मल्लिकार्जुन खरगे : अचानक सभी के जुबान में ये नाम क्यों ?

लोकसभा चुनाव 2024 की पटकथा लगभग लिखी जा चुकी है। एक ओर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार फ्रंट फुट पर आकर सियासी पिच पर बैटिंग कर रहे हैं। 400 सीट जीतने का दावा कर रहे हैं। दूसरी ओर विपक्षी दल अब तक एक चेहरा तय नहीं कर पाई है। हाल में इडिया गठबंधन में पहली बार कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे का नाम आंशिक रूप से चला है। नरेंद्र मोदी ओबीसी समुदाय से आते हैं, तो खरगे दलित हैं। मोदी की पताका उत्तर भारत में लहराती है, तो खरगे का दक्षिण के राज्यों में जनाधार है। तो क्या समूचा विपक्ष खरगे के नाम पर सहमति बना पाएगा ?

इंडिया गठबंधन की बैठक चल रही थी। बैठक के अंदर और बाहर इस बात को लेकर सबसे अधिक उत्कंठा रही कि इस गठबंधन का चेहरा कौन होगा ? यानी 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विरोध में विपक्षी दल किसी प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी के रूप में जनता को बताएंगे ? जाहिरतौर पर इसको लेकर सभी को मिलकर बात करनी है। चर्चा है कि बैठक में मल्लिकार्जुन खरगे का नाम प्रस्तावित कर दिया गया, उसके बाद ही सियासी गलियारों में इसे दलित बनाम ओबीसी के रूप में भी प्रचारित किया गया। हालांकि, कांग्रेस गांधी परिवार के रहते खरगे के नाम पर सहमति प्रदान करे, इसको लेकर सभी को संशय है।

दरअसल, तृणमूल कांग्रेस की मुखिया और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने 19 दिसंबर को नई दिल्ली में हुई ’इंडिया’ गठबंधन की बैठक में प्रस्ताव दिया कि गठबंधन को एक चेहरा चाहिए। बनर्जी ने कहा कि खरगे को या तो गठबंधन का संयोजक या प्रधानमंत्री पद का दावेदार बना देना चाहिए। आम आदमी पार्टी के मुखिया और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी इस प्रस्ताव का समर्थन किया. और किसी पार्टी के नेता के मुखर रूप से इस प्रस्ताव के समर्थन या विरोध की खबर नहीं है।

असल में, इस प्रस्ताव के तीन महत्वपूर्ण मायने हैं। पहला, कम से कम गठबंधन के कुछ नेताओं को यह अहसास हो चुका है कि 2024 के लोकसभा चुनावों के लिए विपक्ष की रणनीति की गति बढ़ाने का समय आ गया है। शायद इसलिए एक चेहरे को जनता के सामने रखने की जरूरत महसूस हो रही है। दूसरा, अपने अलावा किसी तीसरे नेता का नाम आगे बढ़ा कर बनर्जी और केजरीवाल ने संदेश दिया है कि वो इस रेस से बाहर हैं। इससे पहले तक गठबंधन के अंदर समझौता इस बात पर हुआ था कि चुनाव से पहले किसी भी एक नेता को चेहरा बना कर आगे नहीं किया जाएगा। इस वजह से माना जा रहा था कि लोकसभा चुनावों में अपनी अपनी पार्टियों के प्रदर्शन के आधार पर बनर्जी, केजरीवाल, एनसीपी मुखिया शरद पवार, जेडीयू मुखिया नीतीश कुमार जैसे कई नेता प्रधानमंत्री पद के लिए अपनी दावेदारी आगे रख सकते हैं। नए प्रस्ताव का तीसरा महत्वपूर्ण निहितार्थ यह है कि इसके जरिए बनर्जी और केजरीवाल ने कांग्रेस को संदेश दिया है कि अगर पार्टी अपने पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी का नाम आगे करने के बारे में सोच रही हो तो यह कम से कम इन दोनों नेताओं को मंजूर नहीं है।

