राजनीति में अब विचारधारा और सिद्धांत की कोई जगह नहीं रही

वो दल भी उतना ही दोषी है जो सत्ता के लालच में ऐसे नेताओं का अपने दल में सिर्फ फूलमालाओं से ही नहीं बल्कि भविष्य के ठोस आश्वासनों के साथ स्वागत करता है।

राजनीति अपने आप में काफी व्यापकता लिये हुये एक ऐसा शब्द है जिसके माध्यम से लोग सत्ता प्राप्त करते हैं और फिर शासन चलाते हैं। देश की राजनीति में दल बदलने की घटनाएं एक आम बात हैं अपने राजनैतिक नफा नुकसान को ध्यान में रखते हुए नेताओं का एक दल से दूसरे दल में जाना आम बात है!हाँ यह सही है कि कानून की नज़र में यह अपराध नहीं है और ना ही ये नेता अपराधी!लेकिन नैतिकता की कसौटी पर यह जनता के ही अपराधी नहीं होते बल्कि leadersस दल से करते हैं उसे छोड़कर उस विपक्षी दल में चले जाते हैं जिसकी विचारधारा का विरोध वो अबतक करते आ रहे थे। जाहिर है ऐसे नेता सिर्फ अपने राजनैतिक स्वार्थ के प्रति ईमानदार होते हैं अपने सिद्धांतोंके प्रति नहीं लेकिन इसके लिए सिर्फ उस नेता को ही दोष देना सही नहीं होगा! वो दल भी उतना ही दोषी है जो सत्ता के लालच में ऐसे नेताओं का अपने दल में सिर्फ फूलमालाओं से ही नहीं बल्कि भविष्य के ठोस आश्वासनों के साथ स्वागत करता है।

आजादी के बाद से लेकर आज तक कई सरकारें आयीं और गई लेकिन आज भी हम वहीं खङे हैं जहां से चले थे।आज वो दल जो खुद को विचारधारा आधारित पार्टी कहता हो वो सत्ता के लिए उन विपक्षी दलों के नेताओं को अपनी पार्टी में शामिल करता है जिनसे उसका वैचारिक मतभेद रहा है।लेकिन लोकतंत्र के नाम पर वोटर से छलावा यहीं तक सीमित नहीं है! एक दूसरे के कट्टरविरोधी राजनैतिक दल जो पाँच साल तक एक दूसरे के विरोधी रहते हैं सत्ता हासिल करने के लिए चुनावों से पूर्व एक दूसरे के साथ गठबंधन कर लेते हैं इतना ही नहीं लोकतंत्र में जिस वोटर के हाथ में सत्ता की चाबी मानी जाती है उसके साथ छल यहीं खत्म नहीं होता जिस दल के साथ चुनाव पूर्ण गठबंधन करके जनता के सामने ये दल वोट मांगने जाते हैं ।चुनाव के बाद सरकार उस पार्टी के साथ मिलकर बना लेते हैं जिसे अपने चुनावी भाषणों में जमकर कोसते हैं। बिहार एवं महाराष्ट्र के उदाहरण कौन भूल सकता है और ऐसे उदाहरणों की तो कोई कमी ही नहीं है जब एक राज्य में एक दूसरे के विरोध में लड़ने वाले दल दूसरे राज्य में कभी सामने से तो कभी पर्दे के पीछे से एक दूसरे का समर्थन कर रहे होते हैं।लेकिन आज का सच तो यही है कि सत्ता के मोह में विचारधारा और सिद्धांत कहीं पीछे छूट जाते है और लोकतंत्र का राजा कहा जाने वाला वोटर देखता रह जाता है। फिर भी कहने के लिये हम दुनियां के सबसे बङे लोकतंत्र में रहते हैं और यही लोकतंत्र हमारी खुवसूरति भी है।