे के बाद धूप में कम से कम आधे घंटे के लिए ले जाना चाहिए ताकि उसके शरीर को नेचुरल विटामिन डी मिल सके। इससे लक्षणों में जल्दी सुधार आता है। विटामिड डी का सेवन करने के अलावा विटामिन ए के सप्लीमेंट भी बच्चों को डॉक्टर से सलाह के अनुसार दे सकते हैं। इसके अलावा जितना हो बच्चों को पौष्टिक खाना और पर्याप्त मात्रा में पानी पिलाना चाहिए।
जरूरी बात
डॉ. संजय अग्रवाल का कहना है कि एच3एन2 इन्फ्लुएंजा के वायरस ज्यादा दूर तक नहीं फैलते हैं, इसलिए बच्चा जब मरीज के बहुत करीब जाता है या उसके बलगम आदि को स्पर्श कर लेता है तभी इस वायरस से संक्रमित होता है। इसलिए एच3एन2 इन्फ्लुएंजा के लक्षण से बच्चों को बचाने के लिए इन बातों का ध्यान रखना बहुत जरूरी होता है-
-बच्चों का हाथ बार-बार धुलाते रहें ताकि इंफेक्शन से दूर रहें।
खांसते और छींकते वक्त मुंह पर रूमाल रखें, बैंबू वाटर वाइप्स का इस्तेमाल करें या कोहनी में मुंह करके खांसें या छींकें।
मरीज से या बाहर लोगों से बच्चा हाथ न मिलाएं।
भीड़-भाड़ वाली जगहों पर बच्चों को ले जाने से बचें।
बच्चों को बार-बार अपने मुंह या नाक को स्पर्श करने से बचना चाहिए या छूने के पहले हाथों को हैंडवाश या साबुन से धो लेना चाहिए।