सबसे अहम बात यह है कि कांग्रेस की तरफ से चेहरे के सवाल पर कोई स्पष्ट बयान अभी तक नहीं आया है। गठबंधन की बैठक में भी ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल ने मल्लिकार्जुन खरगे के नाम का प्रस्ताव पार्टी के पूर्व अध्यक्षों राहुल गांधी और सोनिया गांधी की मौजूदगी में दिया, लेकिन दोनों कांग्रेस नेताओं ने प्रस्ताव पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। इससे कांग्रेस की स्थिति को समझा जा सकता है। इसके बीच यह भी याद रखना होगा कि 29 नवंबर, 2023 को नई दिल्ली में मल्लिकार्जुन खरगे के जीवन पर लिखी गई एक किताब के विमोचन के कार्यक्रम में कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी ने खरगे की सराहना में एक लंबा भाषण दिया था। भाषण के अंत में उन्होंने कहा, “हमारे विश्वासपात्र और एक मजबूत संगठनात्मक नेता के रूप में मल्लिकार्जुन खरगे भारत की आत्मा के लिए इस ऐतिहासिक लड़ाई में कांग्रेस पार्टी का नेतृत्व करने में सबसे उपयुक्त हैं।“

सियासी जानकारों का कहना है कि गठबंधन भले ही आधिकारिक तौर पर शुरुआती दौर में प्रधानमंत्री के चेहरे को घोषित न करें लेकिन कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे को लेकर कुछ दलों को छोड़ दें तो ज्यादातर की सहमति बनी ही है। इसके पीछे असली वजह खरगे का न सिर्फ दलित चेहरा होना है बल्कि दक्षिण के राज्यों में उनकी मजबूत उपस्थिति भी मानी जा रही है। सियासी जानकारों का कहना है कि मल्लिकार्जुन खरगे के नाम पर सभी दलों की प्रधानमंत्री के चेहरे के तौर पर सहमति हो सकती है। सियासी तौर पर मल्लिकार्जुन खरगे का नाम का प्रस्ताव आना ही गठबंधन को सियासी तौर पर मजबूत कर सकता है। मल्लिकार्जुन खरगे के नाम के साथ विपक्षी दलों का गठबंधन समूह एक तो दलित राजनीति के लिहाज से मजबूत होगा। दूसरा और महत्वपूर्ण पहलू यह है कि दक्षिण भारत में जिस तरीके से कांग्रेस पार्टी या अन्य स्थानीय घटक दल मजबूत हैं उसमें भी मल्लिकार्जुन खरगे दक्षिण भारत के बड़े चेहरे के तौर पर महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। यही वजह रही कि गठबंधन की बैठक में मल्लिकार्जुन खरगे के नाम को प्रधानमंत्री के चेहरे के तौर पर आगे रखने की चर्चा की गई।

विपक्षी दलों के गठबंधन समूह में कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के अलावा कोई बहुत बड़ा दलित चेहरा नहीं है। ऐसे में अगर उनके नाम को आगे किया जा रहा है तो निश्चित तौर पर उत्तर भारत में दलितों के वोट बैंक पर भी गठबंधन समूह की बड़ी नजर है। हालांकि, दलितों के नेता के तौर पर मायावती का चेहरा भी है लेकिन गठबंधन में उनके न होने से यह फायदा गठबंधन समूह के बड़े दलित चेहरे को मिलना तय माना जा रहा है। बीते कुछ दिनों में हुए चुनावों के नतीजे भी इस बात की तस्दीक करते हैं कि कई दलित चेहरे कुछ पार्टियों से छिटक कर कांग्रेस से जुड़ रहे हैं। हालांकि यह प्रतिशत भले बहुत ज्यादा न हो। लेकिन कांग्रेस और गठबंधन मल्लिकार्जुन खरगे के नाम के साथ उनको अपने साथ जोड़ने की कवायद तो कर ही रहा है।